
AgroTourism : MBA डिग्री वाले ललित को CA पत्नी का मिला साथ, खेती-किसानी और नर्सरी से करोड़ों का टर्नओवर
जोधपुर, 25 मई : लाखों रुपये के पैकेज की नौकरी का सपना देखने वाले लाखों युवा MBA की डिग्री हासिल करते हैं। हालांकि, अगर कोई एमबीए के बाद खेती-किसानी को अपना करियर बनाए तो ये चौंकाने वाला फैसला लगता है। कुछ ऐसा ही हुआ राजस्थान के सफल किसान ललित देवड़ा के साथ। एमबीए करने के बाद घरवालों को जब ललित ने बताया कि उन्होंने आठ लाख रुपये के पैकेज वाली नौकरी ठुकरा कर खेती करने का फैसला किया है, तो घर वालों को झटका लगा। हालांकि, ललित ने अपने फैसले को सही साबित किया। आज उनका टर्नओवर करोड़ों रुपये का है। सरकार भी ललित को प्रोजेक्ट देती है। ललित की सफलता में चार्टड अकाउंटेंट पत्नी खुशबू देवड़ा का भी योगदान है। जानिए किसानों के लिए मिसाल बनी दंपती- ललित और खुशबू की सक्सेस स्टोरी (फोटो सौजन्य- फेसबुक @lalit.deora.3 और वीडियो ग्रैब यूट्यूब @ DD Kisan)

आठ लाख की नौकरी छोड़ी, पत्नी का साथ मिला
जोधपुर में रहने वालीं चार्टड अकाउंटेंट सह किसान खुशबू देवड़ा बताती हैं कि पति को देखने के बाद उन्होंने खेती में हाथ बंटाने का फैसला लिया। उन्होंने कहा कि ललित को देखने के बाद कुछ 'आउट ऑफ द बॉक्स' काम करने का निर्णय लिया। 2013 में एमबीए की डिग्री लेने वाले ललित बताते हैं कि पहली बार उन्हें आठ लाख रुपये के पैकेज वाली जॉब ऑफर हुई, लेकिन उन्होंने एक्सेप्ट नहीं किया। खेती की प्रेरणा के सवाल पर ललित बताते हैं कि गुजरात में बड़ी कंपनियों की कमाई देखकने के बाद उन्होंने खेती-किसानी करने का फैसला लिया था।

मियां-बीवी एक दूसरे के साथ, बिजनेस में मिली सफलता
एमबीए की डिग्री के बाद किसानी को करियर बनाने के सवाल पर ललित कहते हैं कि आम तौर पर जिस फील्ड में आपने डिग्री ली हो, उसी क्षेत्र में इस्तेमाल करते हैं, लेकिन उस डिग्री को बिजनेस में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि एमबीए की डिग्री लेने के बाद इनोवेशन और मैनेजमेंट जैसे काम वे खुद देखते हैं। पत्नी खुशबू चार्टड अकाउंटेंट (सीए) हैं तो वे कॉमर्स के सारे काम करती हैं।
खेती में संभावनाएं नहीं, ये धारणा गलत है
युवाओं को संदेश के नाम पर ललित देवड़ा ने कहा, खेती को बिजनेस या ऑर्गनाइजेशन के सेटअप की तरह देखने के बाद सफलता हासिल की जा सकती है। उन्होंने कहा कि 400 वर्गमीटर के छोटे से एरिया से शुरुआत के बाद उन्होंने अपने काम का दायरा बढ़ाया और नर्सरी, वर्मीकंपोस्ट और कस्टम हायरिंग और लैंडस्केपिंग का काम शुरू किया। ये एक तरीके का पोर्टफोलियो बनाना हुआ। 12 महीनों की कमाई होनी चाहिए। उन्होंने पलायन कर रहे युवाओं को धारणा छोड़ने को कहा कि खेती या फार्मिंग से कुछ नहीं मिलेगा ऐसा सोचना बिलकुल गलत है।

थाइलैंड की प्रजाति वाले अमरूद की खेती
ललित देवड़ा बताते हैं कि अपने फार्म में उन्होंने ब्लैक ग्वाभा यानी लाल अमरूद लगाया है। उन्होंने कहा कि मार्केट में इसका भाव भी अच्छा मिल रहा है। 100 पौधे लगाए हैं। पश्चिम बंगाल से ये पौधा मंगवाया है। ये थाइलैंड की प्रजाति मानी जाती है। लाल अमरूद के बारे में खुशबू बताती हैं कि किचन में खाने की प्लेट डेकोरेशन में लाल अमरूद से मदद मिलती है। नया फल या सब्जी मार्केट में आने पर डिमांड अच्छी होती है।
8-10 दिनों तक खराब नहीं होते फल
ब्लैक ग्वाभा की खेती के लिए टिप्स देते हुए ललित बताते हैं कि पानी मीठा होना चाहिए। अमरूद का पौधा खारे पानी के प्रति सेंसिटिव होता है। ऐसे में पानी निकासी की अच्छी व्यवस्था होने पर लाल अमरूद की खेती की जा सकती है। मार्केट में डिमांड के सवाल पर ललित बतातै हैं कि 8-10 दिनों तक फल खराब नहीं होता। ऐसे में जोधपुर में डिमांड नहीं होने या कम होने पर जयपुर की मंडियों में अच्छी कीमत मिलती है।

पश्चिम राजस्थान में सबसे बड़ी नर्सरी
बकौल ललित, ग्राहकों को ये बताना भी जरूरी होता है कि पौधों में पानी कब देना है। कीड़ों से बचाव की जानकारी भी नर्सरी में दी जाती है। ललित नर्सरी की देखरेख खुद करते दिखते हैं। आसपास के किसानों को भी रोजगार के अवसर मुहैया करा रहै हैं। वे आसपास के किसानों से सब्जियों की किस्में भी खरीदते हैं। 2018 में तैयार की गई स्वास्तिक नर्सरी के बारे में ललित बताते हैं कि जोधपुर सिटी से 10-15 मिनट की ड्राइव पर उनकी नर्सरी पहुंचा जा सकता है।
नर्सरी में लगभग 500 पौधे
उन्होंने कहा कि आंध्र प्रदेश और पुणे से वे पौधे मंगवाते हैं। एयर प्यूरीफायर जैसे प्लांट कोलकाता, आंध्र और पुण से मंगवाना पड़ता है। मौसम से पौधों के संरक्षण पर ललित बताते हैं कि ग्रीन हाउस या शेडनेट हाउस जैसे सेटअप में पौधों को गर्मियों से बचाने में मदद मिलती है। उनकी नर्सरी में लगभग 500 पौधे हैं। ये पश्चिमी राजस्थान की सबसे बड़ी नर्सरी है।कोलकाता से बीज मंगवाकर गेंदे के फूल लगाए। लगभग 50 हजार रुपये का मुनाफा। वर्मीकंपोस्ट से लगभग एक लाख रुपये की खाद बेचते हैं।

किचन गार्डन पर किसानों की पत्नियों को सुझाव
नर्सरी में पौधों के प्रकार और किचन गार्डन जैसी इनोवेटिव बगीचों में महिलाओं की रूचि पर खुशबू बताती हैं कि सिंसवेरिया और एक्जोरा जैसे प्लांट अपनी नर्सरी में रखती हैं। किसानों की पत्नियों को सुझाव देने पर खुशबू बताती हैं कि महिलाओं के नजरिए से उन्हें पौधों का चुनाव करने में मदद करती हैं। पानी और कीटनाशकों के बारे में जानकारी रखने से पौधों की लाइफ लंबी होती है। उन्होंने कहा कि सब्जियों के साथ सीजनल फूल की बागवानी कर मार्केट में इन्हें बेचा जा सकता है।

एग्रोटूरिज्म में अपार संभावनाएं, गांव घूमना चाहते हैं लोग
जोधपुर से 12 किलोमीटर दूर सुरपुरा बांध के पास रहने वाले ललित एग्रोटूरिज्म जैसे सुझाव देते हुए बताते हैं कि इसे बढ़ावा देने का मॉडल बनाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि एक गांव में ऐसे सेंटर होने की बात की जानकारी सार्वजनिक कर किसानों की आमदनी बढ़ाई जा सकती है। उन्होंने कहा कि पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए खेत को कृषि पर्यटन के रूप में विकसित किया है। उन्होंने खुद की पहल पर बताया कि स्कूल के बच्चों और बाहर से राजस्थान घूमने आने वाले पर्यटकों के लिए कमरे बनवाए हैं। पूरे दिन फार्म में घूम सकरते हैं। खाने पीने के लिए छोटे से रेस्त्रां का इंतजाम किया है। डेयरी का भी सेटअप है। ऐसे में एग्रोटूरिज्म के कॉन्सेप्ट में काफी संभावनाएं हैं। गार्डन जैसी जगह पर सोशल गैदरिंग की जा सकती है।

विदेशी पर्यटकों के लिए आरामदेह सुविधाएं
विदेशी पर्यटकों को गांवों से जोड़ने के सवाल पर उन्होंने बताया कि जोधपुर आने वाले लोगों को वास्तविक गांव और पारंपरिक खेती दिखाने के अलावा वे सफारी जैसी सर्विस भी देते हैं। उन्होंने बताया कि थाइलैंड, अमेरिका और कनाडा से कुछ लोग उनके पास आकर ठहर चुके हैं। दूसरे किसानों को एग्रो पर्यटन से जुड़े सुझाव देते हुए ललित ने कहा कि बाहर से आने वाले लोगों को एक ही गांव में अलग-अलग तरीके की गतिविधियां, मसलन चमड़े का काम करने वाला, कुम्हार का काम, खान-पान की संस्कृति और रीति-रिवाज के बारे में जानकारी देने के लिए पर्यटन का सहारा लिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि लघु उद्योगों से जुड़े किसानों की आमदनी बढ़ेगी।

देसी ऑफर, किसानों की कमाई शानदार
खेती के देसी तरीकों और नर्सरी में खुद के प्रयासों के बारे में ललित बताते हैं कि वे खुद भी पौधों की देखरेख करते हैं। उन्होंने बताया कि उनके फार्म पर घूमने आने वाले लोगों को देसी गाय के दूध और घी के अलावा देसी भोजन परोसे जाते हैं। बागवानी में हाथ आजमाने के शौकीन लोगों के लिए थोड़ी जमीन अलग से रखी है।
फुर्सत के पल जीना चाहते हैं लोग
उन्होंने कहा कि ऑर्गेनिक फल और सब्जियों का ऑफर मिलने के बाद लोग गांवों में जाकर फुर्सत के पल जीना चाहते हैं। ऐसे में एग्रोटूरिज्म की मदद से राजस्थान की संस्कृति, बैलगाड़ी जैसी सवारी के ऑप्शन से लोगों को क्वालिटी टाइम बिताने का स्पेस दिया जा सकता है। बकौल ललित, पर्यटक और किसान पशु-पक्षियों की आवाज के बीच खेत से सीधे फल-सब्जी लेकर उपभोग करते हैं। ऐसे में स्थानीय लोगों के लिए ये अच्छी आय का शानदार श्रोत है।

मेहनत को मिली पहचान, सरकारी प्रोजेक्ट से बढ़ा टर्नओवर
खुद को मिलने वाले सम्मान के बारे में ललित बताते हैं कि राजस्थान सरकार की ओर से उन्हें वीर दुर्गादास अवॉर्ड समेत कई अन्य पुरस्कार मिल चुके हैं। ललित ने कहा कि NITI आयोग ने भी उनसे किसानों की आय दोगुनी करने पर सलाह ली है। गांवकनेक्शन डॉटकॉम की एक रिपोर्ट के मुताबिक ललित ने सबसे पहले खीरे की खेती की। आधे एकड़ जमीन पर 28 टन खीरे की फसल हुई। ललित बताते हैं कि खीरे की फसल में चार लाख की लागत आई, मुनाफा 9 लाख रुपये हुआ। खीरे के बीज तुर्की से मंगवाए। ड्रिप इरीगेशन से कम पानी में शानदार फसल। पपीता, अनार और स्ट्रॉबेरी की खेती भी शुरू की।
सरकारी प्रोजेक्ट मिले तो टर्नओवर बढ़ा
खेती के बारे में ललित ने बताया कि अपने खेतों में दो साल बाद उन्होंने बेलदार टमाटर की रोपाई की। तीन लाख खर्च हुए। 8-9 लाख रुपये कमाए, यानी लगभग 50 फीसद प्रॉफिट हुआ। साल 2018-19 में 35 लाख का टर्नओवर। 40 फीसद यानी 14 लाख का प्रॉफिट हुआ। टर्नओवर बढ़कर 60-65 लाख पहुंचा। मुनाफा 25 फीसद क्योंकि एग्रोटूरिज्म के कॉन्सेप्ट पर निवेश करते गए। सरकारी प्रोजेक्ट मिलने के कारण नर्सरी का टर्नओवर लगभग एक करोड़ रुपये हो गया है। 2020 में 83 लाख रुपये में आईआईटी जोधपुर को ग्रीन कैंपस बनाने का काम मिला था।
ये भी पढ़ें- Millets : इन अनाजों से बनते हैं 'सुपरफूड', बाजरा जैसे मिलेट्स की खेती में सुनहरा भविष्य