सपा सरकार के फर्जीवाड़े पर हाईकोर्ट ने योगी सरकार को जारी किया नोटिस
सपा सरकार पर किशोर न्याय बोर्ड में नियुक्ति के दौरान फर्जीवाड़ा कर चहेतों को नौकरी देने का आरोप है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस संबंध में योगी सरकार को नोटिस जारी कर सवाल-जवाब तलब किया है।
इलाहाबाद। उत्तर प्रदेश की पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार में हुई एक और सरकारी नियुक्ति में फर्जीवाड़ा का मामला खुलने लगा है। इस मामले में कार्रवाई के लिए इलाहाबाद हाइकोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। नियुक्तियों में धांधली के कई साक्ष्य भी न्यायालय में उपलब्ध कराये गए है। मामले की गंभीरता को देखते हुए उच्च न्यायलय ने योगी सरकार से जवाब तलब किया है। हाइकोर्ट ने महिला एवं बाल कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव को भी नोटिस जारी किया है। सबसे बड़ी बात यह है की कोर्ट ने चयनित सदस्यों को भी नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। मालूम हो कि योगी सरकार के सत्ता में आते ही सपा सरकार में हुए फर्जीवाड़े पर लगातार जाँच का सिलसिला चल रहा है। ये भी पढ़ें- सपा सरकार की इन बड़ी योजनाओं को बंद करेंगे CM योगी आदित्यनाथ
चहेतों
की
नियुक्तियां
सपा
सरकार
पर
यह
आरोप
से
हमेशा
से
लगता
रहा
है
कि
सरकार
नियुक्ति
में
चहेतों
को
वरीयता
देती
है।
इस
मुद्दे
पर
कई
बार
जमकर
विरोध
भी
हुआ
है।
लेकिन
सूबे
में
सत्ता
परिवर्तन
के
बाद
यह
ऐसा
पहला
मौका
है
की
सीधे
कोर्ट
में
नियुक्तियों
को
चुनौती
दी
गई
है।
कोर्ट
में
बताया
गया
की
सपा
सरकार
के
कार्यकाल
में
प्रदेश
भर
के
जिलों
में
की
गयी
किशोर
न्याय
बोर्ड
सदस्यों
की
नियुक्तियों
में
धांधली
की
गई
तथा
नियम-कानून
को
दरकिनार
कर
अपात्र
और
चहेतों
की
नियुक्ति
की
गई।
हाईकोर्ट ने याचिका की अर्जी स्वीकार करते हुए इस मामले की सुनवाई शुरू कर दी है। पहली ही सुनवाई में प्रमुख सचिव को जारी नोटिस ने साफ कर दिया है इस मामले में कोर्ट सीधे कार्रवाई करेगी। कोर्ट ने महिला एवं बाल कल्याण सहित छह चयनित सदस्यों को भी नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। ये भी पढ़ें- 30 दिन में अखिलेश सरकार की योजनाओं पर चला योगी का डंडा
22
जून
2015
को
अस्तित्व
में
आई
थी
प्रक्रिया
अखिलेश
सरकार
की
महत्वाकांछी
जन
सुविधाओं
के
तहत
प्रदेश
के
सभी
जिलों
में
किशोर
न्याय
बोर्ड
में
दो-दो
सदस्यों
की
नियुक्ति
का
ब्लू
प्रिंट
तैयार
हुआ
था।
इस
संबंध
में
22
जून
2015
को
विज्ञापन
जारी
किया
गया
और
यह
प्रक्रिया
अस्तित्व
में
आई
थी।
विज्ञापन
में
कुछ
नियम
कानून
भी
बने,
चयन
की
शर्त
लागू
की
गई।
इस
प्रक्रिया
में
चयन
की
पहली
शर्त
थी
कि
अभ्यर्थी
की
शैक्षिक
योग्यता
परास्नातक
हो
और
उसकी
आयु
न्यूनतम
35
वर्ष
हो।
साथ
ही
उसके
पास
बाल
कल्याण
के
क्षेत्र
में
काम
करने
का
सात
वर्ष
का
अनुभव
होना
आवश्यक
है।
इसके
अलावा
अभ्यर्थी
का
उसी
जिले
का
मूल
निवासी
होना
आवश्यक
था
जहां
उसकी
नियुक्ति
की
जानी
थी।
लेकिन अब जब कोर्ट में यह मामला पंहुचा तो सरकार के बनाये नियम कानून चयनित अभ्यर्थी पूरा करते नहीं नजर आ रहे है। सवाल यही है की जब तय शर्तों का पालन नहीं हुआ तो नियुक्ति कैसे हुई? क्या फर्जीवाड़ा कर, नियमों को दरकिनार कर नियुक्तियां की गई? कोर्ट में जिरह के दौरान बताया गया कि कई अभ्यर्थी ऐसे हैं जो उस जिले के निवासी नहीं है और न ही अनुभव और योग्यता रखते है। नियमानुसार दो सदस्यों के बोर्ड में एक पुरूष और एक महिला सदस्य होनी चाहिए, मगर धांधली में दोनों पुरूष तो कहीं दोनों महिला सदस्य नियुक्त किये गये है। मामले कि सुनवाई न्यायमूर्ति विक्रमनाथ और न्यायमूर्ति डी. एस त्रिपाठी की पीठ कर रही है।