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मुश्किल में योगी सरकार, CM के पास पहुंची उनके ही केस की फाइल

पुलिस ने योगी और चार अन्य के खिलाफ आईपीसी की धारा 153-ए के तहत केस दर्ज किया था। जिसमें उन पर जाति और धर्म के आधार पर भड़काऊ भाषण देने का आरोप लगा था।

By Brajesh Mishra
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लखनऊ। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के सामने एक मुश्किल स्थिति आ गई है। गृह विभाग के पास यूपी पुलिस की एक अर्जी दो साल से लटकी है जिसमें योगी आदित्यनाथ और चार अन्य के खिलाफ भड़काऊ भाषण देने के मामले में केस शुरू करने की अनुमति मांगी गई है। योगी आदित्यनाथ के अलावा गोरखपुर से बीजेपी विधायक राधामोहन दास अग्रवाल और राज्यसभा सांसद शिव प्रताप शुक्ल का नाम भी इस फाइल में है।

2015 में दी गई थी अखिलेश सरकार को अर्जी

2015 में दी गई थी अखिलेश सरकार को अर्जी

पुलिस ने योगी और चार अन्य के खिलाफ आईपीसी की धारा 153-ए के तहत केस दर्ज किया था। जिसमें उन पर जाति और धर्म के आधार पर भड़काऊ भाषण देने का आरोप लगा था। पुलिस ने गृह विभाग में अर्जी देकर उनके खिलाफ चार्जशीट फाइल करने की अनुमति मांगी थी। यूपी की क्राइम ब्रांच सीआईडी की ओर से अखिलेश यादव सरकार को यह अर्जी 2015 में दी गई थी। READ ALSO: पूर्व सांसदों को मिलने वाली पेंशन पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से मांगा जवाब

छेड़छाड़ के बाद भड़की थी सांप्रदायिक हिंसा

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'योगी के भाषणों के वीडियो मौजूद'

'योगी के भाषणों के वीडियो मौजूद'

गोरखपुर के पूर्व जर्नलिस्ट और एक्टिविस्ट परवेज परवाज (62) ने इस घटना के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की कोशिश की लेकिन पुलिस ने मना कर दिया। हाईकोर्ट के दखल के बाद 26 सितंबर 2008 को पुलिस ने इस मामले में शिकायत दर्ज की। एफआईआर के मुताबिक, योगी आदित्यनाथ ने हिंदू युवक की मौत का बदला लेने के लिए भड़काऊ भाषण दिया। परवेज ने दावा किया कि उनके पास योगी के भाषणों के वीडियो मौजूद हैं। उन्होंने दावा किया कि ये भाषण कर्फ्यू के दौरान दिया गया था। READ ALSO: योगी आदित्यनाथ के किचन से लेकर गायों तक का ख्याल रखते हैं मुस्लिम

अखिलेश सरकार ने CB-CID को ट्रांसफर किया केस

अखिलेश सरकार ने CB-CID को ट्रांसफर किया केस

परवेज ने आरोप लगाया कि गोरखपुर में भड़की हिंसा के पीछे योगी, अग्रवाल, शुक्ल, पूर्व मेयर अंजू चौधरी और पूर्व बीजेपी एमएलसी वाईडी सिंह के नेता भी मौजूद थे। दिसंबर 2008 में अंजू चौधरी ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी देकर परवेज की एफआईआर को चुनौती दी थी जिसके बाद कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई पर रोक लगा दी थी। बाद में मामले की सुनवाई आगे बढ़ी और दिसंबर 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने एफआईआर के संबंध में हाईकोर्ट के फैसले को सही पाया और जांच के आदेश दिए। उस वक्त अखिलेश यादव सरकार सत्ता में आ चुकी थी और मामला सीबी-सीआईडी को ट्रांसफर कर दिया गया। READ ALSO: PM मोदी के पास आया एक फोन और बदल गया यूपी के CM का चेहरा

हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा केस का स्टेटस

हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा केस का स्टेटस

परवेज के वकील फरमान नकवी ने कहा, 'केस को फिर शुरू करने के लिए हमने इलाहाबाद हाईकोर्ट में साल 2015 में अपील की। अर्जी पर आदेश देने से पहले कोर्ट ने सरकार से केस के स्टेटस को लेकर जवाब मांगा। 20 फरवरी 2017 को दिए गए हलफनामे में सरकार ने बताया कि सीबी-सीआईडी ने पहले ही चार्जशीट दायर करने को लेकर अर्जी दी है, जो कि फिलहाल राज्य सरकार के पास रुकी हुई है।' READ ALSO: CM बनते ही एक्शन में आए योगी आदित्यनाथ, लखनऊ में ताबड़तोड़ बैठकों का दौर जारी

रिपोर्ट में पांचों आरोपियों के खिलाफ केस की बात

रिपोर्ट में पांचों आरोपियों के खिलाफ केस की बात

10 मार्च 2017 को इलाहाबाद हाईकोर्ट को बताया गया कि राज्य सरकार ने मामले में ऐसा हलफनामा दिया है। जिसके बाद कोर्ट ने राज्य सरकार से इस मामले में जवाब मांगा था कि वह इस मामले में विस्तार से जानकारी दे। मामले की जांच करने वाले सीबी-सीआईडी इंस्पेक्टर चंद्र भूषण उपाध्याय ने बताया कि उन्होंने योगी समेत पांचों आरोपियों के खिलाफ केस चलाने की रिपोर्ट दी। फिलहाल अब उपाध्याय रिटायर हो चुके हैं। सीबी-सीआईडी के अधिकारी इस मामले में बयान देने से बच रहे हैं।

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English summary
Yogi government in trouble file of hate speech case against adityanath on his table.
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