समाजवादी पार्टी में मची कलह, जानिए कब, क्या-क्या हुआ?
समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव अपने पुत्र अखिलेश यादव से हार गए हैं। चुनाव आयोग ने साइकिल चुनाव चिन्ह अखिलेश यादव को देने की घोषणा कर दी।
नई दिल्ली। समाजवादी पार्टी के चुनाव चिन्ह को लेकर आखिरकार समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव अपने पुत्र अखिलेश यादव से हार गए हैं। चुनाव आयोग ने साइकिल चुनाव चिन्ह अखिलेश यादव को देने की घोषणा कर दी है। आपको बताते चलें कि उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2017 होने में कुछ समय ही बाकी रह गया है, पर समाजवादी पार्टी में शुरु हुई आपसी कलह अभी तक खत्म नहीं हो पाई थी। इससे पहले अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव दोनों के वकीलों ने भारतीय चुनाव आयोग के सामने अपना रखकर पक्ष रख चुके थे।
कैसे शुरु हुई मुलायम और अखिलेश के बीच तकरार और पार्टी पर हक को लेकर लड़ाई, पढ़िए तारीख-दर-तारीख इसका पूरा ब्यौरा
दिसंबर 2015: समाजवादी पार्टी में लड़ाई की शुरुआत अखिलेश यादव के नजदीकियों सुनील यादव और आनंद भदौरिया को पार्टी विरोधी गतिविधियां करने के कारण पार्टी से निकाल दिया गया। इन दोनों पर आरोप था कि जिला पंचायत के चुनाव में उन्होंने पार्टी विरोधी कार्य कर रहे थे। इनके निकालने की घोषणा भी शिवपाल सिंह यादव ने की थी जबकि उत्तर प्रदेश समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव थे। इसका असर यह हुआ कि सैफई महोत्सव के उद्घाटन समारोह में तब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव नहीं गए।
1 जनवरी, 2016: बाद में अखिलेश यादव राजनीतिक गालियारों में समाजवादी पार्टी में आपसी कलह की खबरों के बीच सैफई महोत्सव में हिस्सा लिया और बाद में उनके विश्वासपात्रों को पार्टी में वापस लिया गया।
2 जून: कौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय करने का एक तरफ ऐलान किया गया और इसकी श्रेय शिवपाल यादव को दिया गया। पर अखिलेश यादव के चलते ऐसा हो नहीं पाया क्योंकि वो पार्टी की साफ छवि चाहते थे। बाद में उन्होंने समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और कैबिनेट मंत्री बलराम यादव को निलंबित कर दिया। क्योंकि कौमी एकता दल के समाजवादी पार्टी के विलय को लेकर जमीन तैयार करने वालों में बलराम यादव भी थे। कौमी एकता दल के नेता मुख्तार अंसारी की अपराधिक छवि रही है और वो उनके समर्थक उन्हें रॉबिन हुड समझते हैं। इससे पहले वर्ष 2012 में भी अखिलेश यादव ने पार्टी के अंदर डीपी यादव की इंट्री नहीं होने दी थी। डीपी यादव खुद अपराधिक छवि के नेता हैं और इस समय जेल में बंद है। पर बाद में शिवपाल ने कहा था कि समाजवादी पार्टी में सभी लोहिया वादी, गांधीवादियों का स्वागत है। बाद में मीडिया ने अखिलेश यादव की अथॉरिटी पर भी सवाल उठाए थे।
25 जून: अखिलेश यादव के विरोध के बाद समाजवादी पार्टी ने यू-टर्न लेते हुए कौमी एकता दल का विलय निरस्त कर दिया। कौमी एकता दल ने अखिलेश यादव पर सवाल उठाते हुए कहा कि उनकी वजह से यह विलय रद्द हुआ। वहीं विरोधी पार्टियों ने कहा कि यह सब नाटक अखिलेश की छवि को सुधारने के लिए किया जा रहा है।
27 जुलाई: कैबिनेट मंत्री पद से हटाए गए बलराम यादव को फिर से अखिलेश यादव ने मंत्रिमंडल में जगह दी थी। अखिलेश यादव ने सातवीं बार तब मंत्रिमंडल में फेरबदल किया था।
14 अगस्त: शिवपाल ने इस्तीफे की पेशकश करते हुए कहा कि वो पार्टी के लिए करते रहेंगे। राजनीतिक विशेषज्ञों ने माना कि खुद को पार्टी में किनारे लगाए जाते हुए देखने पर यह शिवपाल ने ऐसा किया होगा।
15 अगस्त: समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने कहा कि अगर शिवपाल ने इस्तीफा दे दिया तो समाजवादी पार्टी टूट जाएगी। सीधे तौर पर उन्होंने अपने पुत्र अखिलेश यादव को चेतावनी दी।
17 अगस्त: समाजवादी पार्टी में मची आपसी कलह के बीच शिवपाल ने कैबिनेट की बैठक में हिस्सा नहीं लिया।
19 अगस्त: इसी घटनाक्रम के बीच शिवपाल यादव ने पार्टी में सब कुछ सही चल रहा है दिखाने के मद्देनजर अखिलेश यादव को बातचीत के लिए बुलाया। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के घर पर दोनों नेताओं के बीच बातचीत भी हुई। उन्होंने साफ किया कि पार्टी में किया तरह का टकराव नहीं है और कहा कि वर्ष 2017 में पार्टी फिर से हमारी सरकार बनेगी।
12 सितंबर: इलाहाबाद हाईकोर्ट के अवैध खनन को लेकर सीबीआई जांच के आदेश के बीच अखिलेश यादव खनन मंत्री गायत्री प्रजापति और पंचायती राज मंत्री राजकिशोर सिंह को भ्रष्टाचार के आरोपों में बर्खास्त कर देते हैं। एक तरफ लोग कहना शुरु करते हैं कि पार्टी की स्वच्छ छवि को लेकर अखिलेश गंभीर है तो दूसरी तरु सुगबुगाहट होती है कि गायत्री प्रजापति की उनके भाई प्रतीक यादव की नजदीकी के कारण यह फैसला किया गया है।
13 सितंबर: मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश के सबसे वरिष्ठ आईएएस पद मुख्य सचिव से दीपक सिंघल को चलता। दीपक सिंघल को शिवपाल यादव को नजदीकी माना जाता था। उनको हटाए जाने का कोई अधिकारिक कारण नहीं बताया गया। यह कहा जाता है कि अमर सिंह के उस कार्यक्रम में गए थे जिसमें खुद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जाना पसंद नहीं किया था। अखिलेश यादव के अमर सिंह से अच्छे संबंध नहीं रहे हैं। अमर सिंह के दोबारा पार्टी में लौटने का भी अखिलेश यादव ने पुरजोर विरोध किया था। पर भी छह साल बाद अमर सिंह की फिर से पार्टी में वापसी को गई। दीपक सिंघल इससे पहले शिवपाल यादव के सिंचाई विभाग में बतौर प्रमुख सचिव तैनात थे।
इसी बीच दिल्ली में अमर सिंह की सपा प्रमुख मुलायम सिंह की मुलाकात होती है और समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव इस नोटिस जारी करते हुए अपने पुत्र को समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष पद से हटा देते हैं। उनकी जगह पर शिवपाल को समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश का अध्यक्ष नियुक्त किया जाता है। वहीं अखिलेश अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए शिवपाल यादव से सभी मंत्रालय वापस ले लेते हैं। सबसे ज्यादा फायदा पहुंचाने वाला मंत्रालय पीडब्लूडी विभाग खुद अखिलेश यादव खुद के पास रख लेते हैं।
14 सिंतबर: इसी बीच अखिलेश यादव अपने सारे कार्यक्रम स्थागित कर देते हैं। हंगात जारी रहता है और मुलायम शिवपाल को दिल्ली बुलाते हैं । मुलायम इस बीच पार्टी में सुलह का प्रयास करते हैं तो दूसरी तरफ अखिलेश यादव सारा ठीकरा अमर सिंह पर डाल देते हैं। वहीं अमर सिंह इन सारे आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए अखिलेश यादव को अपना बेटे जैसा बताते हैं।
15 सितंबर: समाजवादी पार्टी में टकराव चरम पर पहुंच गया और इसी बीच शिवपाल ने समाजवादी पार्टी के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष पद और उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। पर अखिलेश यादव ने इस्तीफा स्वीकार न करके उसे वापस लौटा दिया। इसी बीच आपसी टकराव को टालने के लिए मुलायम लखनऊ पहुंचते हैं और शिवपाल और अखिलेश के बंद दरवाजों के बीच मुलाकात करते हैं। वहीं दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव प्रो.रामगोपाल यादव इस पूरे आपसी उठापटक के लिए अमर सिंह को जिम्मेदार ठहराते हैं।
16 सिंतबर: मुलायम ने शिवपाल के इस्तीफे को अस्वीकार कर दिया और कहा जब तक वह जिंदा हैं तब तक पार्टी नही टूटेगी। शिवपाल ने मुलायम का कहना माना और इस्तीफा वापस ले लिया। शिवपाल के साथ फिर से पार्टी में गायत्री प्रजपाति जैसे विवादित नेता की इंट्री हो गई।
15 अक्टूबर: मुलायम सिंह यादव ने पार्टी में आपसी तकरार को नकारा। पर जब मीडिया ने मुख्यमंत्री पद के लिए अखिलेश यादव का नाम पूछा तो उन्होंने सीधे तौर पर अखिलेश का नाम लेने से मना कर दिया।
17 अक्टूबर: शिवपाल यादव ने कहा कि अगर पार्टी वर्ष 2017 में सरकार बनाती है तो मैं अखिलेश यादव को नाम मुख्यमंत्री पद के लिए प्रस्तावित करूंगा।
23 अक्टूबर: समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव को पार्टी में बिखराव का जिम्मेदार ठहराते हुए पार्टी से छह साल के लिए निकाल दिया गया। यह फैसला तब किया गया, जब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने शिवपाल और उनके तीन नजदीकी मंत्रियों को कैबिनेट से निकाल दिया था।
17 नवंबर: प्रो. रामगोपाल यादव को फिर से समाजवादी पार्टी में शामिल किया गया।
30 दिसंबर: मुलायम सिंह ने खुद अपने पुत्र अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव राम गोपाल यादव को छह साल से निकाल दिया। मुलायम ने दोनों पर पार्टी विरोधी गतिविधियां करने का आरोप लगाया।
16 जनवरी, 2017 : समाजवादी पार्टी के चुनाव चिन्ह को लेकर आखिरकार समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव अपने पुत्र अखिलेश यादव से हार गए हैं। चुनाव आयोग ने साइकिल चुनाव चिन्ह अखिलेश यादव को देने की घोषणा कर दी।