आखिर बिहार के एग्जिट पोल की यूपी से तुलना क्यों गलत है?
आखिर क्यों एग्जिट पोल के मामले में यूपी बिहार से काफी अलग है, दोनों ही राज्यों के सियासी गणित को एग्जिट पोल के नतीजों से मिलाया नहीं जा सकता है।
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के चुनाव के बाद तमाम एग्जिट पोल के सामने आने के बाद जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी को बढ़त मिलती दिखाई दे रही है उसके बाद तमाम विपक्षी दलों ने बिहार चुनावों का उदाहरण देना शुरु कर दिया है कि जिस तरह से बिहार के चुनाव के एग्जिट पोल गलत साबित हुए थे उसी तरह यूपी में भी एग्जिट पोल फिर से गलत साबित होगा, लेकिन दोनों ही राज्यो के चुनावी माहौल और सियासी उठापटक पर नजर डालें तो यह कुछ और ही कहानी बयां करता है।
1-सपा कुनबा एक-दूसरे के खिलाफ लड़ रहा था
उत्तर प्रदेश का चुनावी माहौल बिहार के चुनावी माहौल से काफी अलग है, एक तरफ जहां बिहार में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव ने आपसी तमाम मतभेदों को दरकिनार कर एक साथ चुनाव लड़ा तो दूसरी तरफ यूपी में समाजवादी पार्टी के भीतर मचे घमासान के चलते सपा को नुकसान उठान पड़ सकता है। चुनावों से ठीक पहले सपा के भीतर अखिलेश यादव ने जिस तरह से बगावती सुर छेड़े उसके बाद शिवपाल और अखिलेश का खेमा जमीनी तौर पर एक दूसरे के खिलाफ लड़ाई करने लगे, चुनाव प्रचार के दौरान अखिलेश यादव, शिवपाल यादव, मुलायम सिंह यादव, रामगोपाल यादव, अपर्णा यादव के बीच जुबानी जंग सुनने को मिली वहीं इससे इतर बिहार में इस तरह का कोई भी आपसी विवाद नहीं था जिसका नुकसान भाजपा को उठाना पड़ा था।
2- समाजवादी पार्टी की कानून-व्यवस्था से लोग त्रस्त
उत्तर प्रदेश में सपा के लिए जो सबसे बड़ा मुद्दा बना वह था कानून व्यवस्था का बुरी तरह से विफल होना। यूपी जिस तरह से अपराध के ग्राफ में सपा सरकार के कार्यकाल में आगे बढ़ा उसका पार्टी को नुकसान हो सकता है। तमाम विपक्षी दलों ने मथुरा में अवैध जमीन कब्जे के मुद्दे, मुजफ्फरनगर दंगे के मुद्दे, बुलंदशहर गैंगरेप, बदायूं रेप जैसे मुद्दों को उठाया उसने पार्टी की छवि को काफी नुकसान पहुंचाया। वहीं बिहार में नीतीश कुमार इस दाग से खुदको बचाने में काफी हद तक सफल हुए और उन्होंने खुद की छवि को बेहतर प्रशासनिक के दौर पर स्थापित करने में सफलता हासिल की। इस लिहाज से दोनों ही राज्यों की परिस्थितियां चुनावी नतीजों पर भी असर डाल सकती हैं।
3- मुलायम -शिवपाल को पार्टी से किनारे लगाना
मुलायम सिंह ने समाजवादी पार्टी की नींव रखी और तकरीबन तीन दशक से अधिक समय तक इस पार्टी को आगे बढ़ाया और कई बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, वहीं शिवपाल यादव ने मुलायम सिंह का साथ देते हुए पार्टी के मूलभूत ढांचे को मजबूत करने में उनकी काफी हद कम मदद की। एक तरफ जहां मुलायम सिंह यादव पार्टी को राजनीतिक उंचाइयों पर पहुंचाने में जुटे थे तो दूसरी तरफ शिवपाल यादव जमीनी स्तर पर पार्टी के कार्यकर्ताओं को इकट्ठा करने में अहम भूमिका निभाते थे। ऐसे में जिस तरह से सपा के भीतर विवाद हुआ और उसके बाद दोनों ही नेताओं को किनारे लगा दिया गया उसका लोगों के बीच नकारात्मक संदेश गया और प्रचार के दौरान देखने को भी मिला। पूरे चुनाव प्रचार में जहां अखिलेश यादव ने 200 से अधिक रैलियों को संबोधित किया तो मुलायम सिंह यादव ने सिर्फ दो रैलियों को संबोधित किया और शिवपाल यादव ने अपनी विधानसभा क्षेत्र जसवंत नगर से बाहर जाना भी वाजिब नहीं समझा।
4- बिहार में नीतीश की बेदाग छवि-विवादों से दूरी
नीतीश कुमार ने अपनी लोकप्रियता के बल पर भाजपा के साथ मिलकर एक सफल सरकार चलाई और इसके बाद उन्होंने बिहार को काफी हद तक अलग राज्य के तौर पर स्थापित करने में सफलता हासिल की, इसी लोकप्रियता के चलते उन्होंने मोदी लहर के दौर में भी बिहार में दोबारा सत्ता हासिल करने में सफलता हासिल की। वहीं दूसरी तरफ अखिलेश यादव यूपी में अपनी छवि को बेदाग बनाने में तो सफल हुए लेकिन उनकी नाक के नीचे जिस तरह से प्रदेश में खनन घोटाला, नोएडा प्रकरण, गायत्री प्रजापति जैसे मामले हुए उसने उनकी छवि को काफी नुकसान पहुंचाया।
5- बिहार में जदयू-आरजेडी साथ
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद जिस तरह से मोदी लहर ने यूपी बिहार में जबरदस्त सफलता हासिल की, उसे भांपते हुए राजद और जदयू जो प्रदेस की दो बड़े दल थे ने आपस में गठबंधन किया और अपने वोटों को बंटने से रोकने में सफलता हासिल की, लेकिन कुछ इसी तरह का गठबंधन यूपी में बन नहीं पाया और सपा-बसपा ने अलग-अलग चुनाव लड़ा। लिहाजा प्रदेश में दोनों ही दलों के अलग-अलग वोट बैंक का भी भाजपा को काफी हद तक फायदा मिल सकता है।