यूपी विधानसभा चुनाव 2017: सर्वे में BJP आगे, पर 40% मतदाताओं ने नहीं किया निर्णय किसे देंगे वोट
पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में सबसे बड़ी चुनावी जंग उत्तर प्रदेश में लड़ी जा रही है। इस जंग के असली सैनिक यहां के 13.8 करोड़ से ज्यादा मतदाता है।
नई दिल्ली। पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में सबसे बड़ी चुनावी जंग उत्तर प्रदेश में लड़ी जा रही है। इस जंग के असली सैनिक यहां के 13.8 करोड़ से ज्यादा मतदाता है। यह मतदाता जिसे चाहेंगे उसे सत्ता सौंप देंगे और जिसे चाहेंगे उसे सत्ता से बाहर कर देंगे। 13.8 करोड़ से ज्यादा मतदाताओं वाले उत्तर प्रदेश में 11 फरवरी, 2017 से पहले चरण का चुनाव शुरू होगा। पर चुनाव शुरू होने से पहले तक 40 फीसदी वोटर यह निर्णय नहीं कर पाया है कि वो वोट किसे देगा, इंडिया स्पेंड और फोर्थलॉयन टेक्नोलॉजी की तरफ से किए गए सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है।
आपको बताते चलें कि फर्म ने टेलीफोन के जरिए उत्तर प्रदेश के 2,513 रजिस्टर्ड वोटर से बात की है। इस सर्वेक्षण में सामाजिक आर्थिक बैकग्राउंड, उम्र, लिंग, जाति को ध्यान में रखा गया था। यह सर्वेक्षण 24 जनवरी से 31 जनवरी, 2017 के बीच में कराया गया था।
सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि 28 फीसदी लोग भारतीय जनता पार्टी को , 18 फीसदी समाजवादी पार्टी को, 4 फीसदी बसपा को और 1 फीसदी लोग कांग्रेस को वोट देना पसंद करेंगे। फोर्थलॉयन और इंडिया स्पेंड के सर्वेक्षण में इस बात पर ध्यान नहीं दिया गया है कि कौन सी पार्टी कितनी सीटें जीतेगी बल्कि यह ध्यान दिया गया कि किस पार्टी को सबसे ज्यादा समर्थन मिलेगा।
40
फीसदी
वोटर
बना
देंगे
नई
सरकार,
पर
नहीं
पता
किसे
करेंगे
वोट
सर्वेक्षण
में
यह
बात
सामने
आई
है
कि
40
फीसदी
वोटर
जिन्होंने
अभी
तक
निर्णय
नहीं
किया
है
किसे
वोट
देंगे
हालांकि
ये
लोग
अकेले
ही
किसी
पार्टी
की
सरकार
बना
देने
में
सक्षम
हैं।
सर्वेक्षण में भाग लेने वाली महिलाओं में आधे से ज्यादा ने, 30-44 वर्ष के 45 फीसदी लोगों ने, ग्रामीण इलाकों में रहने वाले 42 फीसदी, दलितों में 43 फीसदी, ओबीसी वर्ग के 44 फीसदी और 43 फीसदी गरीब लोगों ने अभी तक यह फैसला नहीं किया है कि वो किसे वोट देंगे। सर्वेक्षण में उन लोगों को गरीब माना गया है जिन लोगों के पास टू व्हीलर या कार नहीं है। जिस लोगों के पास किसी भी प्रकार का वाहन नहीं है, उन लोगों में 38 फीसदी ओबीसी और 21 फीसदी दलितों ने अभी तक यह निर्णय नहीं किया है कि वो किसे वोट देंगे।
दिल्ली स्थित सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के सीनियर फेलो नीलांजन सिरकार ने बताया लोग यह नहीं बताना चाहते हैं कि वो किसी पार्टी का समर्थन कर रहे हैं। बहुत से लोगों की प्राथमिकता यह होती है कि वो ऐसी पार्टी के लिए वोट करे जो जीत जाएगी। या फिर मतदान वाले दिन से एक या दो दिन पहले दोस्तों या परिवार वालों से बात करते हुए इस बात का निर्णय करते हैं कि वो किसे वोट देंगे।
लेखक और हिंदुस्तान टाइम्स के एसोसिएट एडिटर प्रशांत झा ने बताया कि पहले कुछ चरणों में मतदाताओं का मूड पता चल जाता है। वहीं सी वोटर्स के संस्थापक और संपादक यशवंत देशमुख ने बताया कि मतदाता पहले से ही मन बना लेता है कि उसे किसे वोट करना है। उन्होंने कहा कि वोटर अपना मन तभी इस पर से तब हटाता है, जब कुछ बहुत ज्यादा खराब हो जाता है। कुछ वोटर जाति और धार्मिक भावुकता के आधार पर ही वोट करते हैं और तब तक निर्णय नहीं लेते हैं जब तक उम्मीदवार की घोषणा नहीं कर दी जाती है।
चुनाव के नतीजों को बदलने वाला मतदाता कौन?
सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि भाजपा का समर्थन करने वालों में 33 फीसदी ओबीसी, 11 फीसदी मुस्लिम, 22 फीसदी दलित थे। वहीं समाजवादी पार्टी को समर्थन देने वालों में 29 फीसदी मुस्लिम, 14 फीसदी दलित थे। बसपा को वोट देने की बात कहने वाले लोगों में 40 फीसदी दलित, 22 फीसदी ओबीसी और 16 फीसदी मुस्लिम थे।
राजनीतिक-आर्थिक विशेषज्ञ प्रवीण चक्रवर्ती ने बताया कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने अधिकतर सीटें जीती थीं। पर वर्ष 2017 में वोटर भाजपा से शिफ्ट हो सकता है। आपको बताते चले कि वर्ष 2012 में हुए विधानसभा चुनावों में सपा ने 224, बसपा ने 80, भाजपा ने 47, कांग्रेस ने 28, रालोद और कौमी एकता दल ने 24 सीटें जीती थीं।