मुद्दे की बात: क्या है यूपी चुनाव में 24 घंटे बिजली के वादे की हकीकत?
कहने को तो उत्तर प्रदेश में 24 घंटे की बिजली मुहैया कराने का वादा हर दल और सरकार की ओर से होता है लेकिन हकीकत कुछ और ही है। जानिए मुद्दे की बात में बिजली के वादे पर विश्लेषण।
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव का आगाज हो चुका है। तमाम दल अपनी-अपनी गोटियां और गुट फिट करने की जुगत में लगे हुए हैं। साइकिल को हाथ का सहारा मिल गया है। कमल खिलने को बेताब है और हाथी अपनी मदमस्त चाल से सबको पछाड़ने को आतुर। सर्वोच्च न्यायालय यह लाख कह ले कि धर्म और जाति के नाम पर वोट मांगना अपराध है, तब भी यह हकीकत खुद न्यायालयों से भी छिपी नहीं होगी कि ये आदेश कम से कम जमीनी स्तर पर तो लागू नहीं ही होने वाला है, भले ही नेताओं के बयान से इनसे जुड़ी बातें गायब हो जाएं। फिर भी चुनावी आबादी का एक ऐसा हिस्सा भी होता है, जिसे जाति और धर्म के मामलों से हटकर बिजली, सड़क, गरीबी, शिक्षा और तमाम ऐसे मुद्दे हैं, जिन के आधार पर वो मतदान देकर, अपना प्रतिनिधि चुनते हैं। तो आईए चर्चा करते हैं, आज एक ऐसे ही मुद्दे की जिस पर जनता को हर सरकार से नाराजगी और धोखा ही हासिल होता है। ये मुद्दा है बिजली का। प्रदेश में बिजली का आलम ये है कि ठंड के बीतने के बाद मार्च-अप्रैल से ही बिजली की कटौती शुरू हो जाती है। हर किसी की शिकायत होती है कि जब भी चुनाव होता है तो तमाम दल 24 घंटे बिजली का दावा करते हैं लेकिन ऐसा हकीकत में हो नहीं पाता।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि आजादी के 70 साल के बाद भी उत्तर प्रदेश के कई गांव अंधेरे में हैं। प्रदेश का अंधेरा दूर करने के लिए तमाम योजनाएं शुरू की गई। कुछ केंद्र सरकार की मदद से तो कुछ प्रदेश सरकार की ओर से लेकिन वही ढाक के तीन पात। हालांकि बिजली की शिकायत उन क्षेत्रों में बिल्कुल नहीं है, जहां कोई वीआईपी शख्स मौजूद है। इस श्रेणी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी, समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव का संसदीय क्षेत्र आजमगढ़, राजधानी लखनऊ, डिंपल यादव का संसदीय क्षेत्र कन्नौज, कानपुर, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का गृह जनपद इटावा, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का संसदीय क्षेत्र रायबरेली, राहुल गांधी का संसदीय क्षेत्र अमेठी और देश की राजधानी से सटे कुछ इलाके शामिल हैं। हालांकि इन वीआईपी क्षेत्रों में भी 24 घंटे बिजली सिर्फ शहरी इलाकों में ही रहती है। ग्रामीण इलाकों में 3-8 घंटे की कटौती आम बात है। हम बात अगर प्रदेश में बिजली उत्पादन की करें तो यहां 1951 से स्थापित अन्य विद्युत उत्पादन केन्द्रों से क्षमता बढ़ी है, लेकिन माँग और आपूर्ति के बीच अन्तर बढ़ता जा रहा है। प्रदेश में बिजली उत्पादन थर्मल पावर ओबरा , थर्मल पावर अनपरा, एन. टी. पी. सी. बीजपुर , एन.टी.पी.सी शक्तिनगर, रेनुसागर , रिहन्द परियोजना , लैंको पावर प्लांट-प्राइवेटऔर एन.टी.पी.सी. टांडा में होता है।
25 हजार मेगावाट की जरूरत
बता दें कि प्रदेश में सवा करोड़ से ज्यादा बिजली के उपभोक्ताओं को अबाधित बिजली देने के लिए कम से कम 25 हजार मेगावाट की जरूरत है। बात अगर बजटों की करें तो उनमें हमेशा गांव बिजली से रोशन होने की कोशिश करते रहते हैं। साल 2016-17 के बजट में अखिलेश सरकार ने कहा था कि अगले 4 साल के भीतर पूरे प्रदेश में 24 घंटे बिजली मिलने लगेगी। कहा गया था कि अक्टूबर 2016 तक सरकार का लक्ष्य है कि 22 घंटे की बिजली मिलना शुरू हो जाए लेकिन ऐसा हो नहीं सका। सरकार ने सोलर पावर के जरिए भी ग्रामीण इलाकों में बिजली पहुंचाने की कार्ययोजना पर काम करना शुरू किया है।
सोलर पावर भी रसूखदारों तक सीमित
फिलहाल आलम ये है कि जिस सोलर पावर से गांवो को रोशन किए जाने की बात बजट में की गई है वो अभी गांवों के चंद बड़े और रसूखदार लोगों के घर की शोभा बढ़ा रहे हैं। सरकार की योजना थी कि राम मनोहर लोहिया समग्र ग्राम विकास योजना के तहत 70,000 सोलर स्ट्रीट लाईट की स्थापना तथा 40, 000 लोहिया आवासों में सोलर पैक हों, फिलहाल ऐसा कहीं दिख नहीं रहा। जानकार बताते हैं कि प्रदेश में बिजली का ठीक-ठाक उत्पादन होने के बावजूद जनता तक ना पहुंच पाने की वजह है चोरी। सरकारी आंकड़ों के अनुसार करीब 30 हजार करोड़ से ज्यादा की उधारी बिजली बोर्ड के सिर पर है। बताते हैं कि बिजली की कुल पूर्ति का 55 फीसदी हिस्से की वसूली हो पाती है।
उधारी देने से भी राज्य कर रहे मना
8 बिजली उत्पादन केंद्रों के होने बावजूद भी प्रदेश को बिजली अन्य प्रदेशों से उधार लेनी पड़ती है। हालात ये है कि कई बार अन्य प्रदेश, उधार पर बिजली देने से यूपी को मना भी कर चुके हैं। 2012 में जब बहुजन समाज पार्टी की सरकार के बाद सपा सत्ता में आई तो दावा किया गया कि बसपा सरकार उधार की बिजली खरीदने में लगी रही। जिसके कारण तीस हजार करोड़ कर्ज प्रदेश के मत्थे चढ़ गया। ये तो राजनीतिक दावे और वादे हो गए लेकिन हकीकत जांचे तो इन देनदारियों की एक वाजिब वजह सामने निकल कर आती है।
सरकारी महकमे खुद बाकी है लाखों-करोड़ों का बिल
प्रदेश में पुलिस महकमे से लेकर खुद बिजली विभाग के कई दफ्तरों पर लाखों - करोड़ों का बिल बाकी है लेकिन उसे देने का कोई नाम ही नहीं लेता। राजनीतिक रूप से तमाम दलों के लिए महत्वपूर्ण पूर्वांचल जिसमें, बलिया, बस्ती, गोरखपुर, गाजीपुर, मिर्जापुर में भी बिजली की हालत अच्छी नहीं है। ये इलाके ऐसे हैं जो बिजली के उत्पादन घरों से नजदीकी पर हैं लेकिन यहां भी ट्रांसमिशन में दिक्कतों के कारण बिजली लगातार मौजूद नहीं रह पाती। जिसके चलते औद्योगिक इकाईयां ठप पड़ी रहती हैं। ट्रांसमिशन लाइनों की खराबी के चलते उत्पादन घट जाता है और फिर कटौती शुरू।
बिजली के रेट
इन सबके बाद आती है बिजली के दरों की बारी। शायद ही कभी बिजली के रेट कम किए जाते हैं। उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग ने वर्ष 2016-17 के लिए घोषित की गई दरों के अनुसार वाणिज्यिक उपभोक्ताओं की दर में 7.24, छोटे व मझोले उद्योगों की दरों में 3.99और सरकारी संस्थानों की दरों में 8.83 फीसदी बिजली दरों में बढ़ोतरी की गई थी। इतना ही नहीं इनके साथ-साथ अस्थाई कनेक्शन और सरकारी नलकूपों की दरें भी बढ़ाई गई थीं। जिसके चलते औद्योगिक इकाइयों की कमर भी टूट जाती है। हालांकि बीते साल आयोग ने चुनावी मौसम का ख्याल रखते हुए घरेलू उपभोक्ताओं और किसानों को बख्श दिया था। बात फिलवक्त की करें तो अभी सभी दलों ने अपने-अपने घोषणा पत्र और उनके नेताओं के भाषणों में बिजली की कुव्यवस्था को अपना मुद्दा बनाया हुआ है। यह देखना होगा कि अगली सरकार जिसकी भी आती है, वो इस दिशा में क्या कदम उठाएगा?
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