यूपी चुनाव: मुलायम से अलग अखिलेश की सपा को पसंद कर रहे बीजेपी के समर्थक भी, जानें क्यों
यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सबसे पहले जनता के बीच पार्टी की इमेज सुधारने का काम किया। सपा की सरकार पर लगे 'गुंडाराज' के आरोपों की जगह सीएम अखिलेश ने विकास को मुद्दा बनाया।
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इस बार के विधानसभा चुनाव में जीत के लिए हरसंभव कोशिश में जुटे हुए हैं। अगर वो ऐसा करने में कामयाब रहे और समाजवादी पार्टी एक बार फिर सत्ता में आई तो अखिलेश यादव, गोविंद बल्लभ पंत के बाद दूसरे मुख्यमंत्री होंगे जो ये कारनामा करने में सफल होंगे। क्या अखिलेश यादव ऐसा कर पाएंगे ये तो चुनाव नतीजे आने के बाद पता चलेगा, लेकिन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस बार के चुनाव से ठीक पहले साफ कर दिया कि वो नए तेवर से चुनाव मैदान में जाएंगे। इसके लिए उन्होंने अपने पिता मुलायम सिंह यादव के खिलाफ बगावत करने से भी नहीं चूके।
25
साल
पुरानी
समाजवादी
पार्टी
में
अखिलेश
ने
किए
कई
बदलाव
अखिलेश यादव ने 25 साल पुरानी समाजवादी पार्टी में कई बदलाव करने का फैसला लिया। जिसके चलते पार्टी में घमासान शुरू हो गया, पार्टी में नेतृत्व को लेकर मामला चुनाव आयोग पहुंचा जहां से अखिलेश यादव को जीत मिली। फिलहाल यूपी चुनाव में अखिलेश यादव रणनीति के तहत आगे बढ़ रहे हैं उन्होंने कांग्रेस से गठबंधन किया है। अखिलेश यादव खुद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के साथ चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं। इसका प्रभाव भी दिख रहा है बीजेपी के समर्थक भी उनकी तारीफ से पीछे नहीं हट रहे। आइये जानते हैं कि समाजवादी पार्टी में आए बदलाव और अखिलेश सरकार में लिए गए वो फैसले, जो इस बार के चुनाव में जनता को प्रभावित कर सकते हैं...
1- सपा को 'गुंडाराज' की छवि से बाहर निकालने में जुटे अखिलेश
बरेली के बाजार में कपड़ों की दुकान चलाने वाले दुकानदार की मानें तो परंपरागत बीजेपी के वोटर हैं। नोटबंदी से परेशानी के बावजूद वो बीजेपी के साथ ही जुड़े रहेंगे। हालांकि उनसे जब अखिलेश सरकार के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि अखिलेश जी अच्छे आदमी हैं, उनके कार्यकाल में गुंडाराज नहीं रहा। उन्होंने काफी कार्य किए हैं। मुझे लगता है कि उन्हें एक और मौका मिलना चाहिए। यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सबसे पहले जनता के बीच पार्टी की इमेज सुधारने का काम किया। अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनने से पहले समाजवादी पार्टी तीन बार सत्ता में आई, कई बार सपा की सरकार पर 'गुंडाराज' के आरोप लगे, हालांकि इस बार जैसे ही चुनाव करीब आए अखिलेश यादव ने इससे अलग होने की कवायद शुरू की। नवंबर में सरकार ने 'डायल 100' योजना की शुरूआत की, जिसमें ये कोशिश की गई कि किसी भी आपात स्थिति में पुलिस तुरंत मौके पर पहुंचे। हालांकि अभी ये योजना पूरी तरह से धरातल पर नहीं उतरी है लेकिन कई शहरों में ये नजर आने लगी है। कानून व्यवस्था को लेकर सरकार का ये अहम कदम माना जा रहा है।
2- पिता और चाचा की छवि से बाहर निकलने की कोशिश
लोगों के बीच ये बात भी गई है कि अखिलेश यादव अपने पिता और चाचा की छाया से अलग निकले हैं। अखिलेश सरकार में लिए गए फैसले असर भी लोगों में नजर आ रहा है। हालांकि कई मतदाता ऐसे हैं जो पार्टी से ज्यादा मुलायम सिंह यादव को तरजीह देते हैं लेकिन उन पर भी अखिलेश यादव के फैसलों का असर दिख रहा है।
3- विकास के साथ सोशल इंजीनियरिंग का अपनाया फॉर्मूला
अखिलेश यादव ने चुनाव में विकास के मुद्दे के साथ सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला भी अपनाया। उन्होंने अभी तक अपनी छवि किसी एक वर्ग को केंद्रीत करते हुए सीमित नहीं की है। उन्होंने सभी वर्गों को साधने के लिए कार्य किया। उन्होंने किसी समुदाय या फिर किसी एक वर्ग को लेकर कोई ऐलान नहीं किया है। उनकी नजर हर वोटबैंक को अपने साथ जोड़ने की है।
4- लोगों को पसंद आ रहा है अखिलेश यादव का अंदाज
अखिलेश यादव ने अपने कार्यों के जरिए लोगों को खुद से जोड़ने की कोशिशें की हैं। उन्होंने पेंशन, घर बनाने समेत कई काम अपनी सरकार में किए। उन्होंने प्रदेश की भलाई के लिए जरूरी कदम उठाए। समाजावादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन को भी अहम माना जा रहा है।
5- क्या यूपी की जनता अखिलेश को फिर देगी अपना समर्थन?
समाजवादी पार्टी में हुए बदलाव के बाद जिस तरह से अखिलेश यादव ने अपने विकास कार्यों को मुद्दा बनाया और 'काम बोलता है' नारे को आगे लेकर जा रहे हैं, लोग उससे प्रभावित नजर आ रहे हैं। अखिलेश यादव इसके साथ-साथ नोटबंदी के मोदी सरकार के फैसले की आलोचना करते हुए जनता से पूछ रहे हैं कि आखिर आपको क्या मिला? कुल मिलाकर अखिलेश यादव किसी एक की समस्या नहीं बल्कि सामूहिक मुद्दों को चुनाव में उठा रहे हैं। जनता को उनका ये अंदाज पसंद भी आ रहा है।
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