इलाहाबाद : भाजपा-अपना दल के बीच दरार के क्या हैं नफे-नुकसान?
भाजपा और अपना दल में पड़ी दरार के बाद जिन सीटों पर दोनों के कैंडिडेट आमने-सामने हैं, वहां किसको होगा फायदा, किसको नुकसान?
इलाहाबाद। भाजपा-अद गठबंधन की रार से लेकर सपा-कांग्रेस गठबंधन में मची तकरार तक, बसपा से शुरू होकर निर्दलियों की हुंकार तक, सबका समीकरण बदलेगा। जैसे तूफान आने के पहले खामोशी छा जाती है वैसे ही आज इलाहाबाद की राजनैतिक आबोहवा में खामोशी है। जो संकेत है कि आज शाम ढलते ढलते सियासी भूचाल आना तय है। क्या कोई बागी नामांकन वापस लेगा ? क्या गठबंधन में आई दरार पट जायेगी? क्या वोट कटवा निर्दलीय किसी को समर्थन देंगे ? क्या गठबंधन के बावजूद मैदान में उतरे दो दो प्रत्याशियों में कोई बैठेगा ? नामांकन प्रक्रिया पूर्ण करने वाला हर प्रत्याशी अब चुनाव लड़ना चाहता है। ऐसे में दबाव डालकर बैठाया जाने वाला प्रत्याशी समर्थन करे, यह संभव नजर नहीं आ रहा है ।
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सोरांव है सबसे खास
अपना दल व भाजपा के लिये रार की पहली और आखिरी वजह बनी इलाहाबाद की सोरांव विधानसभा सबसे खास है। यहां से अपना दल से जमुना सरोज व भाजपा से सुरेंद्र मैदान में है। जबकि कांग्रेस से जवाहर लाल दिवाकर व सपा से विधायक सत्यवीर मुन्ना भी नामांकन कर गठबंधन के लिये चुनौती बन चुके हैं । इन सब के बीच कृष्णा गुट से अजय पासी भी चुनाव लड़ रहे हैं ।
इलाहाबाद-प्रतापगढ़ और कौशांबी
इलाहाबाद मण्डल के तीन जिले में गठबंधन की रार पर आज ही फैसला होगा। इलाहाबाद की कोरांव व शहर की सीट, कौशांबी की चायल व प्रतापगढ पर बागी हुये दावेदार की सीट पर सबकी निगाह गड़ी हुई है। देखना यह हैं कि समीकरण क्या बनता है।
बंट जायेगा वोटर
अगर सियासी समीकरण बदलेंगे तो निश्चित रूप से ही मतदाता बंट जायेंगे। जो भी धड़ा गठबंधन से अलग होकर मजबूत नजर आयेगा अधिकांश वोट उसे ही मिलेंगे। हालांकि पार्टी के सापेक्ष समर्थकों का फैसला अहम रोल अदा करेगा । क्योंकि दावेदार की दावेदारी पर सबसे अधिक कष्ट समर्थक को है। समर्थकों का वोट बैंक उसके साथ ही जाना तय है।
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