भ्रष्टाचार के आरोपी यूपी के इस बाबू ने खुद को बचाने के लिए इन बड़े वकीलों की ली मदद
यूपीएसआईडीसी के मुख्य अभियंता अरुण मिश्रा का बचाव करने के लिए पिछले तीन साल में कई कानूनी दिग्गजों ने सुप्रीम कोर्ट और इलाहाबाद हाईकोर्ट में उपस्थित होकर उसका बचाव किया है।
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के एक नौकरशाह ने खुद पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद देश के बड़े वकीलों को खुद के बचाव के लिए उतारा। इनमें सोली सोराबजी, हरीश साल्वे, मुकुल रोहतगी समेत कई बड़े वकीलों के नाम शामिल हैं। इस नौकरशाह का नाम अरुण मिश्रा है जिस पर आय से कहीं अधिक अरबों की संपत्ति इकट्ठा करने और कई नकली बैंक खातों को चलाने का आरोप है।
अरुण मिश्रा पर लगे हैं भ्रष्टाचार के आरोप
उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास निगम (यूपीएसआईडीसी) के मुख्य अभियंता अरुण मिश्रा का बचाव करने के लिए पिछले तीन साल में कई कानूनी दिग्गजों ने सुप्रीम कोर्ट और इलाहाबाद हाईकोर्ट में उपस्थित होकर उसका बचाव किया है। कहा जाता है कि अरुण मिश्रा महीने में एक लाख से ज्यादा का वेतन उठाते हैं जबकि इन बड़े वकीलों की फीस एक दिन की पांच लाख से 20 लाख रुपये है। इस संबंध में हिंदुस्तान टाइम्स ने अरुण मिश्रा से संपर्क की कोशिश की, हालांकि कई कोशिश के बाद भी उनसे बात नहीं हो सकी। उनके चौकीदार ने बताया कि अभी वो कहीं बाहर गए हैं कब तक में लौटेंगे कहा नहीं जा सकता। अरुण मिश्रा को सीबीआई ने 2011 में अवैध तौर पर 65 फर्जी बैंक अकाउंट चलाने का आरोप है। इन बैंक अकाउंट में देहरादून का पीएनबी भी शामिल है। बताया जा है कि वह इस बैंक अकाउंट में काले धन छुपाकर रखता था।
साल 2011 में ईडी ने अरुण मिश्रा के दिल्ली स्थित पृथ्वीराज रोड पर एक कोठी को सीज किया। इसके साथ-साथ देहरादून में भी एक कोठी को सीज किया। 1986 में अरुण मिश्रा ने यूपीएसआईडीसी जॉइन किया था। बतौर अस्थायी सहायक अभियंता अरुण मिश्रा को 1989-90 में पहली बार सस्पेंड किया गया। उन पर गड़बड़ी के आरोप लगे, इसके बाद 1998 में सेलेक्शन के आधार पर फिर उन्हें इग्जेक्युटिव इंजीनियर बना दिया गया। 2003 में वो चीफ इंजीनियर बने, इसके बाद उन पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगने लगे। 2007 में पूरे मामले की जांच के लिए एसआईटी बनी। जिसके बाद अरुण मिश्रा सस्पेंड कर दिए गए और उनके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की गई। कानपुर में भी उनके 65 बैंक खाते सीज किए गए। 2011 में सीबीआई ने छापा मारकर 100 फर्जी बैंक अकाउंट्स का पता लगाया। 2011 में ईडी ने अरुण मिश्रा के खिलाफ केस दर्ज किया। उसी समय सीबीआई ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेजा। करीब 6 महीने जेल में रहने के बाद वो जमानत पर बाहर हो गए। अगस्त 2014 में अरुण मिश्रा को इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर उन्हें यूपीएसआईडीसी से बाहर कर दिया गया। उन पर फर्जी डिग्री से नौकरी हथियाने का आरोप लगा। इसके बाद वो हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। हाईकोर्ट में शांति भूषण, सोली सोराबजी, हरीश साल्वे, अभिषेक मनु सिंघवी, गोपाल सुब्रमण्यम, नागेश्वर राव अलग-अलग स्थिति में बचाव के लिए उतरे। इस बीच मिश्रा सितंबर 2014 में यूपीएसआईडीसी के चीफ इंजीनियर बनकर वापस आ गए। हालांकि 2016 में अरुण मिश्रा को यूपीएसआईडीसी के मुख्य अभियंता के रुप में दी गई शक्तियों में कटौती कर दी। बाद में मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो सुनवाई के लिए उन्होंने कपिल सिब्बल से संपर्क किया।
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