जिला अस्पताल में मरीज की जांच करती हैं इनकी जेब भारी, इसलिए मर्ज नहीं जाता!
इसके बाद जब जांचों और उससे मिले भुगतान का मिलान किया गया तो चौंकाने वाला घोटाला निकलकर सामने आ गया। अभी ये सिर्फ एक काउंटर की बात है और लाखों का घोटाला दिखाई दे रहा है।
शाहजहांपुर। शाहजहांपुर के जिला अस्पताल में लाखों के गबन का मामला सामने आया है जिसमें कर्मचारियों और बाबू ने मिलकर लाखों रुपए डकार लिए। खास बात ये है कि घोटालेबाज कर्मचारी अभी भी कई और घोटालों को अंजाम दे रहे हैं। ये घोटाले अस्पातल में जमा होने वाली सरकारी जांचों की फीस में हुआ है। अस्पताल के सीएमएस मामले को रफा-दफा करने में जुटे हैं तो वहीं जिला प्रशासन ने पूरे मामले में जांच के बाद कड़ी कार्रवाई की तैयारी कर ली है।
ये वो अस्पताल है जहां इलाज तो फ्री होता है लेकिन जांचों के नाम पर जमा होने वाली फीस को यहां के कर्मचारी और बाबू डकार जाते हैं। दरअसल जिला अस्पताल में काउंटर नंबर-27 पर अस्पताल में भर्ती मरीज का खून बदलने के लिए 400 रुपए और बाहर के मरीज के लिए एक 1,500 रुपए और खून की जांचों की फीस जमा होती है। इसके अलावा हड्डी विभाग में प्लास्टर के लिए 250 रुपए की फीस सहित कई अन्य जांचों की फीस ली जाती है। पिछले कई महीनों से इस काउंटर पर तैनात चार महिला संविदा कर्मचारियों और बाबू राकेश चंद्रा ने काउंटर पर जमा पैसा सरकारी खातों में जमा करने के बजाए अपनी जेबों में भर लिया। इसके बाद जब जांचों और उससे मिले भुगतान का मिलान किया गया तो चौंकाने वाला घोटाला निकलकर सामने आ गया। सूत्रों की माने तो अभी ये सिर्फ जांचों में की लगभग पांच लाख का घोटाला सामने निकलकर सामने आया है। अगर यहां दूसरे मदों की भी जांच की जाए तो ये घोटाला कई लाखों का हो सकता है और कई और कर्मचारियों की गर्देनों में फंदा कस सकता है।
शिकायतकर्ता सर्वेश धांधू का कहना है कि जिला अस्पताल मे सभी सरकारी जांचों की सरकारी फीस फीस ली जाती है। खून की जांच, मरीज का खून बदलने के लिए चार सौ रुपये, प्लास्टर के 250 रुपये सरकारी फीस जमा की जाती है लेकिन पिछले कई साल से मरीजों से ली गई फीस सरकार के खाते मे नही पहुची है। इस सरकारी फीस मे कर्मचारियों ने घोटालेबाजी करके सरकारी खाते में न जमा करके सीधे अपनी जेबें गर्म कर ली है। हांलाकि इसकी शिकायत करने के बाद सीएमएस केशव स्वामी ने जांच भी करवाई थी। लेकिन जांच कितनी आगे तक कई कौन वो घोटालेबाज है जिन्होंने ने मरीजों के पैसे अपनी जेबों मे रखे उनका कुछ पता नहीं चला। सीएमएस ने जांच को ठंडे बस्ते में डालकर उन घोटालेबाजों को बचा लिया। उनका कहना है कि अगर इस मामले की बङे स्तर से जांच कराई जाए तो इस और भी बङे अधिकारी और सीएमएस का गला भी फंस सकता है।
हालांकि जिला अस्पताल के सीएमएम इसे घोटाला ना मानकर गलती मान रहे हैं और घोटाले के पैसों की रिकवरी किए जाने की भी बात कर रहे हैं। सीएमएस केशव स्वामी ने बताया कि इसे घोटाला नहीं कहेंगे। घोटाले करने वालों की मानसिकता से पता चल जाता है कि उसने घोटाला किया है या नहीं। हमे शिकायत मिली थी कि सरकारी जांचों के पैसे संबंधित कर्मचारी खातों में किसी कारणवश जमा नहीं हो पाए हैं। हमने उनसे बात की तो उनकी मानसिकता घोटाले वाली नहीं थी। हमने कर्मचारियों से चार लाख रुपए जमा करा लिए हैं। सही मायनों में सीएमएस पूरे मामले को रफा-दफा करने में जुटे हुए हैं क्योंकि जांच और कार्रवाई के घेरे में खुद सीएमएस भी फंस सकते हैं।
एडीएम जितेंद्र शर्मा का कहना है कि मामला मेरे संज्ञान में आया है। इस संबंध में हमने सीएमएस और सीएमओ से बात की है। जो जांच सीएमएस ने कराई है वो भी हमने मांगी है और साथ ही ये देखना है कि सरकारी जांचों का पैसा कितने वक्त से जमा नहीं हुआ है। उनका कहना है कि घोटाले में दोषी किसी भी कर्मचारी को बख्शा नहीं जाएगा।
जांचों के लिए जमा होने वाली फीस के मद से अस्पताल में भर्ती मरीजों के लिए खर्च किए जाते हैं। लेकिन यहां तैनात बाबू और संविदा कर्मचारियों ने गरीब मरीजों के पैसों में ही घोटाला कर दिया। खास बात ये है कि इस घोटाले में शामिल कर्मचारी और बाबू अभी भी कई घोटालों को अंजाम दे रहे हैं। ऐसे में जरूरत है इस मामले में दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की वरना ऐसे कर्मचारी सरकार की स्वास्थ्य व्यवस्था को पटरी से उतार देंगे।