बिहार में चुनावी बुखार, किसे मिलेगा यादवों का वोट
नई दिल्ली(विवेक शुक्ला) बिहार में विधानसभा चुनाव का माहौल बनता जा रहा है। बिहार चुनाव के बुखार में गिरफ्त हो रहा है। बिहार में चुनावों के दौरान जाति फैक्टर का अपना रोल रहता है। बिहार में यादव प्रमुख जाति है। सवाल उठता है कि इस बार यादव वोट किसकी झोली में जाएंगे?
क्या यादव वोट लालू-शरद के कारण नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने में मदद करेंगे? क्या यादव वोट भाजपा के हक में जाएंगे क्योंकि वहां पर नंदकिशोर यादव के रूप में एक असरदार नेता है? क्या यादवों के वोट पप्पू यादव को मिलेंगे?
पप्पू यादव एक्टिव हुए
इन तमाम सवालों पर राजनीतिक गलियारों में बहस छिड़ी हुई है। यादव मतदाताओं को लुभाने के लिए पप्पू यादव ने बीते दिनों बिहार के कुछ दूसरे यादव नेताओं जैसे देवेन्द्र प्रसाद यादव और सुरेन्द्र यादव से भी बात की। इन नेताओं ने तय किया कि वे लालू और नीतीश के उम्मीदवारों को हराने के लिए कोई-कसर नहीं छोड़ेंगे। इन नेताओं ने मंडल विचार मंच भी बनाया है।
38 जिलों में असर
माना जाता है कि बिहार के 38 जिलों में यादव मतदाता खास अहमियत रखते हैं। पप्पू यादव इन सभी जिलों का दौरा कर रहे हैं। उक्त यादव नेताओं का कहना है कि लालू ने अपनी यादव बिरादरी के हितों की अनदेखी की। वे जब सत्ता में थे तब वे अपनी बिरादरी को भूल गए थे।
लालू का जलवा
हालांकि बिहार की सियासत को लंबे समय से फोलो कर रहे लेखक अरुण कुमार मानते हैं कि लालू को खारिज नहीं किया जा सकता। वे अब भी बिहार में यादवों के सबसे असरदार नेता हैं। पप्पू यादव उनके सामने अब भी कहीं नहीं टिकते।
हालांकि वे ये भी कहते हैं कि जब लालू सत्ता में थे तब उन्होंने यादवों का साथ नहीं दिया। इसके चलते ही बीते लोकसभा चुनावों में लालू की पत्नी राबड़ी देवी और पुत्री मीसा चुनाव हारीं। उन्हें यादवों ने भी वोट नहीं दिया। पर अब हालात बदल रहे हैं। यादवों का एक बड़ा वर्ग फिर से लालू की ओर देख रहा है।
बिहार के वरिष्ठ पत्रकार कृपा शंकर कहते हैं कि यादवों के वोट भाजपा के पक्ष में भी जाएंगे। वहां पर नंद किशोर यादव के रूप में एक साफ-सुथरी छवि वाला नेता है। यानी यादवों के वोट बंट सकते हैं।