रियो ओलंपिक का शुक्रवार रात को औपचारिक आगाज़ हो जाएगा। दुनियाभर के एथलीट इसमें प्रतिभाग करते हैं। आज हम आपको ओलंपिक इतिहास से जुड़ी एक ऐसी नई जानकारी देंगे जिसके बारे में आपको शायद ही पता होगा। जी हां, हम यहां आपको ओलंपिक के प्रतीक चिन्ह की अलग-अलग पांचो रिंग्स के बारे में बता रहे हैं। रियो ओलंपिक 2016 में जीत पर पंच लगाने को तैयार हैं भारत के ये तीन मुक्केबाज
ये हैं इसके जनक
ओलंपिक के प्रतीक चिन्हों में पांच तरह की रिंग्स का इस्तेमाल होता है। इनमें नीली, पीली, काली, हरी और लाल रिंग्स शामिल हैं। यही रिंग्स वैश्विक तौर पर ओलंपिक खेलों का प्रतीक हैं।
ये रिंग्स स्विटज़रलैंड में इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी के मुख्यालय के बाहर प्रदर्शित की गई हैं। इनकी संकल्पना बारोन पिएरे डी काउबर्टिन के की थी। आधुनिक ओलंपिक खेलों के सह-संस्थापक माने जाने वाले पिएरे ने इन रिंग्स की डिज़ायन 1912 में तैयार किया था।
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पिएरे के अनुसार, सफेद पृष्ठभूमि में रिंगों का रंग वास्तव में उस वक्त ओलंपिक में भाग लेने वाले देशों के झंडे के रंग को बेस बनाकर तैयार किया गया था। 1914 में विश्वयुद्ध के कारण ओलंपिक कांग्रेस का आयोजन रद्द कर दिया गया था लेकिन झंडे और प्रतीक चिन्ह को स्वीकार लिया गया था। इनका इस्तेमाल पहली बार 1920 बेल्जियम ओलंपिक के दौरान हुआ था, जो कि 1936 में बर्लिन ओलंपिक में व्यापक रूप से इस्तेमाल किया गया।
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कुछ वक्त के बाद इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी ने अपनी विचारधारा में बदलाव और इन चिन्हों को महाद्वीपों के प्रतीक के रूप में लिए जाने की घोषणा की। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि यह माना गया कि ये खेल महाद्वीपों का प्रतिनिधित्व करते हैं। रियो ओलम्पिक्स 2016 : इस बार भारत के दोगुने पदक जीतने की उम्मीद में अहम हो सकते हैं ये सरकारी कदम
हालांकि, महाद्वीपों का किसी रंग विशेष से संबंधा नहीं बताया जाता है लेकिन 1951 से पहले तक की ओलंपिक आॅफिशियल बुकलेट में जिक्र है कि नीला रंग यूरोप को, पीला एशिया को, काला अफ्रीका को, हरा आॅस्ट्रेलिया-ओसियाना को और लाल रंग अमरीका को रिप्रेजेंट करता है।