चाचा-भतीजा विवाद में अखिलेश बच गए बड़े सवालों से
प्रदेश में बढ़ते अपराध, गुंडागर्दी, जातिवाद और सांप्रदायिक तनाव के चलते प्रदेश में अखिलेश सरकार की हमेशा ही आलोचना होती रही।
लखनऊ। समाजवादी पार्टी के भीतर जिस तरह से संग्राम छिड़ा है, उसने प्रदेश में सरकार के कामकाज के कई ऐसे सवालों को किनार कर दिया है जो मुमकिन है कि परिवार का विवाद नहीं होने पर जनता अखिलेश सरकार से पूछती। विपक्ष के कई ऐसे सवालों का अखिलेश यादव को सामना करना पड़ता जिनका जवाब देना शायद अखिलेश यादव के लिए काफी मुश्किल साबित होता। यूपी चुनाव-2017- अखिलेश और कांग्रेस की करीबी ने बदला यूपी का समीकरण
प्रदेश में जिस तरह से कानून-व्यवस्था का मुद्दा हमेशा से ही सरकार के लिए मुश्किल का सबब बना रहा। प्रदेश में बढ़ते अपराध, गुंडागर्दी, जातिवाद और सांप्रदायिक तनाव के चलते प्रदेश में अखिलेश सरकार की हमेशा ही आलोचना होती रही।
चुनाव से ठीक पहले पार्टी के भीतर विवाद छिड़ा
लेकिन जिस तरह से चुनाव से ठीक पहले पार्टी के भीतर विवाद छिड़ा है उसकी वजह से मीडिया में सिर्फ इसी विवाद की चर्चा है जबकि तमाम मुद्दों को किनारे कर दिया गया। परिवार के भीतर इस विवाद के चलते ना विपक्ष बल्कि मीडिया भी इन सवालों को सरकार के सामने खड़ा रहने से चूक गया। यही नहीं इस चुनाव में जनता के विषयों को लेकर चर्चा भी पूरी तरह से गायब है।
स्टीव जॉर्डिंग ने इस पूरे विवाद को लेकर एक रणनीति बनाई
राजनीतिक सलाहकारों की मानें तो अखिलेश यादव के चुनावी रणनीतिकार स्टीव जॉर्डिंग ने इस पूरे विवाद को लेकर एक रणनीति बनाई है जिसके चलते सरकार के भीतर के विवादों पर लोगों का ध्यान नहीं गया। सपा की इस रणनीति पर नजर डालें तो यह भाजपा की रणनीति भी कुछ इस तरह की रही है कि असल मुद्दों से लोगों का ध्यान हटाकर ऐसे मुद्दों की ओर लेकर जाया जाए ताकि लोग सरकार से अहम सवाल ना पूछ सके।
अखिलेश यादव की छवि को सुधारने की कोशिश
स्टीव इस रणनीति को आगे रखकर अखिलेश यादव की छवि को सुधारने और उन्हे बतौर लीडर स्थापित करने के लिए अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं।अगर अखिलेश यादव का परिवार के साथ टकराव ना हुआ होता और यह विवाद लोगों के बीच ना आया होता तो लोग इन अहम सवालों को सरकार से पूछ रहे होते
सपा सरकार में पार्टी के कार्यकर्ता और नेता ही कानून तोड़ते रहे
सबसे
बड़ा
सवाल
जो
लोग
अखिलेश
यादव
से
पूछ
रहे
होते
वह
यह
कि
इस
सरकार
के
आने
के
बाद
से
ही
कानून
व्यवस्था
बुरी
तरह
से
बिगड़ी
और
पार्टी
के
नेताओं
और
कार्यकर्ताओं
की
गुंडागर्दी
खुलकर
सामने
आई,
हाल
ही
में
जवाहरबाग
की
घटना
ने
सपा
सरकार
पर
बड़ा
सवाल
खड़ा
किया
था
कि
कैसे
सरकार
के
साथ
लोगों
की
मिलीभगत
के
चलते
अवैध
कब्जे
का
घिनौना
खेल
खेला
गया,
इसके
अलावा
बुलंदशहर
गैंगरेप
जैसी
घटनाओं
ने
भी
सरकार
को
कटघरे
में
खड़ा
किया।
अधिकारियों पर गिरी गाज
अखिलेश
सरकार
के
कार्यकाल
में
जब
भी
आपराधिक
घटनाएं
हुई
और
पार्टी
के
कार्यकर्ताओं
और
नेताओं
ने
गुंडई
की
तो
बजाए
इनपर
कार्रवाई
करने
के
अफसरों
पर
कार्रवाई
की
गई,
जिसमें
अमिताभ
ठाकुर,
दुर्गा
शक्ति
नागपाल
जैसे
उदाहरण
सामने
हैं।
जातिवाद को बढ़ावा दिया गया
सपा
सरकार
एक
और
मुद्दे
को
लेकर
हमेशा
कटघरे
में
रही
वह
है
जातिवाद
को
बढ़ावा
देने
का,
प्रदेश
सरकार
पर
यादव
जाति
के
लोगों
को
प्राथमिकता
देने
का
हमेशा
से
ही
आरोप
लगता
रहा,
तमाम
नौकरियों
में
एक
ही
जाति
को
बढ़ावा
दिया
गया
और
कई
थानों
और
विभागों
में
यादव
जाति
के
लोगों
को
प्रमुखता
दी
गई।
दंगों के दाग
कानून व गुंडाराज के अलावा सरकार पर मुजफ्फरनगर में दंगे को लेकर भी सरकार की जमकर आलोचना की गई। मुजफ्फरनगर के कवाल गांव में जिस तरह से लड़की के साथ छेड़छाड़ की गई और यह मुद्दा जाट और मुस्लिम समुदाय के रूप में बदला और कई लोगों की जान चली गई। यही नहीं 2013 में हुए इस दंगे के बाद आज भी लोग टेंट में रहने को मजबूर हैं। हाल ही में दादरी कांड ने भी सरकार को कटघरे में खड़ा किया लेकिन यह सवाल लोग नहीं उठा रहे हैं।
सैफई में सजी महफिल
एक
तरफ
जब
मुजफ्फरनगर
में
दंगे
के
बाद
लोगों
के
जख्म
हरे
थे
उस
वक्त
सैफई
में
करोड़ों
रुपए
खर्च
करके
फिल्मी
सितारों
की
महफिल
सजाई
गई
उसने
लोगों
को
काफी
खफा
किया।
लोगों
इस
बात
को
लेकर
भी
सरकार
पर
सवाल
उठाते
रहे
कि
सैफई
के
विकास
के
लिए
कई
जिलों
को
दरकिनार
किया
गया।