वाराणसी से चुनावी रिपोर्ट: सभी सीटों पर 'बागी' बिगाड़ रहे पार्टी प्रत्याशियों का गणित
वाराणसी की आठों सीटों पर हर दल के प्रत्याशी अपनी ही पार्टी के बागी की चुनौती का सामना कर रहे हैं। बागियों की वजह से प्रत्याशियों का चुनावी गणित भी प्रभावित हो रहा है।
सभी इस कोशिश में लगे हैं कि किसी तरह से बागियों को शांत कराया जाये ताकि चुनाव रंग में आ सके। बागियों के नामांकन कर देने और प्रचार शुरू कर देने से चुनाव के समर में कूदे अलग-अलग दलों के उम्मीदवार बेचैन हैं। अभी तक जो हालात सामने हैं उससे तो यही लगता है की बागी उम्मीदवारों ने पार्टी के प्रत्याशियों की नींद हराम कर रखी हैं। अब पार्टी के नेताओं का यही जोर हैं कि नाराज प्रत्याशी का नामांकन वापस कराया जाए और उनको अपने साथ लाया जाए।
बनारस
की
आठों
विधानसभा
पर
जाने
कैसे
हैं
हालात
बनारस
की
आठो
विधानसभा
पर
गुरुवार
को
नामांकन
का
सिलसिला
खत्म
हो
गया।
कुल
153
उम्मीदवारों
ने
अपना
पर्चा
दाखिल
कराया।
जिसमे
छह
विधानसभा
के
नतीजों
को
देखा
जाये
तो
रोहनिया
में
13
लोगो
ने
अपना
पर्चा
दाखिल
किया
था
जिसमे
सभी
वैध
हैं
,
अजगरा
में
14
में
से
सभी
सही
साबित
हुए
,
पिण्डरा
के
12
नामांकन
को
भी
सभी
पाए
गए।
कैंट
में
27
में
सिर्फ
एक
,
सेवापुरी
में
19
में
से
17
,
उत्तरी
में
24
में
से
18
प्रत्याशियों
को
सही
पाया
हैं
जबकि
शिवपुर
और
दक्षिणी
के
रिजल्ट
सामने
नहीं
आये
हैं।
कुल
मिला
कर
देखा
जाये
तो
सिर्फ
नौ
लोगो
के
पर्चे
ही
खारिज
हुए
हैं।
गौर करने वाली बात ये हैं की सबसे ज्यादा बागियों की संख्या उत्तरी विधानसभा में हो गयी है। इनमें पार्टी से खार खाए भाजपा के दो नेताओं ने भी परचा दाखिल किया हैं और इन्होंने पार्टी पर टिकट बंटवारे के पक्षपात से लेकर पैसे मांगने तक का आरोप लगाया है। शुरू से ही विरोध कर रहे है कि प्रत्याशी बदल जाये लेकिन इनकी बात सिरे से खारिज कर दी गईं। जिसके परिणाम स्वरूप इन्होंने पार्टी से नाता तोड़ लिया और अब एक ही उद्देश्य है कि भाजपा उम्मीदवार को किसी भी कीमत पर हराना है। दूसरी ओर देखा जाये तो अन्य विधानसभाओ में भी लोगों ने निर्दल के रूप में नॉमिनेशन फाइल किया हैं और सभी ने अपने-अपने विधान सभा में एक-एक प्रत्याशियों को टारगेट किया हुआ हैं।
पटकथा
लिखने
में
लगे
है
ऐसे
विभीषण
कहते
है
की
उस
घाव
का
इलाज
आसान
होता
है
जो
ऊपरी
होता
हैं
पर
लेकिन
अंदरूनी
घाव
बहुत
है
घातक
होते
हैं।
यही
हाल
इस
समय
दलो
का
हैं
,
यह
हर
विधानसभा
की
कहानी
हैं
और
ज्यादातर
दल
इससे
प्रभावित
हैं।
हर
एक
की
नाराजगी
की
अपनी
एक
वजह
हैं
इस
नाराजगी
में
कई
राजनैतिक
दलो
में
भीतरघातिये
पैदा
कर
दिए
हैं।
पहचान
करने
की
कोशिश
पर
दल
में
हो
रही
हैं
लेकिन
अभी
तक
किसी
को
भी
इसमें
सफलता
नहीं
मिली
पायी
हैं।
इसका
सबसे
बढ़
कारण
है
की
इन्होंने
बीते
पांच
सालो
में
अपने-अपने
क्षेत्रो
में
जमकर
मेहनत
की
पैसा
बहाया
लोगों
के
कई
कार्य
कराये
और
जनहित
में
कई
कदम
भी
उठाये।
चुनाव
आने
के
साथ
ही
तैयारी
की
और
दावेदारी
का
परिणाम
ये
मिला
की
किसी
और
को
उम्मीदवार
बना
दिया
गया।
ऐसे
में
उनमे
कई
ऐसे
भी
हैं
जिन्होंने
बिना
पार्टी
से
बाहर
जाये
अपने
ही
प्रत्याशी
को
सबक
सीखने
की
तैयारी
कर
रखी
हैं।
जो
अपने
लोगो
को
जुटा
रहे
हैं
और
अंतिम
दौर
में
मतों
का
धुर्वीकरण
किसी
एक
प्रत्याशी
के
पक्ष
में
करेंगे।
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