Organic Farming : गंगा को निर्मल बनाने में मदद कर रहे किसान, NMCG निदेशक ने बताए पॉजिटिव परिणाम
देहरादून, 23 मई : भारत में ऑर्गेनिक फार्मिंग की संस्कृति जोर पकड़ रही है। पर्यावरण के अनुकूल फसलों की खेती और केमिकल के कम इस्तेमाल से किसानों को बेहतर उपज भी मिल रही है। इसी बीच उत्तराखंड से उत्साहजनक तस्वीर सामने आई है। गंगा नदी को गंदगी मुक्त करने के लिए चल रहे राष्ट्रीय मिशन (नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा- NMCG) की ओर से वृक्षारोपण के कारण गंगा नदी की सेहत में सुधार हुआ है, यानी गंगा का पानी पहले की तुलना में निर्मल हुआ है।

गंगा विशिष्ट इलाकों और भौगोलिक क्षेत्रों से गुजरती हुई हजारों मील की दूरी तय करती है। भारत में इसे न केवल एक पवित्र नदी, बल्कि लाखों लोगों की जीवन रेखा भी माना जाता है, जो गंगा के किनारों पर या उन राज्यों में रहते हैं, जहां से गंगा नदी गुजरती है।
गंगा की सफाई को समर्पित NMCG
खेतों में केमिकल के अंधाधुंध इस्तेमाल और पेड़ों की कटाई जैसे फैक्टर गंगा की सेहत को लगातार प्रभावित कर रहे हैं। हालांकि उत्तराखंड से कुछ पॉजिटिव संकेत मिले हैं। गंगा की सफाई के लिए स्वच्छ गंगा के लिए राष्ट्रीय मिशन (NMCG) की ओर से 'नमामि गंगे' की स्कीम चलाई जा रही है।
खेतों में केमिकल से नदी भी प्रदूषित !
गंगा की सफाई में ऑर्गेनिक फार्मिंग का भी योगदान है। उत्तराखंड में ऑर्गेनिक खेती की मात्रा बढ़ने के साथ-साथ गंगा नदी पहले की तुलना में अधिक साफ हुई है। इसका मतलब साफ है कि खेतों में डाले जाने वाले रसायनों से धरती के अलावा नदियों की सेहत पर भी बुरा असर पड़ता है।
अब खेतों में केमिकल का इस्तेमाल नहीं
NMCG महानिदेशक जी अशोक कुमार के मुताबिक, कुछ गतिविधियों को शुरू करने की कोशिश की जा रही है। इनमें से एक है, गंगा के दोनों किनारों पर प्राकृतिक खेती। यानी गंगा नदी के किनारे से 10 किलोमीटर तक खेतों में केमिकल का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में पहले ही बहुत सारे सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए जा चुके हैं। ऐसे में गैर-बिंदु प्रदूषण स्रोत (non-point pollution sources) से होने वाले नदी प्रदूषण को रोकने की कवायद की जा रही है।
प्राकृतिक उर्वरकों को बढ़ावा
गंगा की सफाई और ऑर्गेनिक फार्मिंग के बीच संबंध को लेकर जी अशोक कुमार ने कहा, कृषि और अन्य उद्योगों में इस्तेमाल हो रहे उर्वरक नदी में न बहें, इसके प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि कोशिशों के हिस्से के रूप में, NMCG की ओर से किसानों को प्राकृतिक या जैविक खेती करने के लिए प्रोत्साहित करने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि किसानों को रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल से रोकने के लिए प्राकृतिक उर्वरकों को बढ़ावा दिया जा रहा है।
जैव कीटनाशकों के उत्पादन की ट्रेनिंग
दरअसल, गंगा में जहरीले कीटनाशकों और पेस्टिसाइड का प्रवाह न हो इससे बचने के लिए सरकार ने उत्तराखंड के किसानों से खेती का वैकल्पिक तरीका अपनाने की अपील की थी। उत्तराखंड में किसानों की ओर से ऑर्गेनिक खेती शुरू करने के कुछ ही वर्षों के अंदर राज्य में प्रमुख रूप से जैविक खेती ही की जा रही है। राज्य के चमोली जिले में किसानों को स्वतंत्र रूप से जैव उर्वरक और जैव कीटनाशकों का उत्पादन करने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है।
किसानों को दोगुना लाभ
समाचार एजेंसी एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक चमोली के एक किसान मोहन सिंह ने बताया, 2019-20 में, नमामि गंगे पहल के तहत, ग्राम सभा को जैविक खाद पर काम करने के लिए 100 स्प्रे मशीन, 100 ड्रम और एक प्लास्टिक पिट दिए गए थे। ट्रेनिंग की शुरुआत से पहले वे गाय के गोबर नदियों के किनारे फेंक दिया करते थे, लेकिन अब प्लास्टिक पिट के इस्तेमाल के कारण शुद्ध जैविक खाद मिल रही है। उन्होंने कहा, इस तरह की छोटी लेकिन महत्वपूर्ण पहल के कारण किसानों को दोगुना लाभ मिल रहा है।
किसानों के लिए 'जैविक हाट'
एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक ऑर्गेनिक फार्मिंग के कारण किसानों की उत्पादन लागत लगभग शून्य हो गई है, मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार हुआ है, फसल की पैदावार संतोषजनक है, और जैविक फसलों के लिए किसानों को अधिक कीमतें भी मिलती हैं। किसान न केवल जैविक उत्पाद बना रहे हैं, बल्कि उपभोग भी कर रहे हैं। किसानों को 'जैविक हाट' पहल के तहत भी प्रोत्साहित किया गया है।
जैविक खेती कर रहे एक अन्य किसान ने बताया कि जैविक खेती के कारण फसलों को बेचने में लगने वाले समय और प्रयास काफी कम हो गए हैं। उन्होंने कहा कि जैविक हाट में उत्पादों को बाजार मूल्य से 30 प्रतिशत अधिक कीमत मिलती है। उत्तराखंड के ऑर्गेनिक हाट (Organic Haat Uttarakhand) में कोई भी दाल, सब्जियां, मसाले, दालें और कई अन्य उत्पाद भी प्राप्त कर सकता है। हमें 2015 में जैविक हाट के बारे में पता चला और तब से हम इस पहल का हिस्सा हैं।
गंगा के कायाकल्प में 'वानिकी हस्तक्षेप' (forestry interventions) की भी अहम भूमिका है। इसके कारण गंगा के किनारों पर वन और जमीन दोनों उपजाऊ बनते हैं। गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों की आसपास भी उत्पादकता और विविधता बढ़ाने में मदद मिलती है। गंगा बेसिन के दायरे में आने वाले वनस्पतियों और जीवों को संरक्षित करने के लिए बड़े पैमाने पर वनीकरण अभियान शुरू किया गया है।
उत्तराखंड क्षेत्र में नदी के पानी की गुणवत्ता पहले से ही संतोषजनक थी लेकिन जैविक खेती और केमिकल के कम इस्तेमाल जैसे प्रयासों से गंगा और स्वच्छ हुई है। स्थानीय लोगों का मानना है कि वर्तमान में गंगा की धारा सबसे शुद्ध है। दूसरी तरफ सरकार का कहना है कि काम अभी पूरा नहीं हुआ है। सरकार का मकसद पवित्र नदी को मूल प्रकृति में लाना है।
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