रियो डी जेनेरियो, अगस्त 13 : अमेरिका के तैराक एंथनी एरविन की कहानी किसी के लिए भी प्रेरणा का स्त्रोत हो सकती हैं। 22 साल की उम्र में खेल से संन्यास लेने वाले इस तैराक के एक वक्त आत्महत्या करने की कोशिश की थी। अब इसी 35 वर्षीय तैराक ने रियो ओलंपिक 2016 में वापसी करते हुए अबतक 2 स्वर्ण पदक जीत लिए हैं! निराशा के दौर से लौटकर फिर से जिंदगी को गले लगाने का जज़्बा इस खिलाड़ी से सीखा जा सता है। जोसेफ स्कूलिंग : तैराकी के शहंशाह माइकल फेलप्स को हराने वाले इस तैराक से जुड़ी 10 रोचक बातें
एरविन ने शुक्रवार दिन 12 अगस्त को 4x100 फ्रीस्टाइल में स्वर्ण पदक में स्वर्ण जीतने के साथ ही 50 मीटर फ्रीस्टाइल में भी स्वर्ण पदक जीता है। 21.40 सेकंड के वक्त के साथ वह इस प्रतियोगिता में टॉप पर रहे।
2000 सिडनी ओलंपिक के दौरान एरविन 19 साल के थे और उस वक्त उन्होंने 50 मीटर फ्री स्टाइल तैराकी प्रतियोगिता में पहला ओलंपिक पदक जीता था। उस वक्स वह एक अन्य तैराक गैरी हाल जूनियर के साथ संयुक्त रूप से गोल्ड मेडल विनर रहे थे।
इसके 2 साल बाद इस तैराकी चैंपियन ने तैराकी की दुनिया में उस वक्त तहलका मचा दिया जब इसने महज 22 साल की ही उम्र में संन्यास लेने की घोषणा कर दी। मीडिया की कई रिपोर्ट बताती हैं कि एरविन 50 मीटर फ्रीस्टाइल में 19 साल में सबसे युवा और 35 की उम्र में सबसे उम्रदराज़ ओलंपिक चैंपियन हैं। Rio Olympics : पदक से एक कदम दूर इस भारतीय मुक्केबाज ने कहा, भारत लौटूंगा तो स्वर्ण पदक के साथ
एक वेबसाइट के मुताबिक, एरविन एक वक्त पर तनाव के कुछ इस कदर घिर चुके थे कि उन्होंने एलएसडी और कोकीन सरीखे ड्रग्स लेने शुरू कर दिए थे। ट्रैक्वलाइजर्स की मदद से वह खुद को लगभग मार ही चुके थे। संन्यास लेने के बाद एरविन कभी भी तैरते नहीं दिखाई दिए।
2004 में उन्हें एक टैटू पार्लर ने निष्कासित कर दिया था। इसके बाद एरविन ने वेपन्स आॅफ मास डिस्ट्रक्शन नामक बैंड के लिए गिटार बजाना भी शुरू किया और फिर वह एक संगीत की दुकान में साज़ बेचने लगे। नशे की लत के आदी हो चुके एरविन की जिंदगी तकरीबन तबाही की कगार पर थी।
इसके बाद 2005 में एरविन ने अपने सिडनी ओलंपिक पदकों की नीलामी की ताकि उससे जुटाई गई धनराशि को वह 2004 में आई सुनामी के पीड़ितों की मदद के लिए इस्तेमाल कर सकें। ई बे नामक ई-कॉमर्स साइट पर उनके मेडल 17 हजार डॉलर में बिके और इस धनराशि को यूनिसेफ सुनामी रिलीफ फंड में जमा करा दिया।
ड्रग्स, अल्कोहल, तनाव आदि से लड़ते-लड़ते एरविन की पहचान बतौर तैराक लगभग खत्म हो चुकी थी। स्कूल के दिनों में उन्हें टॉरटे नामक सिंड्रोम ने भी घेर रखा था। रियो ओलंपिक राउंडअप : जानिए शुक्रवार को कैसा रहा भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन
डिक्शनरी डॉट कॉम वेबसाइट के अनुसार टॉरटे एक ऐसा सिंड्रोम है जो कि न्यूरोलॉजिकल डिसआॅर्डर के लक्षण होने की ओर इशारा करता है। इसमें आवाज जाने का खतरा बढ़ने के साथ ही गले में जर्किंग की समस्या आने लगती है। साथ ही शब्द बोलने में भी इंसान को तकलीफ होने लगती है। हॉकी : रियो ओलंपिक के पूल बी मुकाबले में भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने कनाडा से खेला ड्रॉ
याहू डॉट कॉम वेबसाइट की मानें तो एरविन एक बार मोटरसाइकिल चलाने के लिए निकले और उन्होंने 177 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड से इसे दौड़ाया और एक सड़क हादसे का शिकार हो गए। इसमें उनकी जान बाल-बाल बची थी।
अपना पहला ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतने के ठीक 16 साल बाद एरविन फिर अपनी तैराकी की दुनिया में लौटे हैं और 2 स्वर्ण पदक जीतकर साबित कर दिया है कि अभी उनमें कहीं बाकी थोड़ी सी है जिंदगी। ये पदक और एरविन के जीवन की कहानी कई भावी एथलीट्स को प्रेरित करते रहेंगे।