बैंगलोर। रियो ओलंपिक में जब भी कोई एथलीट गोल्ड मेडल जीतता है तो वो एक बार मेडल को दांत से दबाता जरूर है, जिसे देखकर आपको हैरानी भी हुई होगी और एक सवाल भी जरूर दिमाग में कौंधा होगा कि आखिर मेडल को खिलाड़ी मुंह से दबाते क्यों हैं?
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तो चलिए आज हम इस राज से पर्दा उठाते हैं। दरअसल ये ओलंपिक की सदियों से चली आ रही विचित्र परंपरा है जिसके तहत एथलीटों को अपने तमगे को मुंह से चखना पड़ता है। इस संबंध में काफी पुरानी कहानियां भी फेमस हैं।
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कहा जाता है कि 19वी शताब्दी में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, ब्राजील, कनाडा और साउथ अफ्रीका के लोग झुंड बनाकर सोना खोजने के लिए निकलते थे। खोज के दौरान मिले चमकीले पत्थर या धातुओं को वो दांत से दबाते थे। अगर धातु या पत्थर पर दांत के निशान बन जाते थे तो उसे सोना मान लिया जाता था क्योंकि सोना नरम होता है।
धीरे-धीरे प्रथा ट्रेंड बन गई
उस समय सोने की पहचान ऐसे ही की जाती थी, धीरे-धीरे ये प्रथा ट्रेंड बन गई और ओलंपिक की पहचान भी। इसलिए जब भी कोई एथलीट ओलंपिक में मेडल जीतता है तो उसे एक बार दांत से जरूर दबाता है। ये ट्रेंड फोटोग्राफर्स के लिए भी एक फोटो अर्पोच्यूनिटी है, जिसे वो मिस नहीं करना चाहते हैं। आपको बता दें कि रियो ओलंपिक में दिए जाने वाले गोल्ड मेडल में सोने की मात्रा 1.34 प्रतिशत और बाकी चांदी है।