Diwali 2017: दीपावली पर गरूड़ विराजित विष्णु की पूजा है तीव्र फलदायी
नई दिल्ली। दीपावली पर माता लक्ष्मी और उनके वाहन उल्लू की चर्चा तो होती है, लेकिन भगवान श्रीहरि विष्णु की बातें कम ही होती हैं। शायद कम ही लोग जानते हैं कि दीपावली की पूजा में लक्ष्मी के साथ-साथ भगवान विष्णु की ऐसी तस्वीर रखना अत्यंत शुभ फलदायी होता है जिसमें भगवान विष्णु अपने वाहन गरूड़ पर विराजित हों। जी हां, दीपावली की पूजा में यदि आप गरूड़ पर बैठे भगवान विष्णु की पूजा करेंगे तो विष्णु की कृपा तो प्राप्त होगी ही, महालक्ष्मी भी आप पर धन बरसाने के लिए आतुर रहेंगी। जिस घर में दीपावली पर गरूड़ विराजित विष्णु की पूजा होती है, वहां कभी धन की कमी नहीं होगी। उस घर में प्रत्येक प्रकार के धन-धान्य और समृद्धि का स्थायी वास हो जाता है।
यह है कहानी
पुराणों के अनुसार गरूड़ और उसकी माता विनीता को उसकी सौतेली मां नागरानी ने बंधक बनाकर रखा था। उसकी मांग थी कि गरूड़ उसे अमृत लाकर देगा तो वह दोनों मुक्त कर देगी। गरूड़ अपनी माता को मुक्त कराना चाहता था। इसलिए उसने माता विनीता से अमृत पाने का मार्ग पूछा। विनीता ने बताया कि अमृत देवताओं के राजा इंद्र के पास है, लेकिन वहां तक पहुंचना आसान नहीं है। लंबी उड़ान के लिए तुम्हें खूब सारे भोजन की आवश्यकता होगी तभी तुम मजबूती से उड़ सकोगे।
निशाद को खा लिया
इसके लिए तुम्हें मार्ग में समुद्र मिलेगी, जिसके किनारे पर मछुआरों की प्रजाति निशाद निवास करती हैं। तुम उन्हें खा लेना, लेकिन ध्यान रहे निशादों के साथ एक ब्राह्मण भी रहता है, उसे मत खाना। अमृत लाने के लिए गरूड़ के मान जाने पर सौतेली मां नागरानी ने उसे जाने की अनुमति दे दी। गरूड़ उड़ चला और रास्ते में उसने सारे निशाद को खा लिया, लेकिन भूलवश उसने ब्राह्मण को भी खा लिया। इससे उसके गले में तीव्र जलन होने लगी। उसने शीघ्रता से ब्राह्मण को बाहर उगल दिया।
गरूड़ की भूख शांत नहीं हुई
निशादों को खाने के बाद भी गरूड़ की भूख शांत नहीं हुई तो वह अपने पिता कश्यप के पास पहुंचा। कश्यप मुनि ने उसे बताया कि यहां से कुछ ही दूरी पर तुम्हें एक हाथी और एक कछुआ साथ में मिलेंगे। वे दोनों अपने पूर्व जन्म में ऋषि थे, लेकिन संपत्ति पाने के लिए दोनों ने एक-दूसरे को श्राप दे दिया, जिससे उनकी यह हालत हुई। तुम उन दोनों को खा लेना तो तुम्हारी भूख भी शांत हो जाएगी और उन्हें श्राप से मुक्ति भी मिल जाएगी। गरूड़ ने हाथी और कछुए को खा लिया। इसके बाद गरूड़ इंद्रलोक में पहुंच गया। इंद्र को जब पता लगा कि गरूड़ अमृत के लिए आया है तो उसने गरूड़ से युद्ध छेड़ दिया, लेकिन शीघ्र ही गरूड़ ने इंद्र को परास्त कर दिया। इसके बाद कई बाधाओं को पार करते हुए गरूड़ अमृत तक पहुंच गया। गरूड़ चाहता तो स्वयं अमृत पीकर अमर बन सकता था, लेकिन उसने अपनी माता को मुक्त कराने के लिए नागरानी को अमृत सौंप दिया।
नागरानी के राज्य तक आ गए
उधर गरूड़ द्वारा अमृत चुराकर ले जाने की बात से नाराज देवता उसका पीछा करते-करते नागरानी के राज्य तक आ गए। जैसे ही नागरानी अमृत पीने वाली थी देवताओं ने आंधी-तूफान लाकर कहर बरपा दिया और अमृत लेकर भाग गए। उनके भागते समय अमृत की कुछ बूंदें छलककर पृथ्वी की ओर गिरी, जिसे नागरानी से अपनी जीभ पर ले लिया। अमृत की तीव्रता से नागरानी की जीभ बीच में से कटकर दो भागों में बंट गई। तभी से सर्प की जीभ दो हिस्सों में होती है।
श्रीहरि विष्णु
गरूड़ के अमृत लाने से लेकर अपनी माता विनीता को नागरानी की कैद से मुक्त कराने तक के संघर्ष को श्रीहरि विष्णु दूर बैठे देख रहे थे। वे गरूड़ के प्रयासों और उसकी मातृभक्ति से अत्यंत प्रसन्न थे। उन्होंने गरूड़ और उसकी माता विनीता को नागरानी की कैद से मुक्त कराया और वरदान दिया कि वह बिना अमृत पीये भी अमर रहेगा। गरूड़ ने भी श्रीविष्णु का वाहन बनना स्वीकार किया। भगवान विष्णु ने गरूड़ को अपने समान पद देते हुए कहा कि जो पृथ्वीवासी मेरे साथ गरूड़ की भी पूजा करेगा उसे समस्त सुखों की प्राप्ति होगी। महालक्ष्मी उसे धन समृद्धि प्रदान करेगी।
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