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इतिहास 'साक्षी', 'सिंधु' इबादत और 'दीपा-ललिता' गुरूर है..

By अंकुर शर्मा

बेंगलुरु। आज एक बार फिर से भारत की बेटियों ने साबित कर दिया है कि वो किसी भी मामले में, किसी से कम नहीं है। अगर उन्हें मौका मिले तो वो एक नया इतिहास फलक पर लिखने का दम रखती हैं। रियो ओलंपिक में, भारत से हजारों किमी दूर जब इन बेटियों ने जीत के परचम के साथ तिरंगे को फहराया तो शायद ही कोई भारतीय ऐसा होगा जिसकी आंखें खुशी से ना छलकी होंगी।

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जीत का पहला स्वाद भले ही रेसलर साक्षी मलिक ने चखाया लेकिन इस जीत की उम्मीद की लौ जिमनास्ट दीपा करमाकर और धाविका ललिता बाबर ने भारतीयों के दिलों में जगायी थी। इन दोनों ने भले ही मेडल नहीं हासिल किये लेकिन दोनों ने अपने दम पर सफलता और कोशिशों की एक नई परिभाषा गढ़ी है। भारत की शटलर क्वीन पीवी सिंधु के बारे में जितना कहा जाये या लिखा जाये वो तो कम ही है।

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सिंधु ने जीत की एक नई इबादत अंकित करके ये साबित किया कि भारतीय बेटियों को मौका मिले तो वो हर चीज का रूख बदल सकती हैं। साक्षी, सिंधु, बाबर, और करमाकर देश की रीयल स्टार्स हैं, जिन पर पूरे देश को आज अभिमान है।

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इन सबकी सफलता भले ही आज लोगों को दिख रही है लेकिन इस सफलता के पीछे ,वो तपस्या है, जो इन्होंने और इनके मां-बाप ने की है। वरना रोहतक हरियाणा की 23 साल की बेटी साक्षी कभी भी रेसलर नहीं बनती। वो हरियाणा, जहां खाप पंचायत जैसी व्यवस्था है, जो कि लड़कियों के लिए कभी जींस पहनने और कभी मोबाइल ना रखने जैसे तुगलकी फरमान जारी करती है। जहां केवल 'दंगल' मर्दों की बपौती समझी जाती है लेकिन साक्षी ने हर दीवार को तोड़ा, विरोध सहा, समाज की सोच बदली और आज तिरंगे को वो सम्मान दिलाया जिसको शब्दों में बयां ही नहीं जा सकता है।

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यही बात ललिता बाबर और जिमनास्ट दीपा करमाकर पर भी सटीक बैठती है। दोनों ही बच्चियों ने ऐसे क्षेत्र में करियर बनाया जिसमें काफी मेहनत और प्रशिक्षण की जरूरत होती है लेकिन आर्थिक और उचित मार्गदर्शन के अभाव में भी इन बेटियों ने वो कर दिखाया जिसे करना आम इंसान के बस की बात ही नहीं। दोनों की सफलता का राज दोनों का आत्मविश्वास और आगे बढ़ने की जिद है।

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आज देश ऊपर वाले से दुआएं मांग रहा है कि देश की गुड़िया पीवी सिंधु गोल्ड जीते लेकिन किसी को ये नहीं पता कि 12 साल की उम्र से रैकेट पकड़े सिंधु ने आज तक केवल सोते-जागते जीत का ही सपना देखा,वो भी खुली आंखों से, जिसके लिए उन्होंने घंटों नेट पर पसीना बहाया है। वो जीते या हारे..बाद की बात है. लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि वो आज देश के लिए खरा सोना बन चुकी है।

देश की इन होनहार बेटियों को दिल से सलाम..वाकई तुम देश की आन-बान-शान हो..।

Story first published: Tuesday, November 14, 2017, 12:15 [IST]
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