इलाहाबाद: हंडिया सीट पर दिलचस्प हुआ मुकाबला, महिला कार्ड खेलकर पार्टियों ने बदला ट्रेंड
इस सीट पर हमेशा से पुरुष प्रत्याशियों की तूती बोली है लेकिन इस बार बड़े दलों ने गठबंधन कर महिला कार्ड चला है। चूंकी महिलाओं की राजनीतिक दाग से दूरी इन्हें जनता के बीच लोकप्रिय बनाती है।
इलाहाबाद। हंडिया सीट पर डिंपल यादव ने आखिरी समय में सपा प्रत्याशी निधि यादव के चुनाव में जान फूंक दी। जो चुनाव अभी तक भाजपा-अद गठबंधन प्रत्याशी प्रमिला त्रिपाठी के पक्ष में नजर आ रहा था अब उसमें ट्विस्ट आ गया है। वैसे भी इस सीट पर दो दिग्गजों की राजनीतिक साख दांव पर है। यूपी बोर्ड के सचिव रहे और मौजूदा समय में सपा एमएलसी वासुदेव यादव का कद सपा में कैबिनेट मंत्री स्तर का है और उनकी सपा में इस तरह चलती है कि बिना शोर-शराबे के ही उन्होंने अपनी बेटी को विधायकी का टिकट दिला दिया। वो भी विधायक प्रशान्त का टिकट काट कर। अब निधि की जीत के लिए वह एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं।
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मोदी
सरकार
पर
बिगड़े
वरुण
गांधी,
कहा-
कर्ज
से
किसान
मर
रहा
है,
माल्या
मौज
कर
रहा
है
दूसरी
तरफ
हंडिया
को
पहचान
दिलाने
वाले
और
इस
सीट
को
किसी
जागीर
की
तरह
बार-बार
कब्जाने
वाले
पूर्व
शिक्षा
मंत्री
राकेशधर
त्रिपाठी
की
साख
दांव
पर
है।
उन्होंने
भी
खुद
चुनाव
न
लड़कर
पत्नी
प्रमिला
त्रिपाठी
को
मैदान
में
उतारा
है।
प्रमिला
के
लिए
यह
राजनीतिक
कैरियर
का
आगाज
जरूर
है
लेकिन
राकेशधर
के
लिए
यह
राजनीतिक
कैरियर
बचाने
का
आखिरी
मौका
है।
जेल
से
छूटकर
आए
राकेशधर
चुनाव
की
पूरी
कमान
संभाले
हुए
हैं
और
वो
भी
एड़ी-चोटी
का
जोर
लगा
रहे
हैं।
पर्टियों ने चला है महिला कार्ड
इस सीट पर हमेशा से पुरुष प्रत्याशियों की तूती बोली है लेकिन इस बार बड़े दलों ने गठबंधन कर महिला कार्ड चला है। इसके राजनीतिक फायदे भी हैं। चूंकी महिलाओं की बढ़ती हिस्सेदारी और राजनीतिक दाग से दूरी इन्हें जनता के बीच लोकप्रिय बनाती है। निधि यादव की बात करें तो इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में उन्होंने बतौर छात्र नेत्रा पहचान बनाई है। निधि लंदन तक राजनीति की छटा बिखरे चुकी हैं। उनकी लोकप्रियता प्रमिला के मुकाबले कहीं ज्यादा है। हालांकि राकेशधर की साख इस पूरे इलाके में 30 साल तक रही है। ऐसे में साफ-सुथरी छवि की प्रमिला को फायदा मिलने की भी संभावना मजबूत है।
जनता किस पर खेलेगी दांव?
बता दें कि लोकसभा चुनाव के बाद हुए एमएलसी चुनाव में वासुदेव यादव ने भाजपा के रईश चन्द्र शुक्ल को हराकर अपने राजनीतिक कैरियर का शानदार आगाज किया था और यहीं से ही इनकी इलाके में साख बतौर राजनीतिज्ञ स्थापित हुई। वहीं दूसरी ओर राकेशधर का ग्राफ इस मामले में बहुत आगे है। जिसके आगे वासुदेव टिकते नजर नहीं आते।
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