यूपी विधानसभा चुनाव 2017: कैसे दल-बदल कर राजे-रजवाड़े खेल रहे सियासी पारी
भले ही अब राजशाही नहीं हो लेकिन चुनावी समर में जीत कर सियासी हनक बरकरार रखने की कवायद इससे जुड़े सदस्य जरुर करते हैं। हालांकि यहां फैसला जनता करती है कि उन्हें जिताना है या नहीं...
नई दिल्ली। यूपी का रण सज चुका है। क्या आम क्या खास सभी की नजरें अब चुनावी जंग जीतने पर टिकी हुई है। सभी सियासी दल इस चुनाव में अपना सबकुछ दांव पर लगाने को तैयार हैं। आखिर हो भी क्यों नहीं बात देश के सबसे बड़े सूबों में से एक यूपी की जो है। इन चुनाव में कई ऐसे उम्मीदवार भी उतरते हैं जिनका रिश्ता किसी रियासत या फिर राजघरानों से जुड़ा हुआ है।
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समय के साथ राजघराने और रियासत भले ही अब नहीं हों लेकिन उनका ठाट इनसे जुड़े सदस्यों के साथ नजर आता है। यूपी में कई ऐसे परिवार हैं जो समय की मांग को देखते हुए चुनाव मैदान में उतरते हैं। अगर उन्हें एक दल से टिकट नहीं मिलता तो दल बदलने से भी उन्हें गुरेज नहीं होता है। आइये नजर डालते हैं ऐसे चंद रियासतों पर जिनका सियासत से भी बराबर का नाता है...
अमेठी का तिलोई राजघराना
प्रदेश में भले ही अब पहले जैसी राजशाही नहीं हो लेकिन चुनावी समर में जीत कर सियासी हनक बरकरार रखने की कवायद ये जरुर करते हैं। हालांकि यहां फैसला जनता करती है, यही वजह है कि राजघरानों से जुड़े उम्मीदवार पाला बदलने में देर नहीं करते। यूपी के अमेठी में तिलोई राजघराने का सियासत से गहरा नाता रहा है। इससे जुड़े राजा मयंकेश्वर शरण सिंह 1993 और 2002 में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर जीत कर विधानसभा पहुंचे। इस बीच हालात बदले और उन्होंने पाला बदल कर समाजवादी पार्टी का साथ पकड़ लिया। 2007 से लेकर 2016 तक वो सपा से जुड़े रहे लेकिन इस बार के यूपी चुनाव में उन्होंने फिर पाला बदला और बीजेपी में शामिल हो गए। उनकी रणनीति बीजेपी के टिकट पर विधानसभा पहुंचने की है।
अमेठी राजघराने पर एक नजर
अमेठी राजघराने की बात करें तो यहां भी दल-बदल जमकर देखने को मिला। अमेठी राजघराने की रानी अमिता सिंह पहले बैडमिंटन की अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी थी। उन्होंने बैडमिंटन में जमकर नाम कमाया जिसके बाद अमेठी राजघराने के संजय सिंह से उनकी शादी और वो अमेठी राजघराने की रानी बन गई। इसी के बाद उन्होंने सियासत में दिलचस्पी लेनी शुरू की। अमिता सिंह ने 2002 में बीजेपी के टिकट पर जीत हासिल करके विधानसभा पहुंची। वहीं 2004 और 2007 में वो कांग्रेस के टिकट पर विधायक बनी। हालांकि 2012 के विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। देखना होगा इस बार उनकी रणनीति क्या रहेगी?
प्रतापगढ़ का भदरी राजघराना
प्रतापगढ़ के भदरी राजघराने से जुड़े रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया की छवि बाहुबली नेता की मानी जाती है। उन्हें सियासी राह पर दल-बदल से कोई परहेज नहीं है। उन्होंने प्रतापगढ़ की कुंडा सीट से पांच जीत हासिल की है। राजा भैया निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर कुंडा सीट से 1993, 1996, 2002, 2007 और 2012 में जीत हासिल कर चुके हैं। यूपी में चाहे बीजेपी सरकार हो या फिर सपा की सरकार, उन्होंने किसी से भी समझौता करने और मंत्री पद हासिल करने में देर नहीं की। बीजेपी के कल्याण सिंह, राम प्रकाश गुप्ता और राजनाथ सिंह की सरकार में राजा भैया मंत्री रहे हैं। वहीं 2003 की सपा सरकार में उन्हें कैबिनेट में जगह मिली। इसके बाद 2012 की अखिलेश सरकार में भी उन्हें कैबिनेट में शामिल किया गया। एक बार फिर राजा भैया जीत हासिल करने के लिए चुनाव मैदान में उतरने को तैयार हैं। हालांकि इस बार वो किस ओर जाएंगे देखना दिलचस्प होगा।
प्रतापगढ़ का कालाकांकर राजघराना
कालाकांकर राजघराना प्रतापगढ़ के बड़े राजघरानों में से एक था। इस राजघराने ने कभी भी दल-बदल का समर्थन नहीं किया। इस राजघराने की राजकुमारी रत्ना सिंह कांग्रेस से कई बार सांसद रही हैं। हालांकि 2014 की मोदी लहर में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। रत्ना सिंह के पिता दिनेश प्रताप सिंह, इंदिरा गांधी की कैबिनेट में शामिल थे। ये राजघराना गांधी परिवार का करीबी भी माना जाता है।
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