दीपा करमाकर
त्रिपुरा की रहने वाली दीपा करमाकर बेहद साधारण परिवार से हैं। उनके पिता स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया कोच थे और वह दीपा को जिम्नास्टिक्स में नाम कमाते हुए देखना चाहते थे। लेकिन दीपा के लिए ये आसान नहीं था, क्योंकि उनके तलवे बिल्कुल फ्लैट थे, जो कि एक जिमनास्ट के लिए अच्छा नहीं माना जाता है।
6 साल की उम्र से शुरू की प्रैक्टिस
दीपा ने 6 साल की उम्र से ही जिम्नास्टिक्स की प्रैक्टिस शुरू कर दी थी। दीपा के कोच बिश्वेश्वर नंदी ने उन्हें प्रशिक्षण दिया। अपने फ्लैट तलवे की वजह से दीपा को काफी मेहनत करनी पड़ी। इससे छलांग के बाद ज़मीन पर लैंड करते वक़्त संतुलन बनाने में बड़ी बाधा आती है। लेकिन कड़े अभ्यास और अपने मनोबल के कारण दीपा ने इसे बाधा बनने नहीं दिया।
कॉस्ट्यूम के भी पैसे नहीं
आपको जानकर हैरानी होगी कि दीपा ने जब पहली बार प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था तो उसके पास जूते भी नहीं थी। प्रतियोगिता के लिए कॉस्ट्यूम भी उन्होंने किसी से उधार मांगा था जो उन पर पूरी तरह से फ़िट भी नहीं हो रहा था।
2007 में जीता पहला मेडल
दीपा को अप ने करियर की पहली सफ लता साल 2007 में मिली। उन्होंने साल 2007 में जूनियर नेशनल स्तर अपना पहला पदक जीता। उसके बाद उन्होंने नेशनल और इंटरनेशनल सभी स्तरों पर सफलताएं हासिल की। अब तक दीपा 77 मेडल जीत चुकीं हैं।
आशीष से मिली प्रेरणा
दीपा के सबसे बड़े प्रेरणास्रोत जिम्नास्ट आशीष कुमार बने। साल 2010 में जब आशीष ने दिल्ली में आयोजित कॉमनवेल्थ खेलों में पहला मेडल जीता, तो दीपा ने भी ठान लिया कि वह भी अपने देश के पदक हासिल करेगी।
कॉमनवेल्थ गेम्स से मिली पहचान
साल 2014 में दीपा ने कॉमनवेल्थ गेम्स में कास्यं पदक जीता था। ऐसा करने वाली वो पहली महिला जिमनास्ट बन गई। इसी के बाद उन्हें पहचान मिली थी। वो चर्चा के केंद्र में आ गईं। इतना ही नहीं वह सबसे मुश्किल माने जाने वाले ईवेंट प्रोडुनोवा वॉल्ट को सफलतापूर्वक पूरा करने वाली पांच महिलाओं में से एक रहीं।
अर्जुन अवॉर्ड
दीपा को जिमनास्टिक में उन के शानदार प्रदर्शन के लिए प्रतिष्ठित अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। साल 2015 में नेशनल स्पोर्ट्स डे के मौके पर राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने उन्हें इस सम्मान से सम्मानित किया था।
52 साल बाद अब गोल्ड की उम्मीद
दीपा के फाइनल में पहुंचने के बाद अब लोगों को उम्मीद है कि वो पदक हासिल करने में कामियाब होगी।