क्यों महीने में 1 बार योगी सरकार बैठेगी इलाहाबाद!
एक समय था जब इलाहाबाद फैसलों का शहर कहा जाता थ, यूं तो फैसले आज भी होते हैं लेकिन सिर्फ कोर्ट के। राजनीतिक फैसलों की जगह अब लखनऊ को मिल गई है।
इलाहाबाद। कभी लखनऊ की जगह यूपी प्रोविंशियल की राजधानी इलाहाबाद हुआ करती थी और सारे बड़े महकमे के मुख्यालय यही हुआ करते थे। बड़े बड़े राजनैतिक फैसले यही हुआ करते थे। लेकिन वक्त के साथ लखनऊ बहुत आगे निकल गया और इलाहाबाद मात्र एक शहर बनकर रह गया।
नई सरकार लाएगी इलाहाबाद का पुराना गौरव वापस!
लेकिन सूबे की योगी सरकार इलाहाबाद का पुराना राजनैतिक गौरव फिर वापस करने वाली है। शाह की रणनीति व पीएम मोदी की सहमति के साद डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की सलाह पर एक बड़ी पहल शुरू होने वाली है। जिसके तहत योगी सरकार हर माह अथवा दो माह में एक बार कैबिनेट की बैठक इलाहाबाद में करेगी।
भाजपा ने इलाहाबाद में किया था दो दिवसीय अधिवेशन
आपको याद होगा कि इलाहाबाद में भाजपा ने अपनी राष्ट्रीय अधिवेशन की दो दिवसीय बैठक बुलाई थी। जिसमे पीएम मोदी से लेकर भाजपा का हर नेता पहुंचा था। उसका असर भी देखने को मिला भाजपा प्रचंड बहुमत से सरकार बना चुकी है। यह एक तरह पूर्वी उत्तर प्रदेश को भाजपा का गढ बनाने की रणनीति के तहत होगा। क्योंकि वर्तमान समय में भाजपा की झोली जनता ने भर दी है। लोकसभा चुनाव की आहट दूर से आने लगी है। ऐसे में अभी तक बनी अपनी पकड़ को भाजपा और मजबूत करेगी। ताकि चाहकर भी विरोधी दल भाजपा की सीटों पर सेंध न लगा सके।
पीएम ने पहले ही दिये हैं संकेत
लोकसभा चुनाव की रैलियों से लेकर विधानसभा चुनाव में जीत के बाद भी जिस तरह से पीएम मोदी इलाहाबाद पर मेहरबान है और अपने बयान में बार बार इलाहाबाद की अहमियत का जिक्र करते हैं। उससे संकेत तो पहले ही मिलने लगे थे कि इलाहाबाद भाजपा के लिये फिर से सियासी गढ बनेगा।
इलाहाबाद से बोलती थी भगवा की तूती
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके मुरली मनोहर जोशी, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी, विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल ये कुछ ऐसे नेता थे जिनकी इलाहाबाद में मौजूदगी पर भगवा की इलाहाबाद से तूती बोलती थी। लेकिन वक्त के साथ सिंघल दुनिया से चले गये। जोशी व त्रिपाठी भी इलाहाबाद छोड़ गये। ऐसे में फिर से इलाहाबाद को मजबूत करने की पहल होने लगी है। एक डिप्टी सीएम व दो कैबिनेट मंत्री के साथ इलाहाबाद की साख बढी है।
संतो को साधने की कोशिश
राम मंदिर के मुद्दे पर संतो के एक गुट में भाजपा के प्रति रोष है। ऐसे में संतो को साधने के लिये यह बढिया रणनीति होगी। आगामी कुंभ मेले में संतो का जमघट होना है।उससे पहले संगमनगरी को भगवामय बनाने की पूरी कोशिश की जायेगी। ताकि लोकसभा चुनाव में संतों का पूरा साथ मिल सके। सीएम योगी की पहचान खुद में संत की है, जिसका पूरा फायदा उठाने के लिये यह रणनीति कारगर साबित हो सकती है।
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