PICS: जगन्नाथ यात्रा पर मोदी ने 12वीं बार खींचा रथ
अहमदाबाद। भगवान जगन्नाथ की 136वीं रथयात्रा बुधवार से शुरू हुई। सुबह 7 बजे मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने भगवान जगन्नाथ का रथ खींचा। इसके अंतर्गत पूरे गुजरात में करीब 140 स्थानों पर अलग-अलग रथ यात्राएं निकाली जा रही हैं। अहमदाबाद की रथयात्रा में शामिल होने के लिये लाखों लोगों की भीड़ दिखाई दे रही है। यात्रा के ठीक पहले मोदी ने अपने ब्लॉग पर रथ यात्रा के लिये लोगों को शुभकामनाएं दीं और 'जय रणचोड़, माखनचोर' का नारा लगाते हुए देश में सद्भावना की प्रार्थना की।
उन्होंने लिखा कि हम भगवान जगन्नाथ से देश में शांति, एकता और सद्भवना के लिये प्रार्थना करते हैं। गरीबों, किसानों पर भगवान अपनी कृपा बनाये रखे एवं देश को नई ऊंचाईयों तक पहुंचायें। साथ ही मोदी ने अच्छी बारिश के लिये ईश्वर से प्रार्थना की।मोदी ने लिखा कि यात्रा के दौरान रास्ता साफ करने की प्रथा में मुझे भी भाग लेने का मौका मिल रहा है, इसके लिये मैं खुद को भाग्यशाली समझता हूं। कुच्ची नये साल पर कुच्ची लोगों को मोदी ने बधाईयां दीं। इसके अलावा मोदी ने पिछले साल की कुछ तस्वीरें अपने ब्लॉग पर प्रकाशित कीं, जो आप स्लाइडर पर देख सकते हैं।
छत्तीसगढ़ में जगन्नाथ रथयात्रा
उधर रायपुर में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने 10 जुलाई को भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा के अवसर पर जनता को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं दी हैं। डॉ. सिंह ने रथयात्रा की पूर्व संध्या पर मंगलवार को जारी शुभकामना संदेश में कहा है कि छत्तीसगढ़ के पड़ोसी राज्य ओड़िशा में श्री क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध पुरी के समुद्र तट पर विराजमान महाप्रभु श्री जगन्नाथ न केवल इन दोनों राज्यों की जनता के, बल्कि संपूर्ण भारत और पूरी दुनिया में सबके आराध्य हैं।
डॉ. सिंह ने कहा कि हमारी महान भारतीय संस्कृति के अनुरूप भगवान जगन्नाथ का जीवन दर्शन सामाजिक समरसता पर आधारित है, जो देश और दुनिया के लिए हमेशा प्रेरणादायक है। मुख्यमंत्री ने कहा कि देश के अन्य राज्यों की तरह छत्तीसगढ़ में भी भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा उत्साह के साथ मनाई जाती है। हमारे यहां गांव-गांव में उनकी रथयात्रा का आयोजन होता है। पड़ोसी राज्य होने के कारण ओड़िशा की जगन्नाथ संस्कृति का छत्तीसगढ़ के जनजीवन पर भी गहरा प्रभाव है। मुख्यमंत्री ने रथयात्रा के अवसर पर भगवान जगन्नाथ से छत्तीसगढ़ और ओडिशा सहित देश और दुनिया में जनता के लिए शांति और खुशहाली प्रदान करने की प्रार्थना की है।
140 स्थानों पर यात्राएं
गुजरात में करीब 140 स्थानों पर अलग-अलग रथ यात्राएं निकाली जायेंगी। अहमदाबाद की रथयात्रा में शामिल होने के लिये लाखों लोगों की भीड़ दिखाई देगी।
भगवान जगन्नाथ से प्रार्थना
हम भगवान जगन्नाथ से देश में शांति, एकता और सद्भवना के लिये प्रार्थना करते हैं। गरीबों, किसानों पर भगवान अपनी कृपा बनाये रखे एवं देश को नई ऊंचाईयों तक पहुंचायें।
मोदी ने लिखा
मोदी ने लिखा कि यात्रा के दौरान रास्ता साफ करने की प्रथा में मुझे भी भाग लेने का मौका मिल रहा है
जगन्नाथ संप्रदाय कितना पुराना
जगन्नाथ संप्रदाय कितना पुराना है तथा यह कब उत्पन्न हुआ था इस बारे में स्पष्ट तौर पर कुछ नही कहा जा सकता। वैदिक साहित्य और पौराणिक कथाओं में भगवान जगन्नथ या पुरूषोत्तम का विष्णु के अवतार के रूप में उनकी महिमा का गुणगान किया गया है।
पुरी क्षेत्र जिसे पुरुषोत्तम पुरी
दक्षिण भारतीय उड़ीसा राज्य का पुरी क्षेत्र जिसे पुरुषोत्तम पुरी, शंख क्षेत्र, श्रीक्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है, भगवान श्री जगन्नाथ जी की मुख्य लीला-भूमि है। उत्कल प्रदेश के प्रधान देवता श्री जगन्नाथ जी ही माने जाते हैं। यहाँ के वैष्णव धर्म की मान्यता है कि राधा और श्रीकृष्ण की युगल मूर्ति के प्रतीक स्वयं श्री जगन्नाथ जी हैं। इसी प्रतीक के रूप श्री जगन्नाथ से संपूर्ण जगत का उद्भव हुआ है। श्री जगन्नाथ जी पूर्ण परात्पर भगवान है और श्रीकृष्ण उनकी कला का एक रूप है। ऐसी मान्यता श्री चैतन्य महाप्रभु के शिष्य पंच सखाओं की है।
ध्वज पर श्री बलराम
रथयात्रा में सबसे आगे ताल ध्वज पर श्री बलराम, उसके पीछे पद्म ध्वज रथ पर माता सुभद्रा व सुदर्शन चक्र और अंत में गरुण ध्वज पर या नंदीघोष नाम के रथ पर श्री जगन्नाथ जी सबसे पीछे चलते हैं।
मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में
मौजूदा 65 मीटर ऊंचे मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में चोलगंगदेव तथा अनंगभीमदेव ने कराया था। परंतु जगन्नाथ संप्रदाय वैदिक काल से लेकर अब तक मौजूद है।
मौजूदा मंदिर में भगवान जगन्नाथ
मौजूदा मंदिर में भगवान जगन्नाथ की पूजा उनके भाई बलभद्र तथा बहन सुभद्रा के साथ होती है। इन मूर्तियों के चरण नहीं है। केवल भगवान जगन्नाथ और बलभद्र के हाथ है लेकिन उनमें कलाई तथा ऊंगलियां नहीं हैं। ये मूर्तियां नीम की लकड़ी की बनी हुई है तथा इन्हें प्रत्येक बारह वर्ष में बदल दिया जाता है।
मूर्तियों के बारे में अनेक मान्यताएं
इन मूर्तियों के बारे में अनेक मान्यताएं तथा लोककथाएं प्रचलित है। यह मंदिर 20 फीट ऊंची दीवार के परकोटे के भीतर है जिसमें अनेक छोटे-छोटे मंदिर है। मुख्य मंदिर के अलावा एक परंपरागत् डयोढ़ी, पवित्र देवस्थान या गर्भगृह, प्रार्थना करने का हॉल और स्तंभों वाला एक नृत्य हॉल है। सदियों से पुरी को अनेक नामों से जाना जाता है जैसे, नीलगिरि, नीलाद्री, नीलाचल, पुरूषोत्तम, शंखक्षेत्र, श्रीक्षेत्र, जगन्नाथ धाम और जगन्नाथ पुरी। यहां पर बारह महत्वपूर्ण त्यौहार मनाये जाते हैं। लेकिन इनमें सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार जिसने अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की है वह रथयात्रा ही है।
यात्रा आषाढ़ महीने मे
यह यात्रा आषाढ़ महीने (जून-जुलाई) मे आता है। भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र तथा बहन सुभद्रा के साथ गुडिचा मंदिर पर वार्षिक भ्रमण पर जाते है जो उनके एक सगे संबधी का घर है। ये तीनों देव वहां के लिए अपनी यात्रा सजे संवरे रथों पर सवार होकर करते हैं, इसीलिए इसे रथ यात्रा अथवा रथ महोत्सव कहते हैं। इन तीनों देवों के रथ अलग-अलग होते हैं जिन्हें उनके भक्त गुंडिचा मंदिर तक खींचते हैं। नंदीघोष नामक रथ 45.6 फीट ऊंचा है जिसमे भगवान जगन्नाथ सवार होते हैं।
तालध्वज नामक रथ 45 फीट ऊंचा
तालध्वज नामक रथ 45 फीट ऊंचा है जिसमे भगवान बलभद्र सवार होते हैं। दर्पदलन नामक रथ 44.6 फीट ऊंचा है जिसमे देवी सुभद्रा सवार होती है। ये रथ बड़े ही विशाल होते हैं तथा इन्हें रथ में सवार देव के सांकेतिक रंगों के अनुसार ही सजाया जाता है।
रथों को मंदिर के बाहर एक परंपरा
देवों को लाने के लिए इन रथों को मंदिर के बाहर एक परंपरा के अनुसार ही खड़ा किया जाता जिसे पहंडी बीजे कहते हैं। गजपति स्वर्णिम झाडु से सफाई करता है। केवल तभी रथों की खींचा जाता है। ये तीनों देव गुंडिचा मंदिर में सात दिनों तक विश्राम करते हैं और फिर इसी तरह से उन्हें वापस उनके मुख्य मंदिर में लाया जाता है। इस प्रकार नौ दिनों तक चलने वाला यह रथ महोत्सव समाप्त होता है।