Apara Ekadashi 2018: अपार खुशियां देती है 'अपरा एकादशी', पढ़ें पौराणिक व्रतकथा और पूजाविधि
नई दिल्ली। ज्येष्ठ मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी को 'अपरा एकादशी' कहा जाता है। यह ऐसी एकादशी है जिसका व्रत रखने से हर तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है। पुराणों के अनुसार इस दिन व्रत और पूजा करने से कई पापों की नाश होता है। इस दिन व्रत करने से पापों का प्रायश्चित किया जा सकता है इसलिए इस एकादशी का सर्वाधिक महत्व है।
व्रत को विधिपूर्वक, संयम से करना चाहिए
इस एकादशी के व्रत को विधिपूर्वक, संयम से करना चाहिए। भक्तों को 'अपरा एकादशी' कथा सुननी चाहिए। एकादशी के दिन प्रात:काल श्रीविष्णु की पूजा करे और घी का दीपक जलाए। भगवान विष्णु के समक्ष हाथ जोड़कर जाने-अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति के लिए प्रार्थना करते हुए 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का' जाप करें। हरि का स्मरण करते हुए रात्रि जागरण करें। अगले दिन व्रत कथा सुनने के बाद व्रत का परायण करें।
व्रत का फल
- पूर्ण विधि-विधान और श्रद्धा से अपरा एकादशी का व्रत करने से पापों से क्षमा मिलती है।
- व्रत के प्रभाव से व्यक्ति का खोया सम्मान पुन: प्राप्त हो जाता है।
- एकादशी के व्रत से व्यक्ति के घर में धन-धान्य की कभी कमी नहीं होती।
- व्रत के फल से समस्त सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है। दांपत्य जीवन में मधुरता बनी रहती है।
'अपरा एकादशी' व्रत कथा
महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। राजा का छोटा भाई वज्रध्वज बड़े भाई से द्वेष रखता था। एक दिन अवसर पाकर इसने राजा की हत्या कर दी और जंगल में एक पीपल के नीचे गाड़ दिया। अकाल मृत्यु होने के कारण राजा की आत्मा प्रेत बनकर पीपल पर रहने लगी। मार्ग से गुजरने वाले हर व्यक्ति को आत्मा परेशान करती। एक दिन एक ऋषि इस रास्ते से गुजर रहे थे। इन्होंने प्रेत को देखा और अपने तपोबल से उसके प्रेत बनने का कारण जाना।
ऋषि ने स्वयं 'अपरा एकादशी' का व्रत रखा
ऋषि ने पीपल के पेड़ से राजा की प्रेतात्मा को नीचे उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया। राजा को प्रेत योनी से मुक्ति दिलाने के लिए ऋषि ने स्वयं 'अपरा एकादशी' का व्रत रखा और द्वादशी के दिन व्रत पूरा होने पर व्रत का पुण्य प्रेत को दे दिया। एकादशी व्रत का पुण्य प्राप्त करके राजा प्रेतयोनी से मुक्त हो गया और स्वर्ग चला गया।
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