PICs: चंद्र ग्रहण से टूटी काशी में 26 साल पुरानी परंपरा
ये सब चंद्र ग्रहण के सूतक के कारण हुआ क्योंकि सूतक काल में किसी भी धार्मिक अनुष्ठान को नहीं किया जाता है।
वाराणसी। रक्षाबंधन और श्रवण पूर्णिमा दिन लगे खंडग्रास चंद्र ग्रहण के काशी की 26 वर्षों की परंपरा टूट गई। वाराणसी के दशाश्वमेघ घाट पर होने वाली विश्व और ऐतिहासिक आरती जो काशी के शाम की शान मानी जाती है। उस गंगा आरती को शाम के बदले सोमवार दोपहर में संपन्न करना पड़ा। ये सब चंद्र ग्रहण के सूतक के कारण हुआ क्योंकि सूतक काल में किसी भी धार्मिक अनुष्ठान को नहीं किया जाता है।
वाराणसी आरती को करने वाली संस्था निधि के अध्यक्ष सुशांत मिश्रा में oneindia से बात करते हुए कहा कि ये इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि माता गंगा की आरती को हमे दोपहर में सूर्य की किरण में करना पड़ा। ये वही गंगा आरती है जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जापानी पीएम शिंजो आबे के साथ शिरकत की थी और अब तक काशी वाले सभी वीआईपी और वीवीआईपी शामिल हो चुके हैं।
1991 में शुरू की गई थी ये आरती
वहीं, सुशांत मिश्रा ने बताया कि घाट पर महा आरती उनके पिता सत्येंद्र मिश्र के द्वारा शुरू हुआ। उस समय घाटों पर दीपोत्सव मनाया जाता था, लेकिन उन्होंने 1991 में बीड़ा उठाया कि आरती को वृहद और विहंगम बनाया जाए। इसके बाद आरती करने वाले 5 लोगों से संख्या धीरे-धीरे बढ़ाकर कुछ वर्षों बाद 11 तक पहुंच गई। आरती महाआरती में बदल गई। फिर स्कूली छात्राओं से बात कर पुजारी के पीछे आरती गायन प्रारंभ किया। धीरे-धीरे महाआरती ग्लोबल बन गई। 21 पुजारी और 42 कन्याओं के जरिए होने वाली महाआरती अब भारत की पहचान दुनिया में बन चुकी है। पूरी दुनिया से लाखों लोग इस दिन महाआरती में शामिल होते हैं।
क्या कहते हैं विद्वान
वाराणसी के श्री बटुक भैरव मंदिर के महंत श्री जितेंद्र मोहन पुरी (विजय गुरु) ने बताया की आज का ग्रहण भद्रा खंडग्रास चंद्र ग्रहण है। ऐसे में चंद्र ग्रहण के 9 घंटे पहले से सिर्फ शुभ कार्यों पर रोक लग जाती है। सूतक काल से ही ग्रहण काम में स्नान, ध्यान, और जाप करने की परंपरा हिंदू शास्त्र में वर्णित किया गया है। तांत्रिक प्रयोग, मंत्र सिद्धि और तंत्र प्रतिष्ठा सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण सबसे सर्वोत्तम समय माना जाता हैं।
वीआईपी से लेकर वीवीआईपी तक आरती में होते हैं शामिल
काशी के गंगा घाट पर होने वाली इस आरती में अब तक सैकड़ों से ऊपर वीआईपी और वीवीआईपी शामिल हो चुके हैं। इस आरती के अलौकिक छटा में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी, प्रतिभा पाटिल के साथ-साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो बार शामिल हो चुके हैं। इसके आलावा पीएम मोदी ने शिंजो आबे के साथ काशी की इस आरती के माध्यम से इसका जापान की परंपरा से मिलन कराया था।