इलाहाबाद: मां के खिलाफ बेटा लड़ेगा चुनाव, हंडिया सीट पर इस बगावत से मची खलबली
डॉ. प्रभात त्रिपाठी ने आखिरी दिन नामांकन किया था और महज उसे औपचारिकता की दृष्टि से देखा जा रहा था कि मां प्रमिला का पर्चा खारिज हो तो वह राजनीतिक विरासत को बनाए रखें। लेकिन नामांकन वापस किया ही नहीं।
इलाहाबाद। यूपी विधानसभा चुनाव इस बार बगावत का चुनाव नजर आ रहा है। अब नई बगावत का मामला उस विधानसभा सीट से आया है जहां आचार संहिता लागू होने से लेकर प्रत्याशी घोषणा और नामांकन बाद तक जारी है। इलाहाबाद की हंडिया विधानसभा सीट जहां हर दिन सियासत की नई चालें चली जा रही हैं। कालेधन के दागी पूर्व मंत्री राकेशधर त्रिपाठी ने जहां खुद चुनाव न लड़कर पत्नी प्रमिला त्रिपाठी को मैदान में उतारा तो अब वहीं राकेशधर के बेटे ने नामांकन वापस नहीं लिया और मां के खिलाफ ही बगावत कर चुनाव मैदान में उतर आए हैं।
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दल-बदल और बगावत की इस खींचतान में कई दिग्गज नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर है। जिले की 12 विधानसभा सीटों की बात करें तो यह अभी साफ नहीं है कि किसकी शह और किसकी मात होगी। समीकरण कुछ ऐसे बन रहे हैं कि कई नेताओं को अपने ही शागिर्दों से दो-दो हाथ करने पड़ रहे हैं। अभी तक सत्ता का संघर्ष नेताओं और पार्टियों के बीच होता था। लेकिन सत्ता की चाह में पहली बार बेटा ही मां से बगावत कर बैठा है। राकेशधर के बेटे डॉ. प्रभात त्रिपाठी की बगावत के कई मायने हैं। जो हर किसी के जीत-हार के आंकड़े को बदलेंगे।
नामांकन महज औपचारिकता थी
डॉ. प्रभात त्रिपाठी ने आखिरी दिन नामांकन किया था और महज उसे औपचारिकता की दृष्टि से देखा जा रहा था कि मां प्रमिला का पर्चा खारिज हो तो वह राजनीतिक विरासत और समीकरण को बनाए रखें। लेकिन नामांकन वापसी के दिन भी जब प्रभात ने पर्चा वापस नहीं लिया तो एकाएक हलचल मच गई । आगे क्या होगा यह तो वक्त बताएगा? लेकिन चुनाव चिन्ह मिलने के बाद प्रभात अपने दल-बल के साथ प्रचार प्रसार में जुट गए हैं।
इस
चाल
में
है
सियासत!
OneIndia
ने
जब
हंडिया
की
सियासत
पर
पड़ताल
शुरू
किया
तो
प्रभात
का
नामांकन
महज
बगावत
नहीं
नजर
आया।
यहां
तो
माजरा
कुछ
और
ही
था।
दरअसल
सपा
के
विधायक
महेश
नारायण
के
बेटे
का
टिकट
काट
कर
निधि
यादव
को
मिला।
इससे
कुछ
नाराज
सपाई
राकेश
के
सपोर्ट
में
आए।
लेकिन
राकेश
को
टिकट
मिलने
से
नाराज
लोगों
को
सपा
में
जाने
से
रोकने
के
लिए
भी
एक
सियासी
चाल
की
जरूरत
थी।
राजनीति
की
दुनिया
में
कद्दावर
नेता
राकेश
ने
इन
वोटों
को
सपा-बसपा
से
दूर
करने
के
लिए
जो
विकल्प
खोजा।
निश्चित
तौर
पर
यह
हैरान
करने
वाला
था।
क्योंकि
मां
के
खिलाफ
अचानक
से
बेटे
की
बगावत
समझ
से
परे
थी।
अब
नाराज
वोटों
को
प्रभात
बटोरेंगे
और
अपने
वोटों
को
राकेशधर।
सबसे तगड़ा गणित
हंडिया में अपने नाम का डंका बजाने वाले राकेशधर को यूं ही चुनाव में नहीं उतारा गया। उनकी लोकप्रियता और सियासी समीकरण के साथ जनाधार ने भाजपा को मजबूर किया। लेकिन दागी को टिकट देने में घेराबंदी के डर से सीट अपना दल को दी गई और बड़े राजनैतिक दबाव में राकेशधर को टिकट मिला। लेकिन राकेश ने पत्नी को मैदान में उतारा और अब हर गुणा गणित उनके पक्ष में नजर आ रहा है।
एक कहानी यह भी
राकेशधर के बड़े बेटे प्रभात काफी समय से राजनीति में आना चाह रहे थे। यहां तक की 2013 में तत्कालीन विधायक महेश की मृत्यु के बाद प्रत्याशी बनने की बात उठाई गई थी। लेकिन राकेशधर नहीं माने। कहा जा रहा है कि नाराज प्रभात ने खुद निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया है। अगर इस कहानी के आखिरी पार्ट पर भरोसा किया जाए तो राकेशधर के लिए सबकुछ ठीक नहीं होगा।
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