यूपी के चुनाव में छोटे दल निभाएंगे बड़ी भूमिका
उत्तर प्रदेश के चुनावों में छोटी जातियां और छोट दल निभाएंगे बड़ी भूमिका, भाजपा और सपा इन दलों को साधने में सबसे आगे।
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजनीति देश की राजनीति के लिहाज से काफी अहम है, ऐसे में प्रदेश में कई बड़े दल चुनावी मैदान में अपनी जोर आजमाइश कर रहे हैं, लेकिन इन बड़े दलों की जंग में छोटे दलों को नजरअंदाज करना किसी भी दल के लिए महंगा साबित हो सकता है। यूपी में जातीय समीकरण की नजर से ये छोटे दल कई विधानसभा क्षेत्रों में काफी अहम भूमिका निभाते हैं। ऐसी जगहों पर ऐसे नेता या दल जिन्हें प्रदेश की राजनीति में खास पहचान प्राप्त नहीं हैं वह बड़ा उलटफेर करने की कूबत रखते है।
जातियों को साधने में भाजपा सबसे आगे
छोटे क्षेत्रों में ये चुनावी दल अपनी बड़ी उपस्थिति दर्ज करा बड़ी राजनीति का रास्ता तय करते हैं। ये छोटे दल ना सिर्फ सत्ता दल सपा बल्कि भाजपा, कांग्रेस के लिए भी काफी अहम हैं, इनके सहयोग से स्थानीय जातीय समीकरणों को साधने की ये दल पूरी कोशिश करते हैं। बहुत ही कम लोग सुहेलदेव भारती समाज पार्टी के बारे में जानते हैं, जिसने हाल ही में भाजपा के साथ पूर्वी यूपी से गठबंधन किया है और इसके अलावा संजय सिंह चौहान की जनवादी पार्टी भी भाजपा के साथ गठबंधन की कवायद कर रही है। वहीं गौरक्षा जैसे मामले जोकि यूपी की सियासत में काफी अहम स्थान रखते हैं उसे भी ध्यान मे रखते हुए भाजपा पीस पार्टी, निषाद पार्टी महान दल जैसी पार्टियों को अपने साथ लाने की कोशिश कर रही है।
अखिलेश पहले ही खेल चुके हैं दांव
छोटी-छोटी जातिया और उपजातियां प्रदेश की राजनीति में काफी अहम हो जाती है लिहाजा भाजपा ऐसे दल जोकि इन जातियों का प्रतिनिधित्व करते हैं उन्हें अपने साथ लाने की पूरी कोशिश कर रही है। इन्ही जातियों को ध्यान में रखते हुए हाल ही में अखिलेश यादव ने 17 ओबीसी जातियों को एससी का दर्जा देने का ऐलान किया था। एक तरफ जहां अखिलेश यादव ने इन्हें एससी की श्रेणी में डालने का ऐलान किया तो दूसरी तरफ मायावती ने अखिलेश के इस कदम के जरिए उनपर जमकर निशाना भी साधा था। उन्होंने अखिलेश के इस कदम को चुनावी स्टंट करार देते हुए कहा था कि इस प्रस्ताव को उनकी सरकार ने पहले ही केंद्र को भेजा था।
छोटी जातियां निभाएंगी अहम भूमिका
जिन 17 जातियों को अखिलेश यादव ने एसएसी की श्रेणी में रखने का ऐलान किया है ववह कहार, कश्यप, केवट, निषाद, बींद, भर, प्रजापति, राजभर, बथम, गौरिया, तुरहा, माझी, मल्लाह, कुम्हार, धीमर, धीवर और मछुआ हैं। हालांकि ये सभी जातियां बहुत की कम वोटों का प्रतिनिधित्व करती हैं, लेकिन एक साथ मिलकर ये सभी जातियां बड़ा वोट समीकरण साबित हो सकती हैं। यूपी की राजनीति में ओबीसी वोट 44 फीसदी, दलित 21 फीसदी, मुस्लिम 19 फीसदी और सवर्ण 16 फीसदी हैं। सपा का मुख्य वोट बैं यादव ओबीसी में सबसे बड़ा वोट बैंक है। लेकिन 200 से अधिक सीटें जोकि ओबीसी के खाते मैं है में जिनमें यादव शामिल नहीं हैं, जिनमें कुर्मी, कोरी, लोध, जाट, सुनार, पासी, वाल्मीकि भी शामिल हैं।
उपजातियों को साधने की मची होड़
यूपी में पीस पार्टी के पास 2012 में चार सीटें थी और वह निषात पार्टी के साथ बड़ा गठबंधन करने की योजना बना रही है और सभी 403 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार सकती है। पीस पार्टी के पास मुस्लिम वोट बैंक भी है और उसने अपना दल के साथ मिलकर पिछले चुनाव में कुल 200 सीटों प चुनाव लड़ा था। वहीं दूसरी तरफ निषाद पार्टी भी मछुआरों के बड़े वोट बैंक का प्रतिनिधित्व करती है। जबकि मल्लाह समुदाय जोकि 4.5 फीसदी वोटबैंक का प्रतिनिधित्व करता है उसमें तकरीबन 27 अन्य जातिया हैं और कुल 125 विधानसभा क्षेत्रों में अपनी मौजूदगी रखता है, जोकि किसी भी दल के लिए के काफी अहम साबित हो सकता है। वहीं पूर्वी यूपी में सुहेलदेव भारतीय पार्टी जिसने भाजपा के साथ गठबंधन किया है उसे राजभर जाति का बड़ा समर्थन प्राप्त है। दूसरी तरफ 2014 के चुनावों में कांग्रेस के साथ गठबंधन करने वाले महान दल की भी भूमिका भी काफी अहम है जिसकी बदायूं, एटा, बरेली, शाहजहांपुर, फर्ऱुखाबाद में काफी अच्छी पैठ है। महान दल को शाक्य, मौर्य, कुशवाहा, सैनी जैसे समुदायों का समर्थन प्राप्त है।