सपा से अशोक प्रधान का जाना पार्टी के लिए खतरे की घंटी
समाजवादी पार्टी से अशोक प्रधान का जाना पार्टी के लिए खतरे की घंटी, चार बार लोकसभा सांसद रह चुके हैं।
लखनऊ। समाजवादी पार्टी के भीतर जिस तरह से विवाद चल रहा है उससे तमाम नेताओं को अपने राजनीतिक संकट पर खतरा दिखने लगा है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण प्रदेश में सपा के बड़े नेता अशोक प्रधान हैं जिन्होंने सपा का दामन छोड़ एक बार फिर से भारतीय जनता पार्टी का हाथ थाम लिया है। चुनावों की तारीखों के ऐलान के बाद जिस तरह से अशोक प्रधान ने सपा को छोड़ा है उसने प्रदेश में सपा के लिए जरूर मुश्किल संकेत दिए हैं।
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यूपी
चुनाव
2017-
जातीय
मुद्दों
में
दब
गए
विकास
के
मुद्दे
केंद्र
की
राजनीति
में
बड़ा
नाम
अशोक
प्रधान
को
प्रदेश
का
दिग्गज
नेता
माना
जाता
है
और
वह
यूपी
से
चार
बार
लोकसभा
सांसद
रह
चुके
हैं,
प्रधान
पहली
बार
भाजपा
की
सीट
पर
1996
में
लोकसभा
पहुंचे
थे।
वह
खुर्जा-नोएडा
से
भाजपा
की
सीट
पर
चुनाव
जीते
थे
और
उन्होंने
अटल
बिहारी
वाजपेयी
की
सरकार
में
मंत्री
का
भी
जिम्मा
संभाला
था।
1998
में
प्रधान
ने
तमाम
आकंड़ों
को
धता
साबित
करते
हुए
प्रदेश
में
देश
की
अबतक
की
10
सबसे
बड़े
अंतर
वाली
जीत
हासिल
की
थी।
जिसके
बाद
उन्हें
अटल
बिहारी
की
सरकार
में
खाद्य
मंत्रालय,
श्रम
मंत्रालय
औऱ
संचार
मंत्रालय
जैसे
विभागों
का
जिम्मा
दिया
गया
था।
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चुनावों
में
अखिलेश
और
कांग्रेस
की
करीबी
ने
बदला
UP
का
समीकरण
पार्टी
की
नूराकुश्ती
के
चलते
बड़े
नेता
विमुख
हालांकि
प्रधान
2009
में
चुनाव
हार
गए
थे
लेकिन
बावजूद
इसके
उन्होंने
केंद्र
की
राजनीति
में
अहम
भूमिका
निभाई
औऱ
तमाम
न्यूज
चैनल
पर
वह
भाजपा
के
अहम
चेहरे
के
तौर
पर
दिखाई
देते
थे।
लेकिन
2014
में
प्रधान
समाजवादी
पार्टी
का
हाथ
थामा
था।
सपा
में
आने
के
बाद
मुलायम
सिंह
ने
उन्हें
पार्टी
का
महासचिव
बनाया
था।
लेकिन
सपा
के
भीतर
जिस
तरह
की
नूराकुश्ती
चल
रही
थी
उसे
देखते
हुए
प्रधान
ने
सपा
से
दूरी
करना
ही
उचित
समझा।
लेकिन
अशोक
प्रधान
का
समाजवादी
पार्टी
से
जाना
पार्टी
के
लिए
एक
बड़ा
संकेत
हो
सकता
है
कि
पारिवारिक
कलह
पार्टी
के
लिए
काफी
महंगी
साबित
होने
वाली
है।