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यूपी में राजनीतिक विरासत का इतिहास

उत्तर प्रदेश की सियासत में तीन बड़े राजनीतिक घरानों का इतिहास, इन तीन बड़े नेताओं ने यूपी की राजनीति में कद्दावर कांग्रेस को दी थी चुनौती

By Ankur
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लखनऊ। उत्तर प्रदेश की सियासत में कई नेता अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, इसमे कई ऐसे नेता हैं जो अकेले और बिना किसी राजनीतिक पृष्ठभूमि के चुनावी मैदान में अपने किस्मत आजमा रहे हैं तो कुछ नेता ऐसे हैं जो अपनी राजनीतिक विरासत को इस चुनाव में आगे बढ़ा रहे हैं। प्रदेश में मुलायम सिंह यादव, चौधरी चरण सिंह और गांधी परिवार की विरासत इन परिवारों के नेता आगे बढ़ा रहे हैं।

जयंत चौधरी- चौधरी चरण सिंह

जयंत चौधरी- चौधरी चरण सिंह

किसानों और जाटों के बड़े नेता चौधरी चरण सिंह के पोते जयंत चौधरी इस बार चुनावी मैदान में हैं और अपने पिता अजीत सिंह के कंधे से कंधा मिलाकर अपने दल को एक बार फिर से प्रदेश में खड़ा करने में जुटे हैं। हालांक जयंत का कहना है कि उत्तर प्रदेश में बदलाव होने जा रहा है, मेरी चौधरी चरण सिंह जैसे बड़े नेता और उनके आदर्शों से तुलना नहीं करनी चाहिए, मेरा काम करने का तरीका अलग है, लेकिन मेरे उपर बड़ी जिम्मेदारी है।

मुलायम- अखिलेश

मुलायम- अखिलेश

यूपी के चुनाव में परिवार की विरासत आगे बढ़ाने वाले जयंत यादव अकेले नेता नहीं हैं, उनके अलावा राहुल गांधी और अखिलेश यादव भी हैं जो अपने परिवार की तकरीबन 50 साल से अधिक की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। एक तरफ जहां राहुल गांधी दशकों से चली आ रही है गांधी-नेहरू परिवार की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं तो दूसरी तरफ अखिलेश यादव पर अपने सबसे बड़े राजनीतिक परिवार की विरासत को आगे ले जाने का जिम्मा है। 1967 में पहली बार कांग्रेस की सत्ता को बड़ा झटका देने वाले नेता के तौर पर चौधरी चरण सिंह उभरे थे और उन्होंने एकमात्र परिवार की राजनीति को चुनौती दी थी।

देशभर में कांग्रेस के खिलाफ उठी लहर

देशभर में कांग्रेस के खिलाफ उठी लहर

यह वह दौर था जब चौधरी चरण सिंह कांग्रेस से अपनी दूरी बना रहे थे और उन्होंने उत्तर प्रदेश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनाई, इस वक्त सैफई से मुलायम सिंह यादव का उन्हें साथ मिला। यह वह दौर था जब इंदिरा गांधी अपना पहला चुनाव लड़ रही थीं, वहीं पश्चिम बंगाल सीपीएम की अगुवाई में कांग्रेस के खिलाफ मजबूत हो रहा ता, जबकि तमिलनाडु में डीएमके ने कांग्रेस को सत्ता से दूर किया। इसके अलावा तमाम पश्चिमी भारत में जनसंघ ने अपनी जड़े मजबूत करनी शुरु कर दी थी।

तीन बड़े नेताओं ने बदला सियासी माहौल

तीन बड़े नेताओं ने बदला सियासी माहौल

इस दौर में जो भी दल बड़ा बदलाव कर रहे थे वह परिवार से इतर थे और स्वतंत्र दल के रूप में सामने आए, जिसमें स्वतंत्र पार्टी, जनसंघ, सोशलिस्ट पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टी और डीएमके ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। कुछ राजनीतिक जानकारों का मानना है कि सोशलिस्ट औऱ जनसंघ को बड़ा लाभ उनके बड़े नेताओं की वजह से हुआ, 1963 के उपचुनाव में जेबी कृपलानी ने अमरोहा, राम मनोहर लोहिया ने फर्ऱुखाबाद और मिनू मसानी ने राजकोट से कांग्रेस को हार का स्वाद चखाया था। इन तीनों नेताओं को कांग्रेस और नेहरू विरोधी नेता के तौर पर जाना जाता था, यह चुनाव चीन से युद्ध के ठीक बाद हुए थे, ऐसे में देश में राजनीतिक अस्थिरता का फायदा इन तमाम नेताओं को लाभ मिला।

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English summary
History of political families legacy in Uttar Pradesh. There has been three leaders who challenged the dominant Congress.
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