यूपी चुनाव 2017: निषाद वोट बैंक पर राजनीतिक पार्टियों की पैनी निगाह
2017 का उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव है। निषाद वोट जीत के गुणा-गणित में अहम भूमिका रखता है।
गोरखपुर।
गोरखपुर
मंडल
की
सभी
28
विधानसभा
क्षेत्रों
में
निषाद
बिरादरी
की
मजबूत
दखल
है।
पिछले
साल
आरक्षण
की
मांग
को
लेकर
आवाज
बुलंद
करने
वाले
निषाद
बिरादरी
को
सभी
राजनीतिक
दलों
ने
लुभाने
की
कोशिश
की।
कांग्रेस,
सपा,
बसपा,
भाजपा
सभी
निषादों
के
हक
को
वाजिब
करार
देते
है।
इसकी
एक
बड़ी
वजह
2017
का
विधानसभा
चुनाव
है।
निषाद
वोट
जीत
की
गुणा
गणित
में
अहम
भूमिका
रखता
है।
गोरखपुर
ग्रामीण
विधानसभा
में
कुल
चार
लाख
वोटरों
में
करीब
50
हजार
निषाद
वोटर
है।
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चुनाव
में
राजनीतिक
दलों
के
लिए
यह
मुद्दा
नहीं
राजनीतिक दलों के आंकड़ों के मुताबिक मंडल में सर्वाधिक निषाद मतदाता गोरखपुर संसदीय क्षेत्र में है। गोरखपुर संसदीय क्षेत्र में निषादों की संख्या तीन से 3.50 लाख के बीच बताई जाती है। इसी क्रम में देवरिया में एक से सवा लाख, बांसगांव में डेढ़ से दो लाख, महराजगंज में सवा दो से ढाई लाख तथा पडरौना में भी ढाई से तीन लाख निषाद बिरादरी के मतदाता हैं।
गोरखपुर मंडल में निषाद बिरादरी के मजबूत वोट बैंक को देखते हुए सभी राजनीतिक दलों में दिग्गज चेहरे नजर आते है। जब कौड़ीराम विधान सभा क्षेत्र में गौरी देवी विधायक थीं और अपने पति रवींद्र सिंह के यथ और अपनी उपस्थिति के बल पर अपराजेय मानी जाती थी। उन्हें कांग्रेस से निषाद बिरादरी के लालचंद निषाद ने पराजित किया और गोरखपुर के पहले निषाद विधायक बने का गौरव हासिल किया। निषाद राजनीति का उभार जमुना निषाद के दखल के बाद माने जाना लगा।
नब्बे के दशक में जमुना निषाद तब सुर्खियों में आए जब उनकी गिनती ब्रहमलीन महंत अवेद्यनाथ के करीबी के रूप में होने लगी। हलांकि बदले राजनीतिक परिदृश्य में जमुना निषाद गोरक्षपीठ के विरोध मेंखड़े हो गए। निषाद बिरादरी में आए राजनीतिक चेतना के बल पर सपा के टिकट पर जमुना निषाद ने लोकसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ को कड़ी टक्कर दी। सबसे कम अंतर 7339 वोट से योगी को जीत वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में मिली।
निषाद राजनीति में निर्विवाद अगुवा बनने के खेल में ही जमुना निषाद की बसपा सरकार में मंत्री पद से हाथ धोना पड़ा था। बलात्कार पीडि़ता की पैरवी में पहुंचे जमुना निषाद के काफिले से चली गोली से महराजगंज कोतवाली के सिपाही कृष्णानंद राय की मौत के बाद उन्हें जेल की हवा खानी पड़ी थी। वर्तमान में निषाद बिरादरी के नाम पर दर्जन भर संगठन सक्रिय है। कसरवल कांड के बाद सुर्खियों में आए डा. संजय निषाद राष्ट्रीय एकता परिषद के बैनर तले पिछले तीन वर्षों से निषाद आरक्षण की मांग बुलदं कर रहे हैं सभी दलों में है मजबूत चेहरे। Read Also: 'अखिलेश यादव की समाजवादी एंबुलेंस से हो रहा आचार संहिता का उल्लंघन'