किसानों को कर्ज के कुचक्र से निकालने के लिए कर्जमाफी नहीं है समाधान
आखिर कैसे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रदेश के किसानों को कर्ज के कुचक्र से बाहर निकालेंगे, लोन माफी से नहीं निकलेगा समाधान
लखनऊ। यूपी की सत्ता संभालते ही योगी सरकार ने किसानों का लोन माफ करने का ऐलान किया था, जिसके बाद प्रदेश के तमाम किसानों का एक लाख रुपए तक का कर्ज माफ करने की घोषणा की गई। हालांकि किसानों के लिए यह कर्जमाफी तत्कालीन लाभ हो सकती है, लेकिन यह लंबे समय का समाधान नहीं हो सकता है। अभी तक किसानों का लोन माफ नहीं किया गया है, लेकिन किसान अगली खेती के लिए एक बार फिर से कर्ज लेने को मजबूर हैं।
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हर साल लेना पड़ता है कर्ज
किसानों को खेती के लिए बीज खऱीदने के लिए लोन की जरूरत है, किसानों एक एकड़ जमीन में खेती के लिए 20 बोरी बीज खरीदनी होती है, हर बोरी में 50 किलो बीज होता है, एक बोरी की कीमत 24 रुपए के लिहाज से इसकी कुल कीमत 24000 रुपए होगी। इसके बाद किसानों को खाद खरीदनी होती है, जिसके लिए उन्हें पांच किलो जिंक सल्फेट जिसकी कीमत 300 रुपए, दो पैकेट यूरिया जिसकी कीमत 330 रुपए एक बोरी की होती है। इसके अलावा पांच बोरी डायमोनियम फॉस्फेट लेना होता है जिसकी कीमत 1150 रुपए होती है, कुल मिलाकर इसकी कीमत 6710 रुपए होती है।
खर्च का लंबा है हिसाब-किताब
लेकिन खेती का काम यही नहीं पूरा होता है, किसानों को अपना खेत जोतवाना होता है, इसके लिए वह ट्रैक्टर किराए पर लेते हैं, जोकि प्रति घंटा के हिसाब से 500 रुपए लेता है, दस बार खेत की जोताई करनी होती है और दो घंटे के लिए, इस लिहाज से ट्रैक्टर की कुल कीमत 10 हजार रुपए होती है। इसके बाद किसानों को सिंचाई के लिए पंप चलाना होता है, जोकि डीजल से चलता है, इसके लिए पंप को 150 रुपए प्रति घंटे के हिसाब से किराए पर मिलता है, एक एकड़ जमीन की सिंचाई के लिए चार घंटे तक मोटर चलाने की जरूरत होती है, खेत को कुल सात बार सींचना होता है, इस लिहाज से सिंचाई का कुल खर्च 4200 रुपए होता है।
इतना आसान नहीं है किसान के लिए खेती
अरे रुकिए जनाब खेती इतनी भी आसान नहीं है, काम यहां नहीं खत्म होता है, किसानों को खेती के लिए खेत में खाद डालनी होती है, जिसके लिए मजदूरों की जरूरत होती है जोकि प्रति दिन 250 रुपए लेते हैं, मजदूरों को कुल 1500 रुपए देने होते हैं। इसके बाद खेती का आखिरी चरण फसल की कटाई होती है, इसके लिए एक ट्रैक्टर को किराए पर लेना होता है जोकि2000 रुपए प्रति एकड़ लेता है, जिसमें दस मजदूर लगते हैं, उन्हें कुल 2500 रुपए देने होते हैं। साथ ही कुल 250 बोरियों की जरूरत पड़ती है, एक बोरी की कीमत 20 रुपए होती है। सब मिलाकर 9500 रुपए कटाई में खर्च होते हैं।
खेती के बाद भी खत्म नहीं होता काम
खेती का काम पूरा होने के बाद किसानों के पास उसे बेचने के लिए किसानों को इसे बाजार में ले जाना होता है। अगर सबकुछ सही होता है और खेत में आलू बोया गया है तो कुल 125 कुंटल आलू की पैदावार होती है, हर बोरी में 50 किलो आलू आता है, इसे गोदाम या बाजार ले जाने की कुल कीमत 30 हजार रुपए होती है। इस लिहाज से एक सीजन की पूरी खेती के लिए एक किसान को तकरीबन 90 हजार रुपए खर्च करने पड़ते हैं।
खर्च की तुलना में नहीं मिलती लागत
योगी सरकार के सत्ता में आने से पहले न्यूनतम कीमत निर्धारित नहीं थी, पिछले मौसम में आलू की कीमतें अलग-अलग थी, यह 120 रुपए से 750 प्रति बोरी यानि 50 किलो का दाम था। इस लिहाज से एक बोरी की कीमत औसत रूप से 4.85 रुपए प्रति किलो था। इस लिहाज से 125 कुंटल आलू की कीमत 60625 रुपए था। लेकिन यूपी के किसानों का कहना है कि हमें अक्सर फसल को गोदाम में ही छोड़ना पड़ता था, क्योंकि उसकी कीमत गोदाम के किराए से अधिक हो जाती थी।
हर साल किसान डूबता है कर्ज में
योगी सरकार आने के बाद आलू की न्यूनतम कीमत तय की गई है, अब यह 487 रुपए प्रति कुंटल दाम तय किया गया है, लेकिन इस रेट से भी अगर किसान का पूरा आलू ले लिया जाता है तो उसे 60875 रुपए मिलेंगे। लेकिन किसान को इसकी उपज में तकरीबन 90 हजार रुपए खर्च करने पड़े थे, इस लिहाज से किसान को 30 हजार रुपए का नुकसान हुआ। फसल की कीमत का यह कुचक्र लगाातार चलता रहता है और इसकी वजह से किसान साल दर साल कर्ज में डूबता जाता है। उनके पास बीज का पैसा नहीं होता, खाद का पैसा नहीं होता, सिंचाई, कटाई, ट्रांसपोर्ट और गोदाम का पैसा नहीं होता है।
घर में खुशी हो या गम किसान हमेशा गर्त में जाता है
ऐसे में अगर किसानों के घर में शादी हो, किसी की तबियत बिगड़ जाए तो उन्हें मजबूरन अपना खेत का एक हिस्सा बेचना पड़ता है। इनसब के बीच नोटबंदी के चलते किसानों की रीढ़ और टूट गई। ऐसे में योगी सरकार की छोटे किसानों की कर्ज माफी किसानों के लिए फौरी राहत तो ला सकता है, लेकिन वह उसे लंबे समय तक मदद नहीं कर सकती है। किसानों के पास कर्ज के इस कुचक्र के बाद भी खेती करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता। किसान अपने बच्चों को बाहर नौकरी के लिए भी नहीं भेज सकता है क्योंकि उसे बाहर 250 रुपए दिहाड़ी ही मिलती है क्योंकि उसके पास कोई खास कौशल नहीं होता है।