नई दिल्ली। पीवी सिंधु ने ओलंपिक में सिल्वर मेडल अपने नाम करके जिस तरह से देशभर में सुर्खियां बटोरी हैं, वह वाकई लाजवाब है। लेकिन उनके इस मेडल के हासिल करने में कहीं न कहीं उनके कोच पुलेला गोपीचंद का अहम योगदान है।
पुलेला गोपीचंद ने जिस तरह से अपने खिलाड़ियों में लड़ने की क्षमता जगाई उसका साफ उदाहरण सिंधु के खेल में नजर आया। उन्होंने अपने एथलीट्स को वो सबकुछ देने की कोशिश की जिसे वह खुद नहीं पा सके।
पुलेला गोपीचंद ने अपने एथलीट्स में जीत की भूख जगाई। उन्हें बैडमिंटन कोर्ट में जरूरी समझ, तकनीक के साथ जरूरी जानकारी भी मुहैया कराई। इतना ही नहीं वह कोर्ट में खिलाड़ियों को जोश भरने की कोशिश भी करते हैं।
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गोपीचंद के अंदाज का पता उस वाक्ये से हो जाता है जब सिंधु सेमीफाइनल में नोजोमी ओकुहारा के साथ खेल रही थी। 0-3 से पिछड़ने के बाद गोपीचंद ने सिंधु से कहा कि परेशान नहीं हो। अपना खेल जारी रखते हुए बस कूदो और हिट और स्मैश करो। उनका ये कहना था कि जैसे सिंधु का अंदाज बदल गया। उन्होंने पूरे कोर्ट में उछल-कूद करना शुरू किया और उसका नतीजा भी सामने आ गया। उन्होंने लगातार 10 प्वाइंट्स हासिल किए और गोल्ड मेडल की लड़ाई के लिए फाइनल में जगह बनाई।
कोच पुलेला गोपीचंद के चेहरे साफ नजर आया कि वह सिंधु के खेल से संतुष्ट थे। उनकी रणनीति सफल रही। हालांकि आगे फाइनल में बड़ा पहाड़ सामने था, कैरोलिना मरीन से मुकाबला था।
पुलेला गोपीचंद ने ऑल इंग्लैंड चैंपियनशिप अपने नाम किया है। 15 साल पहले उन्होंने ऑल इंग्लैंड टाइटल हासिल किया और इसके बाद ओलंपिक में नुमाइंदगी उनके लिए बेहद कड़ा अनुभव रहा। उस समय वह अपने खेल में सबसे ऊंचे स्तर पर थे। लेकिन उन्हें 2000 के सिडनी ओलंपिक में जरूरी समर्थन नहीं मिला। राष्ट्रीय कोच से समर्थन नहीं मिलने के चलते तीसरे राउंड में गोपीचंद को इंडोनेशिया के एच. हेंद्रावन से हार का सामना करना पड़ा।
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गोपीचंद ने बताया कि ओलंपिक में जीत के लिए जरूरी समर्थन और जानकारी के लिए वह कोच की ओर देखते लेकिन कोई सहयोग नहीं मिला। जिसके चलते उन्हें मुश्किल हुई और कामयाबी नहीं मिल सकी।
उस समय टीम में उनके साथ रही अपर्णा पोपट ने बताया कि उन्होंने कोचिंग की जानकारी खुद से सीखा। एक एथलीट को होने वाली समस्याओं को झेलते हुए उन्होंने कोच बनना स्वीकार किया। अपर्णा पोपट ने बताया कि वह मानते हैं कि खिलाड़ियों का मुख्य काम खेलना है। उनका काम रणनीति बनाना नहीं है। उन्हें अच्छी ट्रेनिंग की जरूरत है, इसके लिए कोच को होमवर्क करना पड़ता है।
1990 और उससे पहले कोच की खिलाड़ियों से बातचीत नहीं होती थी। दूसरे या तीसरे खेल में उन्हें पांच मिनट बात करने के लिए मिलते थे। उन्होंने इसका विरोध किया। उनके मुताबिक एक खिलाड़ी को जरूरी जानकारी और उन्हें जरूरी निर्देश के लिए कोच से बातचीत जरूरी है। वहीं उनकी जीत का ब्लूप्रिंट तैयार करते हैं।
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गोपीचंद ने चीन के कोच वांग युआन से सवाल किया कि आखिर चीन और कोरिया के खिलाड़ी फिट कैसे रहते हैं? उन्होंने ये सवाल जर्मनी लीग में हिस्सा लेने के दौरान ये सवाल उठाए। पुलेला गोपीचंद ने अपने एथलीट्स को वही दिया जो उन्होंने अपने अनुभवों से सीखा। इसी का फायदा है कि पिछले ओलंपिक में साइना नेहवाल और पीवी सिंधु दोनों ने ओलंपिक मेडल भारत की झोली में लेकर आई। साइना ने 2012 ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीता था और अब पीवी सिंधु ने बैडमिंटन में सिल्वर मेडल अपने नाम किया।
साइना और सिंधु की जीत में पुलेला गोपीचंद की ट्रेनिंग का अहम रोल है। बैडमिंटन कोर्ट के बाहर और अंदर हर जगह वह मेहनत से अपने खिलाड़ियों में जीत का जज्बा पैदा करते हैं। खिलाड़ी भी उन्हें निराश नहीं करते।