यहां कम वोट प्रतिशत से उलझा गणित, हर दल कर रहा जीत का दावा
इलाहाबाद की सभी 12 सीटों पर वोटरों ने मतदान तो किया लेकिन उतना नहीं जितनी की उम्मीद की जा रही थी। वोटरों के बैकफुट पर मतदान के रुख ने सियासत के बड़े पंडितों का सिर भी चकरा गया है।
इलाहाबाद। सूबे में इलाहाबाद की क्या अहमियत है इसका जिक्र बीते दिनों चुनाव प्रचार में दिखाई दिया था, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर मायावती तक यहां पहुंचे। बड़े नेताओं ने यहां डेरा डाला। आखिरी दिन अमित शाह और अखिलेश-राहुल ने रोड शो कर इलाहाबाद जीतने के लिये पूरी ताकत झोंक दी। इन सब के बाद जो सबसे चिंताजनक विषय रहा वह यह कि कम वोट प्रतिशत ने सियासी गणित को उलझा दिया। यहां हर दल सीट जीतने और सरकार बनाने का दावा जरूर कर रहा है लेकिन डर सबके जेहन में एक जैसा है।
इलाहाबाद में मतदान के बाद क्या है सूरते-हाल
सपा को अपनी सीटें बचाने की चिंता है तो भाजपा को खाता खोलने की चिंता है, वहीं बसपा को कुनबा बढ़ाने की चिंता ठीक उसी तरह है जैसे राहुल गांधी की साख इस चुनाव में लगी हुई है। बात इलाहाबाद की करें तो हमेशा से चर्चा में रहने वाले इस शहर का रूख विधानसभा चुनाव में कुछ ठीक नहीं रहा। इलाहाबाद की सभी 12 सीटों पर वोटरों ने मतदान तो किया लेकिन उतना नहीं जितनी की उम्मीद की जा रही थी। वोटरों के बैकफुट पर मतदान के रुख ने सियासत के बड़े पंडितों का सिर भी चकरा गया है। आखिर वह भविष्यवाणी करें तो कैसे करें।
कम वोटिंग पर्सेंटेज ने उलझाया गणित
आज से तकरीबन पांच साल पहले हुए चुनाव में भी इसी तरह मतदान प्रतिशत स्थिर था। तब किसी को अंदाजा नहीं था कि यहां से भाजपा का खाता नहीं खुलेगा और सपा सब पर हावी हो जाएगी। वोट प्रतिशत की बात करें तो 2012 के चुनाव में 55.35 फीसदी मतदान हुआ था जबकि इस बार 54.38 फीसदी वोट ही पड़े हैं। इन आंकड़ों ने सियासत की पिच पर हर गेंद का मिजाज भांपने वाले बड़े खिलाड़ियों की बोलती बंद कर दी है। कोई कुछ भी खुल कर भविष्य की जीत पर बयान नहीं कर रहा और इसकी एक ही वजह है इलाहाबाद के वोटरों का लो वोटिंग पर्सेंटेज।
मतदान प्रतिशत पर होता है आंकलन
देश में जितने भी चुनाव हुए हैं उनमें एक चीज हमेशा से कॉमन रही है, वह यह कि चुनाव से पहले और वोटिंग के बाद रिजल्ट घोषित होने तक हार जीत का जमकर आंकलन होता है। अमूमन हर चुनाव में मतदान प्रतिशत के आंकड़ों पर ही जीत-हार का आंकलन लगाया जाता है लेकिन इस बार तो मतदाताओं के बेरुखे रूख ने सियासी जानकारों को इस लायक भी नहीं छोड़ा कि वह कुछ बताएं।
इलाहाबाद शहर का ऐसा ही होता है हाल
इलाहाबाद में शहर की तीन सीटें हैं। यहां कोई यह पहली दफा नहीं है जब मतदान प्रतिशत इतना कम है। हमेशा से शहर उत्तरी, दक्षिणी और पश्चिमी में सबसे कम वोटर बूथ तक पहुंचते हैं। हालांकि आंकड़ें तो यह कहते हैं कि पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले शहर उत्तरी में तकरीबन दो फीसदी और शहर दक्षिणी में पांच फीसदी अधिक मतदान हुआ लेकिन ग्रामीण इलाके और दूसरे शहरों की अपेक्षा इस मामूली बढ़ोतरी ने समीकरण को उलझाए रखा है।
घटता बढ़ता रहा प्रतिशत
इलाहाबाद में अगर वोटिंग प्रतिशत देखें तो यह घटता बढ़ता दिखा है। करछना विधानसभा में तकरीबन साढ़े तीन फीसदी मतदान प्रतिशत बढ़ा, लेकिन इसके सापेक्ष शहर पश्चिमी में तीन फीसदी कम हो गया । सोरांव, फूलपुर और प्रतापपुर में कोई खास परिवर्तन ही नहीं दिखा, लगभग पुराना रिकॉर्ड दोहराया गया है। हालांकि बारा और कोरांव में मतदान प्रतिशत बढ़ने की पूरी उम्मीद थी लेकिन वोटरों की बेरूखी जारी रही और अब प्रत्याशियों के दिलों की धड़कनें बढ़ी हुई हैं।
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