Devshayani Ekadashi 2018: जानिए देवशयनी एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त, कथा और पूजा विधि
नई दिल्ली। हिंदू धर्म में देवशयनी एकादशी का बड़ा महत्व है, कहीं-कहीं इस दिन को 'पद्मनाभा' भी कहते हैं। सूर्य के मिथुन राशि में आने पर ये एकादशी आती है। इसी दिन से चातुर्मास का आरंभ माना जाता है। इस दिन से भगवान श्री हरि विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और फिर लगभग चार महीने बाद तुला राशि में सूर्य के जाने पर उन्हें उठाया जाता है। उस दिन को 'देवोत्थानी एकादशी' कहा जाता है। इस बीच के अंतराल को ही 'चातुर्मास' कहते हैं। इस बार देवशयनी एकादशी 23 जुलाई को पड़ रही है।
देवशयनी एकादशी का शुभ मुहूर्त
- एकादशी तिथि प्रारंभ: 22 जुलाई को दोपहर 2 बजकर 47 मिनट से।
- एकादशी तिथि समाप्त: 23 जुलाई शाम 4 बजकर 23 मिनट तक
- पारण का समय: 24 जुलाई सुबह 5 बजकर 41 मिनट से 8 बजकर 24 मिनट तक।
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'योगनिद्रा'
भविष्य पुराण, पद्म पुराण और श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार हरिशयन को 'योगनिद्रा' कहा गया है। आपको बता दें कि संस्कृत में हरि शब्द सूर्य, चन्द्रमा, वायु, विष्णु के लिए प्रयोग होता है। हरिशयन का तात्पर्य इन चार माह में बादल और वर्षा के कारण सूर्य-चन्द्रमा का तेज क्षीण हो जाना उनके शयन का ही द्योतक होता है। इस समय में पित्त स्वरूप अग्नि की गति शांत हो जाने के कारण शरीर की शक्ति क्षीण हो जाती है इसलिए इन चार महीने में कोई भी शुभ काम नहीं होते हैं।
पौराणिक महत्व
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पक्ष में एकादशी तिथि को शंखासुर दैत्य मारा गया था, इसलिए इसके बाद भगवान चार मास तक क्षीर समुद्र में शयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं।
दैत्य बलि को दिया है वरदान
वैसे पुराणों में ये भी वर्णन है कि इसी दिन भगवान हरि ने वामन रूप में दैत्य बलि के यज्ञ में तीन पग दान के रूप में मांगे थे। भगवान ने पहले पग में संपूर्ण पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओं को ढ़क लिया था। अगले पग में सम्पूर्ण स्वर्ग लोक ले लिया। तीसरे पग में बलि ने अपने आप को समर्पित करते हुए सिर पर पग रखने को कहा। इस प्रकार के दान से भगवान ने प्रसन्न होकर पाताल लोक का अधिपति बना दिया और कहा वर मांगो। बलि ने वर मांगते हुए कहा कि भगवान आप मेरे महल में नित्य रहें। कहते हैं ये चार महीने भगवान पाताल में इसलिए ही शयन करते हैं।
कैसे करें पूजा
- देवशयनी एकादशी व्रतविधि एकादशी को प्रातःकाल उठें। इसके बाद घर की साफ-सफाई तथा नित्य कर्म से निवृत्त हो जाएं।
- स्नान कर पवित्र जल का घर में छिड़काव करें।
- घर के पूजन स्थल पर प्रभु श्री हरि विष्णु की सोने, चांदी, तांबे अथवा पीतल की मूर्ति की स्थापना करें।
- इसके बाद व्रत कथा सुननी चाहिए।
- इसके बाद आरती कर प्रसाद वितरण करें।
- अंत में सफेद चादर से ढंके गद्दे-तकिए वाले पलंग पर श्री विष्णु को शयन कराना चाहिए।
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