यूपी चुनाव: आखिर क्यों नहीं बन सका लाखों लोगों का पलायन चुनावी मुद्दा?
बांदा, चित्रकूट, महोबा, हमीरपुर, जालौन, झांसी और ललितपुर जिलों के 32 लाख से ज्यादा किसान-मजदूरों का पलायन किसी दल की नजर में नहीं रहा।
बांदा। उत्तर प्रदेश के कैराना विधानसभा सीट में हिन्दू मतदाताओं के कथित पलायन का मुद्दा इस चुनाव में छाया हुआ है, लेकिन बुंदेलखंड में कुपोषण, भुखमरी और आर्थिक तंगी की वजह से एक दशक के अंतराल में बांदा, चित्रकूट, महोबा, हमीरपुर, जालौन, झांसी और ललितपुर जिलों के 32 लाख से ज्यादा किसान-मजदूरों का पलायन किसी दल की नजर में नहीं रहा और न ही इस चुनाव में इसे मुद्दा बनाया जा रहा। और तो और इस मसले में केन्द्रीय मंत्रिमंडल के आंतरिक समिति की रिपोर्ट आज भी प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में धूल फांक रही है।
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उत्तर प्रदेश की कैराना विधानसभा सीट के हिन्दू मतदाताओं के कथित पलायन का मुद्दा न्यायालय तक पहुंच गया है और न्यायालय ने भी वहां के पलायित मतदाताओं को सुरक्षित मतदान कराने का आदेश दिया है। लेकिन अफसोस जनक बात यह है कि एक दशक के अंतराल में कुपोषण, भुखमरी और आर्थिक तंगी से आजिज होकर बुंदेलखंड़ के बांदा, चित्रकूट, महोबा, हमीरपुर, जालौन, झांसी और ललितपुर 32 लाख, 75 हजार, 597 किसान-मजदूर अपना घर-बार छोडकर अन्यत्र पलायन कर गए हैं, इन्हें वापस बुलाने की पहल न तो राज्य सरकार ने की और न ही केन्द्र सरकार संतुलित विकास के ओर कोई कदम बढ़ाया है।
डॉ मनमोहन सिंह की अगुआई वाले (संप्रग-दो) के केन्द्रीय मंत्रिमंडल की आंतरिक समिति ने 2009-10 में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में बंटे बुंदेलखंड़ 13 जिलों से करीब 62 लाख किसान-मजदूरों के पलायन का जिक्र करते हुए एक रिपोर्ट प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को सौंपी थी, इस रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड़ के बांदा जिले से सात लाख, 37 हजार, 920, चित्रकूट से तीन लाख, 44 हजार, 801, महोबा जिले से दो लाख, 97 हजार, 547, हमीरपुर जिले से चार लाख, 17 हजार, 489, जालौन से पांच लाख, 38 हजार, 147, झांसी से पांच लाख,58 हजार, 377 और ललितपुर जिले से तीन लाख, 81 हजार, 316 किसान-मजदूरों के पलायन का जिक्र है। आंतरिक समिति में जल संसाधन विकास विभाग, नेशनल रैन पैड एरिया एथाॅरिटी के सीईओ और कृषि एवं सहकारिता विकास विभाग के प्रतिनिधि शामिल थे।
इस समिति ने बुंदेलखंड़ के संतुलित विकास के लिए कुछ सुझाव भी दिए थे, इनमें बुंदेलखंड़ विकास प्राधिकरण के गठन के अलावा केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना, बेतवा नदी में बांध का निर्माण और उद्योगों की स्थापना के लिए सेंट्रल एक्साइज, आयकर, कस्टम तथा सर्विसेज टैक्स में शत प्रतिशत छूट कर संतुलित विकास करने की सिफारिश की गई है। यह केन्द्रीय रिपोर्ट अब भी प्रधानमंत्री कार्यालय में पड़ी है। न तो कांग्रेस की अगुआई वाली संप्रग-दो की सरकार ने अमल करने की जरूरत महसूस की और न ही नरेन्द्र मोदी के नूतृत्व की मौजूदा सरकार ही कुछ करने के संकेत दे रही है। इतना ही नहीं, कैराना की तरह कोई भी दल इसे चुनावी मुद्दा भी नहीं बना रहा।
पिछले विधानसभा चुनाव में 19 विधानसभा सीटों वाले बुंदेलखंड़ में सात-सात विधायक सपा और बसपा, चार कांग्रेस और एक भाजपा का विधायक चुना गया। 2014 के लोकसभा चुनाव में सभी चार सांसद भाजपा के जीते हैं, जिनमें झांसी सांसद साध्वी उमा भारती केन्द्र में मंत्री हैं। लाखों किसान-मजदूरों के पलायन के मामले को विधानमंडल में मुख्य विपक्षी दल बसपा ही नहीं, किसी भी दल के विधायकों ने नहीं उठाया। जबकि दोनों सदनों में नेता प्रतिपक्ष बांदा के ही वशिंदे हैं। लोकसभा या राज्यसभा में भी पहले विपक्ष में रही भाजपा और अब कांग्रेस भी उठाने की जरूरत नहीं समझ रही। हैरत की बात यह है कि कैराना में मतदाताओं के पलायन को भाजपा जोर-शोर से उठा रही है, लेकिन बुंदेलियों के पलायन पर वह चुप्पी साधे है।
उप्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और बांदा की नरैनी सीट से बसपा प्रत्याशी गयाचरण दिनकर से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि 'आंतरिक समिति की रिपोर्ट यदि पीएमओ में पड़ी है तो यहां के किसान-मजदूरों के पलायन के लिए पहले कांग्रेस और अब भाजपा जिम्मेदार है।' बसपा सरकार में सबसे ज्यादा विकास का दावा करते हुए उन्होंने कहा कि 'बहन जी ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में बुंदेलखंड़ को पृथक राज्य बनाए जाने का प्रस्ताव पारित कर केन्द्र सरकार को भेजा था, जब तक यह पृथक राज्य नहीं बनता, तब तक यहां के किसान-मजदूरों के पलायन को रोंकने की बात करना बेइमानी होगी।'
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