नई दिल्ली। पाकिस्तान में बतौर नेशनल हीरो ख़्याति पाने वाला कोई शख़्स कभी रिक्शा चलाने को मजबूर हो जाएगा, ऐसा शायद ही हम कल्पना करेंगे। लेकिन यह कल्पना दरअसल सच है। यह कहानी है दो बार ओलंपिक खेलों में अपने मुल्का की ओर से प्रतिभाग करने वाले मुहम्मद आशिक़ की।
1950 के दौर में मुक्केबाज़ी से कॅरियर की शुरुआत करने वाले मोहम्मद आशिक़ को इसलिए सायकलिंग की तरफ झुकना पड़ा क्योंकि उनकी पत्नी का मानना था कि मुक्केबाज़ी में चोट बहुत लगती है। रियो ओलम्पिक्स 2016 : इस बार भारत के दोगुने पदक जीतने की उम्मीद में अहम हो सकते हैं ये सरकारी कदम
कभी ओलंपिक में दौड़ाई थी सायकिल, आज ज़िंदगी ट्रैक पर नहीं
कई दशक पहले सायकिल चलाकर चमचमाती ट्रॉफियां जीतने वाले मुहम्मद आशिक कभी शोहरत की बुलंदियों पर बैठे थे लेकिन आज वक्त और किस्मत बदल चुकी है। दो जून की रोटी के लिए मुहम्मद को लाहौर की गलियों में रिक्शा खींचना पड़ रहा है! 81 वर्षीय मुहम्मद आशिक़ ने 1960 और 1964 ओलंपिक खेलों में पाकिस्तान का प्रतिनिधित्व किया था। हालांकि, वे इसमें टॉप 3 में जगह नहीं बना पाए थे लेकिन उनके शानदार कॅरियर का दु:खद अंत होना उन्हें आज भी सालता रहता है।
कुछ ऐसे बयां करते हैं अपना दर्द
अपने दर्द को बयां करते हुए मोहम्मद आशिक कहते हैं , 'मैंने कई पूर्व प्रधानमंत्रियों, राष्ट्रपतियों और अन्य हस्तियों के साथ हाथ मिलाया है लेकिन मुझे यकीन नहीं हो रहा है कि वे मुझे क्यों और कैसे भूल गए! लोग की इस नज़रअंदाजगी से तो यही लगता है कि शायद लोग मुझे अब मरा हुआ मान चुके हैं।'
इतना कुछ किया हालातों से लड़ने को...
गुज़ारा करने के लिए उन्होंने पीआर की भी नौकरी की लेकिन 1977 में सेहत सही नहीं रहने के कारण नौकरी छोड़नी पड़ी। इसके बाद टैक्सी और वैन भी चलाई लेकिन उसमें भी सफ़ल नहीं हो सके। 45 गज़ के मकान में गुज़ारा करने वाले आशिक रोज़ाना 500 रुपए बमुश्किल कमा पाते हैं। रियो ओलम्पिक्स 2016 : जानिए 8 ऐसी रोचक बातें जिनसे आप अबतक हैं अनजान
पत्नी रही नहीं, बच्चे रहते हैं अलग
उनकी पत्नी अब इस दुनिया में नहीं हैं और चारों बच्चे अलग रहते हैं। शुरुआत में वह अपने पदकों को रिक्शे पर टांगते थे लेकिन अब वह ऐसा नहीं करते हैं। पाकिस्तान सरकार की नज़रअंदाज़गी को कोसते हुए मुहम्मद कहते हैं कि अब जीने की तमन्ना नहीं रही, खुदा से दुआ है कि मुझे अपने पास बुला ले।