यूपी: नहीं मिली एंबुलेंस, तांगे में ही महिला ने दिया बच्चे को जन्म
बरेली (यूपी)। एक गर्भवती महिला को एंबुलेंस नहीं मिलने पर तांगे से अस्पताल लाने की कोशिश की गई। इस दौरान महिला की हालत इतनी खराब हो गई कि अस्पताल के सामने ही तांगे पर महिला ने बच्चे को जन्म दे दिया।
सीएचसी के सामने महिला ने दिया बच्चे को जन्म
ये घटना यूपी में स्वास्थ्य सेवाओं का हाल बताने के लिए काफी है। बताया जा रहा कि 28 वर्षीय गर्भवती महिला को अस्पताल पहुंचाने के लिए परिजनों ने एंबुलेंस मंगाने की कोशिश की, लेकिन गांव में एंबुलेंस की सुविधा नहीं थी।
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आखिरकार परिजनों ने महिला को तांगे से मीरगंज इलाके के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लेकर पहुंचे। स्वास्थ्य केंद्र पहुंचने पर पता चला की आशा कार्यकर्ता हड़ताल पर हैं।
महिला को स्वास्थ्य केंद्र ले जाने का भी वक्त नहीं मिला। बाद में डॉक्टरों के सहयोग से तांगे पर ही महिला ने बच्चे को जन्म दिया।
'आशा कार्यकर्ताओं की हड़ताल से हुई परेशानी'
पूरे मामले पर मीरगंज सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रमुख अमित कुमार ने बताया कि आमतौर पर गांव में गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी की जिम्मेदारी आशा कार्यकर्ताओं पर होती है। उनकी हड़ताल की वजह से ही ये समस्या हुई।
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उन्होंने बताया कि परिजनों ने एंबुलेंस के लिए हेल्पलाइन नंबर 102/108 पर कॉल नहीं किया जिसकी वजह से एंबुलेंस की सुविधा उन तक नहीं पहुंच सकी।
फिलहाल चिकित्सकीय लापरवाही के आरोपों पर मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दे दिए गए हैं। इस बीच मामले की गंभीरता को देखते हुए जिला अस्पताल से जुड़े अधिकारी भी मौके पर पहुंचे। खुद मुख्य मेडिकल अधिकारी (सीएमओ) विजय यादव भी पूरी स्थिति को जानने के लिए सीएचसी पहुंचे।
आशा कार्यकर्ता एसोसिएशन ने अस्पताल प्रशासन पर उठाए सवाल
गर्भवती महिला प्रेमवती की बड़ी बहन शांति ने बताया कि आशा कार्यकर्ता की हड़ताल की वजह से थोड़ी परेशानी हुई। हालांकि तांगे से लेकर जब हम सीएचसी पहुंचे तो इतना वक्त नहीं था कि उन्हें स्वास्थ्य केंद्र के अंदर ले जा सकें इसलिए तांगे पर बच्चे का जन्म हुआ।
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दूसरी ओर आशा कार्यकर्ता एसोसिएशन की जिला अध्यक्ष इंदुश्री गंगवार ने बताया कि पूरे मामले में आशा कार्यकर्ताओं को आरोपी बताने की कोशिश की जा रही है।
ऐसी भी संभावना हो सकती है कि अस्पताल प्रशासन ने ही महिला को एंबुलेंस सुविधा नहीं देने की कोशिश की होगी। उन्होंने कहा कि हमारा आंदोलन इसलिए है क्योंकि प्रशासन हमारी मांगों को नहीं सुन रहा है।
उनकी मांग है कि उनके वेतन में वृद्धि की जाए और उनकी सेवा का नियमितीकरण किया जाए। बता दें कि इस समय आशा कार्यकर्ताओं की नियुक्तियां अस्थायी हैं, उन्हें 3,000 रुपये का मासिक पारिश्रमिक मिलता है।