सपा और कांग्रेस गठबंधन बेअसर, क्या बरेली में खुल पाएगा खाता?
सपा से गठबंधन का लाभ कांंग्रेस को बरेली में मिलता नजर नहीं आ रहा। यहां से किसी भी सीट पर कांंग्रेस के जीतने के आसार कम ही हैं।
बरेली। उत्तर प्रदेश में गठबंधन से भले ही सपा और कांग्रेस हाईकमान ने उम्मीदें लगा रखी हों लेकिन बरेली जिले से नतीजे पक्ष में होंगे, यह कहना अभी मुश्किल है। बरेली की राजनीति की फ़िज़ा में दोनों दलों के दिल नहीं मिल पाए है और दोनों में दिखावा ऐसे हो रहा है जैसे कुंभ के मेले के दौरान बिछड़े दो भाई काफी समय के बाद मिले हों। टिकट कटने से निराश उम्मीदवार कांग्रेस को मदद करने के मूड में नहीं हैं। वहीं सपा के वोटर, कांग्रेस उम्मीदवार को भी अपना उम्मीदवार मानकर सीट को जिताये, ऐसी भी उम्मीद कम है ।
ONE इंडिया ने जमीनी हकीकत जानने के लिए उन विधानसभाओं में स्थानीय लोगों से बात की और जानने की कोशिश की कि क्या वास्तव में इस गठबंधन से दोनों दलों को बरेली जिले में कोई फायदा पहुंचा है ?
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कैंट सीट : भाजपा के कब्जे से सीट निकालना मुश्किल
कैंट सीट पर वर्तमान में भाजपा का कब्जा है । लेकिन इस विधानसभा के लोग भाजपा विधायक के काम से खुश नहीं हैं। वहीं इस सीट के इतिहास पर नज़र डालें तो यह कांग्रेस की परंपरागत सीट है। इस सीट पर कांग्रेस का अधिकतर कब्ज़ा रहा है । लेकिन 20 सालों से यहां का वोट भटका है वह कभी भाजपा और कभी निर्दलीय प्रत्याशी के पास गया है । वर्तमान में भी इस सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार नवाब मुजाहिद हसन अन्य प्रत्याशी की तुलना में कमजोर है । उनका जनता से सीधे कनेक्शन नहीं है । पिछले विधानसभा के दौरान हुए परिसीमन ने भी काफी हद तक यह सीट भाजपा के झोली में डाल दी है । इस सीट पर अधिकतर वोट पुरानी शहर विधानसभा का मतदाता है। जो केवल हिन्दू उम्मीदवार को वोट करना पसंद करता है । कैंट सीट पर सपा और बसपा मुस्लिम वोटों के साथ नम्बर दो की फाइट करते नज़र आये हैं। सपा और कांग्रेस के गठबंधन से इस विधानसभा सीट पर कोई खास फर्क दिखाई नहीं दे रहा है क्योंकि दोनों दलों की दिलों में एक दूसरे के लिए गुंजाइश कम दिखाई दे रही है।
मीरगंज : कांग्रेस प्रत्याशी का कोई प्रभाव नहीं!
मीरगंज सीट पर पिछले दो चुनावों में बसपा जीतती आई है। इस सीट पर सीधे तौर पर बसपा और भाजपा में टक्कर है। इस सीट पर कांग्रेस को सपा गठबंधन से कोई फायदा होते नहीं दिख रहा है। यहां का सपा वोटर भी कांग्रेस के साथ खड़ा नज़र नहीं आता। वहीं उम्मीदवार नरेंद्र पाल सिंह की बात करें तो उनका प्रभाव इस सीट पर नहीं दिख रहा है। कांग्रेस का चुनाव प्रचार भी दम तोड़ चुका है। ऐसे में यह सीट भी कांग्रेस के खाते में आती नज़र नहीं आ रही है।
बरेली शहर विधानसभा सीट : टक्कर में कांग्रेस कहीं नहीं
शहर विधानसभा सीट पर भाजपा का कब्ज़ा है । डॉ अरुण शहर सीट से 2007 में सपा से चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। बाद में डॉ अरुण बीजेपी में शामिल हुए और शहर शीट से 2012 में विधानसभा का चुनाव लड़े और जीत हासिल की। इस सीट पर कांग्रेस लंबे समय से कब्ज़ा नही कर सकी है । इस सीट पर भाजपा और बसपा की कड़ी टक्कर है । गठबंधन के लिहाज़ से कांग्रेस के प्रत्याशी प्रेम प्रकाश अग्रवाल कमजोर नज़र आते हैं। उनकी जनता में अच्छी पकड़ नहीं होने की कीमत सपा और कांग्रेस को उठानी पड़ सकती है ।
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