दलितों की पार्टी बसपा में सबसे ज्यादा सवर्ण और मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट
भले ही बीएसपी को दलितों की पार्टी होने का दावा किया जाता रहा हो लेकिन जिस तरह से यूपी के दंगल में बसपा सुप्रीमो मायावती ने टिकटों का बंटवारा किया है उसमें दलित उम्मीदवारों की संख्या कम नजर आ रही है।
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में चुनावी अखाड़ा सज चुका है। सभी सियासी दल अपने-अपने तरीके से इस जंग में उतरने को तैयार हैं। इस बीच प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी बहुजन समाज पार्टी ने अपने सभी विरोधियों को पीछे छोड़ते हुए उम्मीदवारों को चयन में बाजी मार ली है। उन्होंने प्रदेश की 403 में से 401 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है। बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने प्रदेश में सियासी जमीन पक्की करने के लिए बड़ी ही खास रणनीति से अपने उम्मीदवार उतारे हैं।
मायावती ने जारी की 401 उम्मीदवारों की लिस्ट
भले
ही
बीएसपी
को
दलितों
की
पार्टी
होने
का
दावा
किया
जाता
रहा
हो,
बीएसपी
सुप्रीमो
खुद
इसे
दलितों
की
पार्टी
की
बताती
रही
हों
लेकिन
जिस
तरह
से
यूपी
के
दंगल
में
उन्होंने
टिकटों
का
बंटवारा
किया
है
उसमें
दलित
उम्मीदवारों
की
संख्या
ही
सबसे
कम
नजर
आ
रही
है।
बीएसपी
सुप्रीमो
मायावती
ने
उत्तर
प्रदेश
में
जातीय
समीकरण
को
साधने
की
पूरी
कोशिश
की
है।
इसी
के
तहत
उन्होंने
अपने
उम्मीदवारों
की
लिस्ट
में
सभी
जातियों
को
साधने
की
पूरी
कोशिश
की
है।
यही
वजह
है
कि
बीएसपी
में
दलित
उम्मीदवारों
से
ज्यादा
सवर्ण
और
मुस्लिम
उम्मीदवारों
को
मैदान
में
उतारा
गया
है।
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बीएसपी ने 113 सवर्णों, 106 ओबीसी और 97 मुस्लिम उम्मीदवारों को दिया टिकट
बीएसपी उम्मीदवारों की जारी लिस्ट पर नजर डालें तो इसमें सबसे ज्यादा संख्या सवर्ण उम्मीदवारों की है। पार्टी ने 113 सवर्ण उम्मीदवारों को टिकट दिया है। इनमें 66 ब्राह्मण, 36 क्षत्रिय और 11 वैश्य और सिख उम्मीदवारों को पार्टी ने मैदान में उतारा है। उसके बाद बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने ओबीसी उम्मीदवारों पर भरोसा जताया है। यही वजह है कि 106 ओबीसी उम्मीदवारों को उन्होंने उम्मीदवार बनाया है। मायावती ने प्रदेश में मुस्लिम वोटरों को संख्या का भी पूरा ध्यान रखा है यही वजह है कि मुस्लिम बहुल सीटों पर उन्होंने मुस्लिम उम्मीदवारों को मौका दिया है। पार्टी ने 97 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। खास तौर से पश्चिमी यूपी में ज्यादा संख्या में मुस्लिम उम्मीदवारों पर पार्टी ने अपना भरोसा जताया है। इसके बाद दलित उम्मीदवारों को मौका दिया गया है। बीएसपी सुप्रीमो ने 87 दलित उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। कुल मिलाकर भले ही पार्टी सुप्रीमो मायावती बीएसपी को दलितों का हिमायती होने की बात करती हों लेकिन सियासी जमीन को साधने के लिए उन्होंने वो सारे दांव खेले हैं जिसकी बदौलत उन्हें यूपी की गद्दी मिल सके।
बीएसपी ने 87 दलित उम्मीदवारों को दिया है टिकट
बीएसपी सुप्रीमो ने प्रदेश की सभी विधानसभा सीटों में वोटरों की स्थिति को ध्यान में रखते हुए अपने उम्मीदवारों का चयन किया है। यही वजह है कि मायावती ने प्रदेश में सभी जातियों को साधने की कोशिश की है। आंकड़ों पर गौर करें तो प्रदेश में गैर यादव ओबीसी वोटर करीब 32 फीसदी हैं। 8 फीसदी यादव ओबीसी हैं। सवर्ण हिंदुओं की बात करें तो प्रदेश में 20 फीसदी वोटर हैं। दलित वोटर 20 फीसदी हैं। इनमें 9 फीसदी जाटव व 11 फीसदी अन्य हैं। प्रदेश में मुस्लिम वोटर करीब 20 फीसदी हैं। यही वजह है बीएसपी ने मुस्लिम उम्मीदवारों को दलित उम्मीदवारों से ज्यादा तरजीह दी है। इसकी एक वजह ये भी है प्रदेश की सत्ता संभाल रही समाजवादी पार्टी में प्रतिनिधित्व को लेकर झगड़ा चल रहा है। माना जाता है कि मुस्लिम वोटबैंक समाजवादी पार्टी के पक्ष में खड़े होते हैं। लेकिन जिस तरह से सपा में अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव के बीच विवाद गहराया हुआ है। पार्टी में सबकुछ ठीक नहीं लग रहा है, ऐसे में मायावती को उम्मीद है कि मुस्लिम वोटर कहीं न कहीं बीएसपी पर अपना भरोसा जता सकते हैं। इसी के मद्देनजर पार्टी ने प्रदेश में दूसरी पार्टियों के मद्देनजर ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 50 मुस्लिम उम्मीदवारों को दिया गया टिकट
खास तौर से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आने वाली 149 विधानसभा सीटों में से 50 सीटों पर बीएसपी ने मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। पार्टी की ओर से कुल 97 मुस्लिम उम्मीदवार प्रदेशभर में उतारे हैं इनमें आधी संख्या पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ही इन उम्मीदवारों की है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां के मुजफ्फरनगर जिले की 6 विधानसभा सीटों में से तीन सीटों पर बीएसपी ने मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। ये संख्या 2012 के चुनावों से एक ज्यादा है। ये सीटें चरथावल, जहां से वर्तमान विधायक नूर सलीम राणा को उतारा गया है, वहीं मीरापुर से नवाजीश आलम खान को और बुढ़ाना से सैयदा बेगम को बीएसपी ने अपना उम्मीदवार बनाया है। बता दें कि इसी इलाके में 2013 में सांप्रदायिक दंगे हुए थे जिसमें करीब 66 लोगों की जान चली गई थी और हजारों लोग बेघर हो गए थे। सैयदा बेगम पूर्व बीएसपी विधायक कादिर राणा की पत्नी हैं। नूर सलिम राणा कादिर राणा के भाई हैं। शामली जिला भी इस दंगे से काफी प्रभावित हुआ था यहां पार्टी ने तीन सीटों में से दो में मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं।
बुंदेलखंड इलाके में बीएसपी ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को नहीं दिया टिकट
मुस्लिम उम्मीदवारों को ज्यादा उतारने के पीछे पार्टी को उम्मीद यही है कि इन इलाकों में मुस्लिम वोटरों का झुकाव उनकी ओर होगा। बता दें कि बीएसपी का वोट शेयर 2009 में इस इलाके में 33 फीसदी था जो कि 2014 के आम चुनावों में गिरकर करीब 23 फीसदी ही रह गया था। इसके पीछे एक कारण दंगों के बाद हुआ ध्रुवीकरण भी था। इस दौरान बीजेपी ने यहां 59 फीसदी वोट हासिल किए थे। फिलहाल बीएसपी की ओर से हो रहे चुनाव प्रचार में यही बताने की कोशिश हो रही है कि जातिय संघर्ष की वजह बीजेपी और एसपी ही हैं। बीएसपी के प्रमुख मुस्लिम चेहरे नसीमुद्दीन सिद्दीकी चुनावी सभाओं में यही बता रहे हैं कि बीएसपी के शासनकाल में कोई भी दंगें नहीं हुए हैं। अगर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बाहर उम्मीदवारों की बात करें तो पूर्वोत्तर यूपी और मध्य यूपी में पार्टी ने मुस्लिम वोटरों को मौका दिया है। बुंदेलखंड इलाके की 19 सीटों में पार्टी ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा है। बता दें कि प्रदेश में 97 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे गए हैं जिनका आंकड़ा 24 फीसदी के करीब है।