आखिर मायावती के लिए क्यों जरूरी हैं मुख्तार अंसारी बंधु
आखिर मायावती के लिए मुख्तार अंसारी क्यों हैं जरूरी, दलित वोटर और मुस्लिम वोट बैंक के समीकरण को साधने के लिए अहम है यह गठबंधन
लखनऊ। यूपी की सियासत में बाहुबली हमेशा से अपनी अलग पैठ और रसूख रखते हैं और तमाम दलों में उनकी पैठ उनके संसदीय क्षेत्र में उनके दबदबे को दर्शाती है। मुख्तार अंसारी जिनका नाम कई हत्याओं, लूट और अपराध की घटनाओं में दर्ज है और वह तकरीबन 10 साल से जेल की सलाखों के पीछे हैं उन्हें एक बार फिर से बसपा में जगह मिली है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने उन्हें पार्टी से टिकट देकर उनकी महत्ता को साफ किया है। अफजाल अंसारी और मुख्तार अंसारी दो ऐसे नाम हैं जिसमें एक बंदूक के दम पर लोगों में खौफ पैदा करता है तो दूसरा उस खौफ की सियासत करता है।
पूर्वांचल की 20 सीटों पर नजर
मुख्तार अंसारी जेल के अंदर से ही प्रदेश की सियासत में अपनी धमक बनाए रखते हैं, पहले बसपा फिर सपा और आखिरकार एक बार फिर से उन्होंने बसपा का दामन थामा है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में अंसारी की महत्ता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां मुस्लिम और यादव मतदाता मिलकर कुल 30 फीसदी हैं जोकि किसी भी पार्टी के लिए निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। इसी समीकरण को साधने के लिए सपा ने कौमी एकता दल के साथ समझौता किया था लेकिन परिवार के भीतर विद्रोह के बाद यह गठबंधन टूट गया और बसपा ने मुख्तार अंसारी को हाथो हाथ थाम लिया। इस पूरे क्षेत्र में तकरीबन 20 से अधिक सीटों पर अंसारी बंधुओं का दबदबा है इसी को ध्यान में रखते हुए मायावती ने उन्हें अपनी पार्टी में शामिल करने का फैसला लिया है।
मऊ सदर सीट पर दलित-मुस्लिम समीकरण
मऊ सदर विधानसभा सीट से मुख्तार अंसारी लगाातर तीन बार से चुनाव जीतते आ रहे हैं, यहां मुस्लिम वोटरों की बहुतायत अंसारी की जीत का राज है। यहां का दलित वोट बैंक तमाम दलों के बीच बंट जाता है जिसके चलते एकमत मुस्लिम समुदाय अंसारी की जीत रास्ता हर बार साफ करता है। मऊ में यादव, राजभर, चौहान, राजपूत, भूमिहार, ब्राह्मण, मल्लाह सहित अनुसूचित जाति के वोटर भी हैं, लेकिन यह वोट बैंक एकजुट होकर किसी एक दल को अपना वोट नहीं देता है। बसपा ने दलित वोट बैंक व मुस्लिम वोटबैंक के इसी समीकरण को साधने के लिए अंसारी बंधुओं के साथ गठबंधन किया है, यहां बंटा हुआ दलित वोट बैंक एकजुट होकर मायावती के लिए जीत की राह प्रशस्त कर सकता है।
मुस्लिम
वोटर-
115340
अनुसूचित
जाति
वोटर-
120735
यादव
वोटर-
45780
चौहान
वोटर-
40335
भूमिहार-
5370
पंडित-
18740
मल्लाह-
3760
राजपूत-
48380
घोसी मऊ विधानसभा क्षेत्र में भी है अंसारी बंधुओं का दबदबा
कौमी एकता दल के बसपा में विलय से पहले मायावती ने यहां से वसीम इकबाल को टिकट दिया था लेकिन अब जब अंसारी की पार्टी का विलय हो गया तो मायावती ने उनकी जग अंसारी की पार्टी को यह टिकट दिया है। 2012 के चुनाव में फागू चौहान बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था और वह हार गए थे। इस चुनाव में मुख्तार अंसारी को घोसी में तकरीबन 40 हजार वोट मिले थे। इस संसदीय क्षेत्र में पहले नंबर पर दलित वोटर आते हैं जबकि मुस्लिम वोटर दूसरे नंबर पर आते हैं, लिहाजा मायावती की कोशिश है कि मुस्लिम वोटरों के साथ दलित वोट बैंक को एकजुट कर इस सीट पर जीत दर्ज करे। लेकिन यहां जो दिलचस्प बात है वह यह कि फागू चौहान इस बार भाजपा के टिकट से चुनावी मैदान में हैं।
दलित
वोटर-
135480
मुस्लिम
वोटर-
90280
यादव
वोटर-
65430
चौहान
वोटर-
76280
भूमिहार
वोटर-
40230
राजपूत
वोटर-
35000
मोहम्मदाबाद (गाजीपुर) विधानभा सीट पर अंसारी बंधुओं का कब्जा
इस सीट पर भी अंसारी परिवार का पूरा दबदबा है, इस सीट पर अंसारी बंधुो का 1985 से कब्जा है लेकिन 2002 में भाजपा नेता कृष्णानंद राय ने इस सीट पर जीत हासिल की थी, लेकिन उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया था। इस हत्या का आरोप मुख्तार अंसारी पर है। राय की हत्या के बाद उनकी पत्नी इसी सीट से जीत गई, लेकिन एक बार फिर से 2007 के चुनाव में अंसारी बंधुओं ने इस सीट पर जीत दर्ज की, अभी तक इस सीट पर सिब्गतुल्लाह अंसारी का कब्जा है और वह यहां से विधायक हैं। यहां कुल 368712 वोटर हैं जिसमे भूमिहार वोटर 125000, दलित वोटर 65000, यादव वोटर 30000, मुस्लिम वोटर 25000 है। इसी आंकड़ें को ध्यान में रखते हुए मायावती ने एक बार फिर से दलित व मुस्लिम वोटर को एक साथ लाने की कोशिश की है।