लठ्ठमार होली: होली आई रे कन्हाई.. बजा दे जरा बांसुरी
होली,रंगों का त्यौहार ...हमारे भारत वर्ष में फाल्गुन के महीने में बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। कहीं रंगों की होली तो कहीं फूलों की होली से पूरा माहौल सराबोर रहता है। पर हमारे बृज धाम में लट्ठ मार होली मनाई जाती है। आइये आज आपको उसी लट्ठमार होली के विषय में बताते हैं।
जानिए होली से जुड़ी कुछ खास और रोचक बातें..
बरसाना की लट्ठमार
बरसाना की लट्ठमार होली देश में ही नहीं विदेश में भी प्रसिद्ध है। राधाकृष्ण की लीलाएं इसी गांव से संबंधित हैं। बरसाने की लट्ठमार होली फल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है।
पुरुषों को कहते हैं होरियारे
इस दिन नंद गांव के ग्वाल-बाल होली खेलने के लिए राधा के गांव बरसाने जाते हैं और बरसाना गांव के लोग नंद गांव में जाते हैं। इन पुरूषों को 'होरियारे' कहा जाता है। जब नाचते, झूमते लोग गांव में पहुंचते हैं तो औरतें हाथ में ली हुई लाठियों से उन्हें पीटना शुरू कर देती हैं और पुरुष खुद को बचाते हैं, लेकिन खास बात यह है कि यह सब मारना, पीटना हंसी-खुशी के वातावरण में होता है।
अपने गाँव के पुरुषों पर नहीं बरसती हैं लाठियां
औरतें अपने गांवों के पुरूषों पर लाठियां नहीं बरसातीं। बाकी आस-पास खड़े लोग बीच-बीच में रंग बरसाते हुए दिखते हैं। इस होली को देखने के लिए बड़ी संख्या में देश-विदेश से लोग बरसाना आते हैं। ऐसी मान्यता है कि जब श्रीकृष्ण होली के लिए गोपियों को प्रतीक्षा करवाते थे, तब गोपियां उन पर गुस्सा होकर लाठियां बरसाती थीं। यही लट्ठमार होली आज भी बरसाना की लड़कियों और नंद गांव के लड़कों के बीच खेली जाती है।
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लड्डुओं से भी खेली जाती है होली
यूं तो होली का त्योहार भारत सहित अन्य देशों में विभिन्न नामों से मनाया जाता है, लेकिन उन सभी में ब्रज की होली का अपना अलग महत्व है। ब्रज में होली वसंत पंचमी से चैत्र कृष्ण पंचमी तक मनाई जाती है। ब्रज की होली देशभर में प्रसिद्ध है। ब्रज में खेली जाने वाली होली में भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य होली की झलक हमें मिलती है। यही कारण है कि इसे देखने के लिए हर साल हजारों लोग ब्रज मंडल में इकट्ठा होते हैं। ब्रज के सभी मंदिरों में हर रोज भगवान श्रीकृष्ण के साथ अबीर, रंग, गुलाल की होली खेली जाती है।
रास गीत गाए जाते हैं
ब्रज के सभी क्षेत्र के मंदिरों में, जिनमें मथुरा का द्वारकाधीश मंदिर, जन्मभूमि मंदिर, वृंदावन का बांकेबिहारी मंदिर और इस्कॉन का हरे रामा-हरे कृष्णा मंदिर आदि शामिल हैं, में प्रतिदिन चंग (एक प्रकार का वाद्य यंत्र) बजा कर रास गीत गाए जाते हैं और नृत्य होता है। होली के पहले लड्डू मार होली खेली जाती है। जिसमें पुजारी श्रद्धालुओं पर लड्डू बरसाते हैं।
प्रेम और भक्ति के रंग
ब्रज की होली में प्रेम और भक्ति के रंग चारों तरफ बिखरे दिखाई देते हैं। ब्रजवासी जहां भगवान श्रीकृष्ण के प्रेम में मग्न दिखाई देते हैं, वहीं बाहर से आए श्रद्धालु भी भक्ति-भाव में डूब जाते हैं। ब्रज में खेली जाने वाली होली में प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता है। फूलों और अन्य प्राकृतिक पदार्थों से बनाए गए रंगों के उपयोग से होली की मर्यादा बनी रहती है और आनंद बढ़ जाता है।
सूरदास ने भी अपने भक्ति काव्य में बृज की होली का वर्णन किया है
कविवर
सूरदास
ने
अपने
काव्य
में
फाल्गुनी
रंग
और
पिचकारी
की
धार
का
अद्भुत
चित्रण
किया
है
की
किस
प्रकार
श्री
कृष्ण
राधा
और
गोपियों
संग
छेड़खानी
भरी
होली
खेलते
थे।
हरि
संग
खेलति
हैं
सब
फाग।
इहिं
मिस
करति
प्रगट
गोपी:
उर
अंतर
को
अनुराग।।
सारी
पहिरी
सुरंग,
कसि
कंचुकी,
काजर
दे
दे
नैन।
बनि
बनि
निकसी
निकसी
भई
ठाढी,
सुनि
माधो
के
बैन।।
इस प्रकार फागुन मास में बौराये आमों की तुर्श गंध और फूलते पलाश के पेडों के साथ तन मन भी बौरा जाता है। आज भी होली सम्बन्धों में मधुरता घोलने का त्यौहार है। होली उत्साह, उमंग और प्रेम पगी छेडछाड लेकर आती है। होली सारे अलगाव और कटुता और अपनी रंग भरी धाराओं से धुल जाती है।