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बहराइच: यूपी के चुनावी दंगल से इस बार यह राजघराना क्यों हुआ गायब?

विधानसभा चुनाव में यह पहला मौका है जब जिले के राजघरानों का कोई भी प्रत्याशी मैदान मे नहीं है। लेकिन इस बार राजघरानों के राजकुमार और राजकुमारियों ने राजनीति में दिलचस्पी नहीं ली।

By Arvind Kumar
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बहराइच। विधानसभा चुनाव में यह पहला मौका है जब जिले के राजघरानों का कोई भी प्रत्याशी मैदान मे नहीं है। पयागपुर व बेड़नापुर राजघराने की राजनीति में दखलंदाजी होती थी। लेकिन इस बार राजघरानों के राजकुमार और राजकुमारियों ने राजनीति में दिलचस्पी नहीं ली। इसके चलते राजघरानों में राजनीतिक हलचल सूनी है। राजघरानों के दरबारों में न तो चौपालें सज रही हैं न ही बिसाते बिछ रही हैं। ऐसे में 17वीं विधानसभा चुनाव में राजघरानों की भूमिका जिले में शून्य ही रहेगी। ये भी पढ़ें: यूपी चुनाव: जीत के लिए बीजेपी का बड़ा दांव, RSS बैकग्राउंड वाले 5 चुनावी मैनेजरों को मैदान में उतारा

बहराइच: यूपी के चुनावी दंगल से इस बार यह राजघराना क्यों हुआ गायब?

बता दें कि देश की आजादी के बाद राजे-रजवाड़ों का साम्राज्य लोकतंत्र में विलीन हो गया था। लेकिन राजघराने अब भी बरकरार हैं। अपने अस्तित्व को प्रभावी रखने के लिए राजघरानों ने लोकतांत्रिक तरीके से राजनीति में दखलंदाजी की। इनमें जिले के पयागपुर, बेड़नापुर, नानपारा और चरदा रियासतों की सक्रियता होती थी। इन राजघरानों के लोग या तो चुनाव लड़ते थे या चुनाव में अहम भूमिका निभाते थे। ध्यान देने योग्य बात यह है कि पयागपुर राजघराना राजनीति में अधिक सक्रिय रहा है। राजा रुदवेंद्र विक्रम सिंह वर्ष 1991 में राम मंदिर लहर के दौरान कैसरगंज विधानसभा सीट से जनता पार्टी के रामतेज यादव को हराकर सदन में पहुंचे थे। उन्हें 42.06 फीसदी वोट मिले थे। इसके पूर्व पयागपुर के राजा केदार राज जंगबहादुर फखरपुर सीट से विधायक चुने गए थे।

वर्ष 2012 के चुनाव के बाद पयागपुर राजघराने के राजकुमार सर्वेंद्र विक्रम सिंह राजनीति में सक्रिय हुए। वह सपा के सरकार में इको टूरिज्म के सलाहकार सदस्य मनोनीत हुए। टिकट के लिए लगे हुए थे, लेकिन टिकट मिल नहीं सका। अब बात करें बेड़नापुर राजघराने की तो राजकुमारी देविना सिंह का नाम राजनीति में काफी चर्चित रहा। वर्ष 2012 के चुनाव के पहले वे राजनीति में सक्रिय रहीं। वर्ष 2007 में विधानसभा चुनाव भी लड़ीं। लेकिन राजनीतिक गलियारे में वह अपनी पैठ नहीं बना सकीं। हालांकि राजकुमारी देविना की दादी बसंत कुंवरी स्वतंत्र पार्टी से वर्ष 1962 से 67 के मध्य कैसरगंज संसदीय क्षेत्र से सांसद रहीं। वर्ष 1971 में बसंत कुंवरी कांग्रेस के टिकट से फिर चुनाव मैदान में उतरीं। लेकिन वह जनसंघ की शकुंतला नैयर से पराजित हुईं।

पहले ही राजनीति में निष्क्रिय हुए दो राजघराने
नानपारा और चरदा रियासतों से संबंध रखने वाले राजघरानों के लोग आज भी हैं। लेकिन वह अपने निजी व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। राजनीति से सभी ने किनारा कर लिया।

पूर्व विधायक पुत्र भी हुए निष्क्रिय
पयागपुर राजघराने से ताल्लुक रखने वाले रुदेंद्र विक्रम सिंह कैसरगंज से विधायक चुने गए थे। इसके बाद रुदेंद्र के पुत्र कुंवर जयेंद्र विक्रम सिंह राजनीति में सक्रिय हुए। पिछले विधानसभा चुनाव में वह भाजपा से टिकट के दावेदार भी थे, लेकिन टिकट हासिल नहीं हो सका। ये भी पढ़ें: 'गठबंधन के लिए फोन पर रो पड़े थे मुलायम सिंह यादव'

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English summary
bahraich up assembly election rajghrana politics in uttar pradesh.
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