VIDEO: कृष्ण जन्माष्टमी पर मथुरा में भगवान पहनते हैं जो पोशाक, उसका है सपने में आने का राज!
इस बार ठाकुर जी मोतियों और स्टोन से बनी पचरंगी पोशाकों में अपनी अलग ही छठा बिखेर रहे हैं। श्रद्धालु भी यहां की बेजोड़ कारीगरी के मुरीद बन गए हैं।
मथुरा। कृष्ण-जन्माष्टमी के दिन देश-विदेश के सभी कृष्ण मंदिरों की शोभा देखने लायक होती है। भगवान कृष्ण को नई पोशाक धारण कराने की परंपरा को भी पूरे भाव से मनाया जाता है। जन्माष्टमी के मौके पर पहनाई जाने वाली इस विशेष पोशाक के महत्व को समझते हुए कृष्ण की लीलास्थली वृन्दावन और मथुरा में पोशाक बनाने का काम बड़े पैमाने पर होता है। वृन्दावन में कृष्ण की पोशाक बनाने का ये काम हिन्दू-मुस्लिम सद्भाव की एक बेजोड़ मिसाल है, क्योंकि यहां पोशाक बनाने वाले ज्यादातर कारीगर मुस्लिम हैं। भागवान श्री कृष्ण के इस पोशाक से जुड़ा एक गहरा राज भी है जो कारीगरों के सपने से जुड़ा है।
मोतियों और स्टोन से बनी पचरंगी पोशाक को धारण किए हैं भगवान श्री कृष्ण
श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व हो और भगवान श्रीकृष्ण की पोशाक बनाने का काम न हो ये कैसे हो सकता है। कान्हा की लीलास्थली वृन्दावन में पोशाक बनाने का काम इस समय जोरों से किया जा रहा है। वृन्दावन में रंग-बिरंगी बनी पोशाक देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी काफी लोकप्रिय है। कान्हा का जन्मदिन है और उनकी पोशाकों को बनाने का काम भी चरम पर हुआ है। पोशाकों को बनाने का काम जहां हिन्दू करते हैं वहीं 80 प्रतिशत मुस्लिम कारीगर भी बेजोड़ कारीगरी करके इन पोशाकों को तैयार करते हैं। श्रद्धालु भी यहां की बेजोड़ कारीगरी के मुरीद बन गए हैं। इस बार ठाकुर जी मोतियों और स्टोन से बनी पचरंगी पोशाकों में अपनी अलग ही छठा बिखेरेंगे पोशाक व्यापारी विपिन अग्रवाल का कहना है की इस बार नई-नई डिजाइनों की बड़ी सुन्दर-सुन्दर पोशाके तैयार की जा रही है। सुना ये भी जाता है कि अगर डिजाइन में कहीं कोई कमी या गलती हो जाती है तो राधा-रानी खुद कारीगरों के सपने में आकर उसे बता देती हैं।
15 से 16 घंटे तक करना पड़ता है काम
कई महीने पहले से पोशाक बनाने का काम चरम पर होता है। इन पोशाकों को बनाने वाले कारीगर हाथ से पूरी कारीगरी करके इन पोशाकों को तैयार करते हैं। कान्हा की लीलास्थली वृन्दावन में जहां हिन्दू कारीगर इस काम को करते हैं वहीं धर्मं की बंदिशों को तोड़ते हुए वृन्दावन के ज्यादातर मुस्लिम कारीगर पोशाक बनाने का काम करते हैं और सभी हिन्दू धर्म की आस्था का ख्याल रखते हुए इस काम को अंजाम देते हैं। वैसे तो वृन्दावन में साल भर ही ये पोशाक बनाने का काम चलता रहता है, लेकिन जन्माष्टमी नजदीक आते-आते ये अपने चरम पर होता है और कारीगर दिन में 15 से 16 घंटे तक काम करते हैं।
लड्डू गोपाल के लिए वृन्दावन आकर होती है खरीददारी
भगवान लड्डू गोपाल और राधा कृष्ण के विग्रह को तैयार करने, उनका श्रृंगार करने और उन्हें सजाने संवारने के लिए वृंदावन जग प्रसिद्ध है। यहां एक से बढ़कर एक आकर्षक भगवान की मूर्तियां बनाई जाती है। भक्त बड़ी आस्था और श्रद्धा के साथ यहां से भगवान की मूर्तियां ले जाकर अपने-अपने घर में स्थापित करते हैं और नियम पूर्वक उनकी पूजा-अर्चना शुरू कर देते हैं। श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर भक्त अपने-अपने घरों में विराजमान भगवान राधा कृष्ण और लड्डू गोपाल के लिए वृंदावन आकर सुंदर-सुंदर पोशाके, मुकुट, हार-सिंगार आदि की खरीददारी करते हैं। आजकल वृन्दावन में भगवान बांके बिहारी मंदिर के समीप के बाजारों में पोशाक और मुकुट आदि श्रृंगार की वस्तुओं की खरीददारी करते नजर आ जाएंगे। दूर दराज से आए श्रद्धालुओं से बात की तो उन्होंने बताया कि वो जन्माष्टमी की तैयारी में जुटे हुए हैं और उसी के लिए खास तौर पर खरीददारी करने के लिए वृंदावन आए हैं।
100 रुपए से लेकर हजारों रुपए तक की तैयार करते हैं पोशाक
श्रद्धालु रेणु ने बताया समय के बदलते स्वरुप के अनुसार भगवान के श्रृंगार और पोशाकों की भी नई-नई वैरायटी बाजार में नजर आ रही है। आजकल तो डिजाइनर पोशाकों का ट्रेंड आ गया है। पोशाक और श्रृंगार विक्रेता आशीष शर्मा ने बताया कि उनके यहां से देश-विदेश में पोशाक जाती है। लोग ऑर्डर करके अपनी मनपसंद डिजाइन की पोशाक तैयार कराने आते हैं। आशीष ने बताया कि उनके यहां सौ रुपए से लेकर हजारों रुपए तक की पोशाक तैयार रहती है। जिन्हें लोग बड़ी आस्था के साथ अपने भगवान के लिए खरीदकर ले जाते हैं। उन्होंने अपने यहां तैयार की गई कई वैरायटी की पोशाकों के बारे में जानकारी भी दी।
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