यूपी विधानसभा चुनाव 2017: विरोधियों को चित करने के लिए मोदी-शाह ने बनाया ये खास प्लान
बीजेपी ने यूपी के लिए अभी तक उम्मीदवारों की कोई लिस्ट जारी नहीं की है। वहीं पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार भी घोषित नहीं किया है। माना जा रहा है कि रणनीति के तहत बीजेपी ने ऐसा किया है।
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है, पहले चरण के चुनाव को लेकर महज एक महीने का वक्त बचा है। ऐसे में सभी सियासी दल अपनी रणनीति को जमीन पर उतारने के लिए तैयार नजर आ रहे हैं। इसमें सबसे बड़ी परीक्षा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी की है। 2014 के आम चुनाव में बीजेपी ने यूपी में शानदार प्रदर्शन करते हुए बड़ी जीत हासिल की थी। यूपी चुनाव इसलिए भी अहम है क्योंकि इसी से 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर जनता के मूड का पता चलेगा।
ये चुनाव उत्तर प्रदेश के सीएम अखिलेश यादव और बीएसपी सुप्रीमो मायावती के लिए भी अहम है। अगर उन्होंने यूपी में अच्छा प्रदर्शन किया तो इसका फायदा उन्हें केंद्र में भी जरूर मिलेगा। ये चुनाव कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के प्रभाव को सबके सामने लाएगा। इससे पता चलेगा कि आखिर यूपी की जनता का कांग्रेस पार्टी को लेकर सोचना क्या है? ताजा हालात में बीजेपी की बात करें तो यूपी के लिए अभी तक उनके उम्मीदवारों की कोई लिस्ट सामने नहीं आई है। वहीं पार्टी की ओर से कोई भी मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार सामने नहीं आया है। समाजवादी पार्टी की बात करें तो वहां भी सबकुछ ठीक नहीं है। पार्टी में दो-फाड़ का असर कार्यकर्ताओं पर पड़ रहा है। दूसरी ओर कांग्रेस और बीएसपी की बात करें तो वो पार्टी के बड़े नेताओं के पाला बदलने से परेशान हैं। ऐसे हालात में बीजेपी नेतृत्व की यूपी को लेकर रणनीति क्या है...
कई बड़े नेता चुनाव से पहले बीजेपी में पहुंचे
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उम्मीद थी कि उत्तर प्रदेश में उनकी टक्कर समाजवादी पार्टी से होगी, हालांकि सपा में झगड़े के बाद अब ये टक्कर बीजेपी और बीएसपी के बीच नजर आ रही है। बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में 71 सीटें हासिल की थी, अगर विधानसभी सीटों के मद्देनजर देखें तो ये करीब 337 सीटें होती हैं। बीजेपी सभी 403 विधानसभा सीटों को लेकर खास रणनीति बना रही है। इस बीच बीजेपी में दूसरे दलों से कई बड़े नेता पहुंचे हैं जिनमें स्वामी प्रसाद मौर्य का नाम प्रमुख है। स्वामी प्रसाद मौर्य बीएसपी के बड़े नेता थे लेकिन अब बीजेपी में पहुंच गए हैं। कांग्रेस के 6 विधायक, समाजवादी पार्टी के 3 विधायक और बीएसपी के 13 विधायक बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। कांग्रेस को भी उस समय करारा झटका लगा जब पार्टी की बड़ी नेता और पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रह चुकी रीता बहुगुणा जोशी अक्टूबर 2016 में बीजेपी में शामिल हो गई।
यूपी चुनाव की माथापच्ची में बीजेपी आलाकमान
बीजेपी की जातीय रणनीति 2014 की अपेक्षा 2017 में बिल्कुल अलग है। पार्टी की नजर गैर-यादव ओबीसी वोटों पर है। इसके साथ-साथ गैर-जाटव दलित वोटों पर भी बीजेपी की निगाहें हैं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जाटव वोटबैंक बीएसपी के साथ खड़े होते हैं। इनके साथ-साथ बीजेपी नजर ब्राह्मण, बनिया और राजपूत वोटबैंक को साधने की भी है। पार्टी ने प्रदेश की स्थिति का अध्ययन सामाजिक, राजनीतिक और वित्तीय स्तर पर किया है जिसके आधार पर पार्टी 6 बड़े निष्कर्ष पर पहुंची है।
नोटबंदी के असर पर बीजेपी की नजर
बीजेपी को पता चल गया है कि यूपी के आम आदमी देश के दूसरे हिस्सों के मतदाताओं से ज्यादा चालाक हैं। बीजेपी नेताओं के मुताबिक ये वोटरों के दिल में है कि मोदी सरकार ने जो नोटबंदी का फैसला लिया उसमें उनका क्या फायदा है? नोटबंदी पर औसत मतदाता मोदी सरकार से नाराज नहीं हैं। उन्होंने मोदी सरकार के फैसले और इसको लागू करने में सामने आई समस्याओं के मद्देनजर इसे नजरअंदाज किया।
किसानों को साधने की कोशिश
बीजेपी आलाकमान को साफ पता है कि उत्तर प्रदेश अविकसित भारत का केंद्र है, जहां 75 फीसदी से ज्यादा लोग पांच हजार रुपये से कम कमा रहे हैं। पार्टी नेतृत्व पिछले दो साल से यूपी के किसानों को जानने की कोशिश में जुटा है। जिससे उन्हें ये पता चले की यूपी का किसान खेती कैसे करता है, उसकी कृषि नीति क्या होती है? जिससे उसको लेकर खास रणनीति बनाई जा सके। मोदी और शाह की जोड़ी अब इस कोशिश में है कि 2014 की जीत को भुनाते हुए 2017 में भी शानदार प्रदर्शन किया जाए। आखिर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद बहुत बड़ा है। ये कोशिश होगी कि लोगों को बताया जाए कि अगर यहां बीजेपी का मुख्यमंत्री होगा तो केंद्र सरकार के सहयोग से यहां बड़े प्रोजक्ट शुरू हो सकेंगे, साथ ही सरकार सीधे फंडिंग करेगी।
बीजेपी को मुस्लिम वोट बैंक में बिखराव की उम्मीद
बीजेपी को उम्मीद है कि मुस्लिम वोटबैंक इस बार मुलायम सिंह यादव और मायावती के बीच बंटेगा। इसका सीधा असर कहीं न कहीं सपा और बसपा दोनों ही पार्टियों पर होगा। वहीं इस बंटवारे से बीजेपी को उतना नुकसान नहीं होगा जितना किसी एक साथ इस वोटबैंक के जाने पर हो सकता है।
बीजेपी को इस बात का विश्वास हो चुका है कि सपा में जारी घमासान के चलते इस चुनाव में इसे सत्ता मिलने की संभावना कम ही है। हालांकि बीजेपी की नजर इस पर भी है कि अखिलेश यादव चुनाव के बीच किसी पार्टी से गठबंधन तो नहीं करते हैं, ऐसी सूरत में रणनीति प्रभावित हो सकती है। वैसे भी ऐसी खबरें आ रही हैं कि सपा और कांग्रेस में गठबंधन के आसार नजर आ रहे हैं।
बिहार से सबक लेते हुए बीजेपी ने किया बड़ा फैसला
बीजेपी के अनुसार आखिर में यूपी के मतदाताओं का एक ही मंत्र होगा कि मोदी के साथ रहना है, लेकिन बिहार की तरह कुछ गड़बड़ी नहीं हो इसके लिए मोदी और शाह के साथ पार्टी के स्थानीय नेताओं को भी खास जगह दी जाती है।
बीजेपी का अनुमान है कि मायावती उस स्थिति में नहीं हैं जैसा कि उनके बड़े नेता कांशीराम ने वैचारिक आंदोलन शुरू किया। वह इस स्थिति में भी नहीं है कि मुस्लिम मतदाताओं को अपने हक में कर सकें। फिलहाल बीजेपी की रणनीति है कि उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ऐसी छवि बनाई जाए जो गरीबों के बेहद करीबी है। इसके पीछे वजह ये है कि अगर बीजेपी यहां जीतती है तो इससे लंब समय तक फायदा मिल सकता है।