मुलायम और अखिलेश में से कौन है बेहतर, इन चार प्वाइंट में जानिए क्यों है दोनों में टकराव
यूपी की सियासत में मुलायम के करीबियों में बाहुबली नेताओं का बोलबाला रहा है। मुलायम अपने उन साथियों को साथ बनाए रखना चाहते हैं जिनके साथ उन्होंने सियासत की सीढ़ियों में खुद को मजबूती से आगे बढ़ाया।
लखनऊ। यूपी चुनाव से महीनों पहले शुरू हुआ समाजवादी पार्टी का सियासी ड्रामा शुक्रवार को प्रदेश की राजनीति में भूचाल लेकर आया। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने अपने बेटे और प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को पार्टी से छह साल के लिए बाहर कर दिया। इसके साथ ही उन्होंने अपने चचेरे भाई रामगोपाल यादव को भी बाहर का रास्ता दिखाया। जिस वक्त प्रदेश की राजनीति में हर पार्टी अपनी सियासी गोटियां फिट करने में व्यस्त है उसमें सपा मुखिया का ये कदम कई तरह के सवाल खड़े करता है और अखिलेश के कद पार्टी के दूसरे नेताओं से ऊंचा करने वाला है। मुलायम सिंह यादव सपा के मुखिया जरूर हैं लेकिन पांच साल के शासन में अखिलेश यादव ने अपनी पकड़ ऐसी बनाई है कि प्रदेश की जनता उन्हें बाकियों से बेहतर मानती है। अखिलेश यादव के कुछ फैसलों ने भी इसमें बड़ी भूमिका निभाई है।
मुलायम का बाहुबल प्रेम और अखिलेश की क्लीन इमेज
यूपी की सियासत में मुलायम के करीबियों में बाहुबली नेताओं का बोलबाला रहा है। मुलायम अपने उन साथियों को साथ बनाए रखना चाहते हैं जिनके साथ उन्होंने सियासत की सीढ़ियों में खुद को मजबूती से आगे बढ़ाया। फिर जाते वह बाहुबली अतीक अहमद को टिकट देने का मामला हो या फिर मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल के सपा में विलय का मामला। मुलायम इन के पक्षधर रहे हैं। जबकि अखिलेश यादव ने अपनी साफ सुथरी छवि को बरकरार रखने की पुरजोर कोशिश की। अखिलेश यादव प्रदेश की सियासत में पार्टी और सरकार से दागियों को बाहर रखने के लिए के पक्ष में हैं लेकिन मुलायम के आगे उनकी एक नहीं चली। हालांकि एक बात यह भी है कि पांच साल के कार्यकाल में प्रदेश में अपराध का बोलबाला रहा है लेकिन फिर भी अखिलेश यादव अपने विकास कार्यों की आड़ में इसे छुपाने में लगभग कामयाब रहे हैं।
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मुलायम की ख्वाहिश से इतर अखिलेश की राह
अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद से ही मुलायम सिंह यादव को उनके कामकाज का ढंग पसंद नहीं आया। अखिलेश को मुलायम ने सरेआम कई जगह मंचों पर ही लताड़ भी लगाई। मुलायम की कोशिश हमेशा यही रही कि अखिलेश हों या कोई और पार्टी का हर शख्स उनके बताए रास्ते पर ही चले। इसके पीछे वजह यह भी है कि पार्टी को यहां तक लाने में मुलायम ने काफी दंगल लड़े हैं। पार्टी में किसे शामिल किया जाना है और किसे बाहर करना है इस पर भी मुलायम का दखल रहा। यही एक वजह अखिलेश को सपा मुखिया से दूर करती है। अखिलेश ने साफ छवि के नेताओं को तरजीह दी तो मुलायम अपने करीबियों को कैबिनेट और दूसरे पदों पर पहुंचाने की कोशिशों में रहे। गायत्री प्रजापति इसका सबसे सटीक उदाहरण हैं। प्रजापति मुलायम के शागिर्द कहे जाते हैं लेकिन उनकी रवैया अखिलेश की पसंद से परे है। अखिलेश यादव ने उन्हें कैबिनेट से बाहर किया तो मुलायम ने एक बार फिर दखल देकर उन्हें जगह दिलाई।
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रामगोपाल पर भी जुदा है मुलायम-अखिलेश की चाहत
सपा में चल रहा घमासान आज की बात नहीं है। यह लड़ाई तभी से जारी है जब अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बना दिया गया। अखिलेश को सीएम बनाए जाने से शिवपाल सिंह यादव खफा थे और इस काम में रामगोपाल यादव ने काफी अहम भूमिका निभाई। अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री पद के लिए आगे करने के प्रस्ताव पर सहमति दिलाने में रामगोपाल यादव ने जल्दबाजी दिखाई और शिवपाल यादव को इसकी भनक लगने से पहले ही प्रस्ताव पास करा दिया। यही मौका था जब अखिलेश यादव और रामगोपाल यादव का साथ गहरा हो गया और वे दोनों शिवपाल की आंख की किरकिरी बन गए। शिवपाल ने इसके बाद ही रामगोपाल की जड़ें खोदना शुरू किया और उन्हें भी मुलायम सिंह की नजरों में बागी करार दिया। मुलायम सिंह यादव को खतरा नजर आने लगा कि रामगोपाल अखिलेश की आड़ में पार्टी पर अपनी पकड़ न मजबूत कर लें। वहीं, अखिलेश यादव रामगोपाल की रणनीति पर चलते रहे और पार्टी के प्रदेश संगठन से लेकर सरकार तक में उनके सुझाव आजमाए। अखिलेश और रामगोपाल की करीबी दो महीने पहले भी सपा के अंदर छिड़े घमासान में साफ देखी गई थी।
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कंप्यूटर को बुरा मानते थे मुलायम, अखिलेश ने मुफ्त में बांटे
किसी जमाने में मुलायम सिंह यादव की छवि अंग्रेजी और कंप्यूटर विरोधी की थी। मुलायम सिंह अंग्रेजी शिक्षा और कंप्यूटर को देशहित के खिलाफ मानते थे। उनका कहना था कि इससे गांवों में बसने वाले लोगों को नुकसान होगा। अखिलेश यादव ने सत्ता में आते ही लैपटॉप वितरण योजना शुरू कर दी। मुलायम सिंह यादव पहले तो चुप रहे लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों में पार्टी की हार के लिए उन्होंने अखिलेश की इस योजना को भी जिम्मेदार ठहराया। मुलायम का कहना था कि सरकार ने जो पैसा इस योजना में खर्च किया वह किसानों और गरीबों के विकास में दूसरी तरह से खर्च किया जा सकता था। मुलायम ने अखिलेश यादव के लखनऊ मेट्रो प्रोजेक्ट पर भी विरोध दर्ज कराया था। जबकि अखिलेश ने अपनी विकासवादी सोच और छवि को बरकरार रखा। अखिलेश ने न सिर्फ लखनऊ मेट्रो के प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाया बल्कि दूसरे प्रोजेक्ट्स पर भी पैसा लगाया। अखिलेश यादव ने लैपटॉप वितरण योजना भी दोबारा शुरू की। बेशक यह तर्क दिया जा सकता है कि मुफ्त लैपटॉप बांटने से बेहतर कोई और प्रोजेक्ट शुरू किया जा सकता था लेकिन उत्तर प्रदेश में गरीब परिवारों से आने वाले मेधावी छात्रों के लिए यह योजना वाकई बेहतर रही है।
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