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यूपी विधानसभा चुनाव 2017: अखिलेश अगर हारे तो क्या होगा और जीते तो क्या?

इस चुनावी जंग में सबसे ज्यादा दांव अगर किसी की साख पर लगा है तो वो और कोई नहीं समाजवादी पार्टी के मुखिया और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव हैं।

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नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में अगला मुख्यमंत्री कौन होगा इसको लेकर जनता ने अपना फैसला दे दिया है। अब इंतजार इस फैसले के सामने आने का है। करीब एक महीने तक चले चुनावी कार्यक्रम में सभी सियासी दलों ने जमकर चुनाव प्रचार किया। सात चरणों का मतदान कार्य पूरा होने के बाद अब सभी की निगाहें चुनावी नतीजों पर टिकी हुई है। हालांकि जनता के दिल पर राज कौन करेगा इसका पता 11 मार्च को ही चलेगा, जब चुनावी नतीजे सामने आएंगे।

अगर अखिलेश जीते तो क्या होगा?

यूपी में सीधे तौर पर देखें तो मुकाबला त्रिकोणीय है जिसमें बीजेपी, बीएसपी और समाजवादी पार्टी-कांग्रेस गठबंधन के बीच मुख्य टक्कर है। हालांकि इस चुनावी जंग में सबसे ज्यादा दांव अगर किसी की साख पर लगा है तो वो और कोई नहीं समाजवादी पार्टी के मुखिया और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि अखिलेश यादव को न केवल इस चुनाव में जीत हासिल करके अपने कुनबे में लगी आग को शांत करना है बल्कि प्रदेश के साथ-साथ केंद्रीय राजनीति में भी अपने दखल का विस्तार करना है। ऐसे में अखिलेश यादव के लिए यूपी चुनाव में जीत और हार के क्या मायने होंगे...पढ़िए आगे।

पार्टी में पकड़ होगी मजबूत

पार्टी में पकड़ होगी मजबूत

यूपी विधानसभा चुनाव प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिए बड़ा इम्तिहान है। ऐसा इसलिए क्योंकि अगर अखिलेश यादव ये चुनाव जीत जाते हैं तो कहीं न कहीं ये रिकॉर्ड होगा कि वो लगातार दूसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बनेंगे। इससे बढ़कर सीधे तौर पर पार्टी संगठन में उनका कद कई गुना बढ़ जाएगा। अगर वो यूपी चुनाव में जीत हासिल करते हैं तो समाजवादी पार्टी में जो विरोधी खेमा अभी भी अपना गेम-प्लान तैयार कर रहे हैं, उनको झटका लगेगा। पार्टी के सर्वमान्य नेता के तौर पर अखिलेश की पकड़ बनेगी। पार्टी के विरोधियों के लिए ये किसी झटके से कम नहीं होगा।

केंद्र में बढ़ेगा कद

केंद्र में बढ़ेगा कद

यूपी की 'जंग' जीतने का सीधा फायदा अखिलेश यादव को केंद्र में मिलेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि केंद्रीय राजनीति में अभी तक कोई भी ऐसा नेता नजर नहीं आ रहा है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सीधी टक्कर दे सके। अगर अखिलेश यादव यूपी की सत्ता पर फिर काबिज होते हैं तो कहीं न कहीं केंद्र की राजनीति में भी उनका दखल मजबूत होगा। यूपी में जीतने के बाद 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव मोदी विरोधी के खेमे के बड़े नेता के तौर पर उभर सकते हैं। अखिलेश यादव भी शायद इसी योजना पर काम कर रहे हैं यही वजह है कि उन्होंने यूपी चुनाव में कांग्रेस पार्टी से गठबंधन कर लिया। उन्हें पता है कि कांग्रेस को साथ लेने से केंद्र में उन्हें फायदा मिल सकता है।

मोदी को दे सकते हैं सीधी टक्कर

मोदी को दे सकते हैं सीधी टक्कर

यूपी चुनाव में भले ही मुकाबला त्रिकोणीय हो लेकिन सीधा मुकाबला कहीं न कहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अखिलेश यादव के बीच में ही देखने को मिल रहा है। जहां पूरे चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने अखिलेश यादव को निशाने पर लिया। उनको प्रदेश के विकास के मुद्दे पर घेरा। उनके किए गए कार्यों पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि यूपी में समाजवादी पार्टी का कार्य नहीं कारनामा बोलता है। वहीं खुद अखिलेश यादव ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर पलटवार तो किए लेकिन बहुत ही सोच-समझ कर। अखिलेश यादव ने नोटबंदी को लेकर मोदी सरकार के फैसले की जमकर आलोचना की। वहीं जब उनके कार्यों को लेकर उंगली पीएम ने उंगली उठाई तो खुद अखिलेश यादव ने प्रधानमंत्री मोदी से ही किए गए कार्यों का ब्यौरा मांग लिया। कुल मिलाकर चुनावी रैलियों में दोनों के बीच जमकर आरोप-प्रत्यारोप देखा गया।

'काम बोलता है' से जनता में पकड़ बनाने की कोशिश

'काम बोलता है' से जनता में पकड़ बनाने की कोशिश

अखिलेश यादव ने इस चुनाव में कहीं न कहीं अपनी बेदाग छवि और विकास कार्यों को एजेंडा बनाया। अगर वो जीत हासिल करेंगे तो इनका अहम रोल होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि इससे पहले तक समाजवादी पार्टी की सरकार के साथ गुंडाराज जैसे शब्द सामने आते रहे हैं। ऐसा पहली बार जब अखिलेश यादव ने काम को अपना मुद्दा बनाया। उन्होंने बाहुबली मुख्तार अंसारी को पार्टी में आने से रोका। 'काम बोलता है' नारे के साथ वो चुनाव मैदान में उतरे। एक्सप्रेस-वे से लेकर मेट्रो तक अपनी सरकार के दौरान उठाए गए कार्यों को जनता के सामने रखा। जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विकास को अपना एजेंडा बताते रहे हैं कहीं न कहीं अखिलेश यादव ने भी उसी विकास को आधार बनाकर चुनाव प्रचार किया।

अगर अखिलेश हारे तो क्या होगा?

अगर अखिलेश हारे तो क्या होगा?

पार्टी में घमासान बढ़ेगा, फूट के भी आसार
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के नेतृत्व में अगर समाजवादी पार्टी चुनाव हारती है तो इसका सीधा असर पार्टी पर होगा। पार्टी में घमासान बढ़ेगा। अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव पहले से ही ऐलान कर चुके हैं कि वो 11 मार्च के बड़ा फैसला लेंगे। अगर अखिलेश यादव यूपी की सत्ता में वापस आने से चूकते हैं तो कहीं न कहीं पार्टी का दो-फाड़ होना तय है। अखिलेश यादव का विरोध कर रहे नेता तुरंत ही विरोधी खेमे में एंट्री मार सकते हैं। ऐसे में अखिलेश यादव के सामने पार्टी को एकजुट रख पाना बड़ी चुनौती बन जाएगी।

केंद्र में भी दखल का सपना हो सकता है चकनाचूर

केंद्र में भी दखल का सपना हो सकता है चकनाचूर

अगर अखिलेश यादव की यूपी चुनाव में हार होती है तो 2019 को लेकर जो कयास लगाए जा रहे हैं कि अखिलेश यादव, प्रधानमंत्री मोदी के मुकाबले बड़ा नाम बन कर उभर सकते हैं उसे झटका लगेगा। फिलहाल केंद्र में अभी तक कोई कद्दावर नेता नहीं हो जो प्रधानमंत्री मोदी के मुकाबले खुद को मजबूती रख सकें। अखिलेश यादव जरूर युवा नेता हैं, उन्होंने जिस तरह से पार्टी में जंग लड़कर, विकास और अपने शासन में किए गए कार्यों के जरिए जनता से वोट मांगने की कोशिश की है। लेकिन जीत के बाद ही अखिलेश यादव का दखल केंद्र में होगा।

मोदी से सीधी टक्कर की उम्मीद हो जाएगी कम

मोदी से सीधी टक्कर की उम्मीद हो जाएगी कम

यूपी चुनाव में अगर अखिलेश यादव की हार होती है तो इसका खामियाजा लोकसभा चुनाव यानी 2019 में दिखाई देगा। अखिलेश यादव ने कांग्रेस पार्टी से गठबंधन करके यूपी का चुनाव समर अपने करने की योजना बनाई। माना जा रहा है कि अगर गठबंधन कामयाब हुआ तो केंद्र में भी इसका असर नजर आ सकता है। ऐसी सूरत में अखिलेश यादव 2019 में मोदी के विरोधी खेमे के नेता बन जाएं, लेकिन ऐसा तभी जब वो यूपी की सत्ता में फिर काबिज हों। इसके बाद ही दूसरे दल उनके समर्थन में आ सकते हैं।

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English summary
up assembly election 2017: What impact may akhilesh yadav victory or deafeat?
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