'हमें क़ुरान की क़सम देकर ज़हर पिला दिया गया'
भागी हुई लड़कियां: कहानी पाकिस्तानी लड़की की जिसकी आंखों के सामने घरवालों ने प्रेमी को ज़हर पिला दिया.
{image882144_gettyimages-617672212.jpg hindi.oneindia.com}
'उसकी बची-खुची चीज़ों को जला डालोगे? भागी हुई लड़की की अनुपस्थिति को भी जला डालोगे?'
एक लड़की का अपनी मर्ज़ी से घर छोड़ना कई बातों को जन्म देता है. चरित्र पर सवाल उठाने से शुरू हुआ सिलसिला 'लड़की भाग गई' तक फैल जाता है.
बीबीसी हिंदी की सिरीज़ - भागी हुई लड़कियां में अब तक आप विभावरी, शिवानी , गीता , नाज़मीन , शबाना ,दीपिका को पढ़ चुके हैं. आज बारी है आठवीं किस्त की.
ये कहानी सिंध, पाकिस्तान के ख़ैरपुर में रहने वाली एक लड़की ताहिरा की है, जो जब 'भागी' तब उसका शिनाख़्त कार्ड (आईकार्ड) तक नहीं बना था. लेकिन ताहिरा के साथ 'भागा' कामरान रास्ते में ही कहीं छूट गया.
दिल भले ही मिले न मिले, लेकिन मर्जी से 'भागने वालों के रास्ते में टांग अड़ाने वाले लोगों की सोच दोनों मुल्कों में बिल्कुल मिलती है. आगे की कहानी ताहिरा की ज़ुबानी जिसे बताते हुए वो कभी हंसीं तो कभी फफक कर रोईं.
मेरा नाम ताहिरा नहीं है. कामरान और मेरे साथ हुए वाकये के बाद न जाने क्यों सब इस नाम से पुकारने लगे. मेरा असली नाम तो सुबस ताहिरा जाफ़री है. कामरान भी सुबस ही कहता था.
कामरान और मैं पड़ोसी थे, लेकिन मुलाक़ात हुई थी फ़ेसबुक पर. हम दोनों ने छह महीने तक फ़ेसबुक पर एक-दूसरे से बात की.
रास्ते में स्कूल आते-जाते मुलाक़ात हो जाती थी. पड़ोसियों और घरवालों को हम पर शक होने लगा. हम दोनों को शुरू से मालूम था कि घरवाले राज़ी नहीं होंगे. मेरे घरवाले अमीर थे, लेकिन कामरान का घर एक दुकान से सहारे चलता.
मैं घर से निकलना नहीं चाहती थी, लेकिन कामरान माना नहीं. बोला- घर से नहीं निकले तो मार दिए जाएंगे सुबस, मेरे घरवाले मुझे यहां रहने नहीं देंगे.
हिम्मत कर मैं घर से निकल गई. हम दोनों चुपचाप शाह दरगाह चले गए. छह दिन हम वहीं रहे. वहां खूब भीड़ थी. दरगाह में हम खूब खुश रहे. ज़ुम्मे के दिन लोग वहां आते और झूमकर नाचते.
कामरान से कहा करती थी कि जाओ तुम भी नाचो. वो कभी नहीं नाचा. हम ठेले पर चाय पीते और दरगाह में आए लोगों को बैठने से पहले ज़मीन पर छींटे मारते हुए देख हंसते रहते.
कामरान दरगाह पर रोज़ मुझे पांच रुपए की केलसी (कोल्ड ड्रिंक) पिलाता था. और पता है हम दोनों का शिनाख़्त कार्ड (पहचान पत्र) तक नहीं बना था. लेकिन कामरान ने एक वकील अंकल की मदद से मेरे साथ कोर्ट मैरिज कर ली. दरगाह में जब मैं सोती तो कामरान जगा रहता और जब वो सोता तो मैं जगी रहती. ख़ौफ इस कदर हम में समाया हुआ था.
पैसे ख़त्म हो रहे थे. दरगाह पर डर भी लग रहा था. कामरान ने घरवालों से कॉन्टेक्ट किया तो वो बोले, ''घर लौट आओ, सुबस के घरवाले हमारे घर तोड़ने और बेटी-बहू उठाने की धमकी दे रहे हैं.''
मैंने कामरान को समझाया कि मान जाओ, मेरे घरवाले सीधे नहीं हैं. मेरे घरवालों ने क़ुरान की कसम खाकर कहा कि कुछ नहीं कहेंगे. हम इस पर यक़ीन करते हुए डरकर घर लौट गए.
हम मेरे घर गए. वहां अब्बा, चाचा, भाई, मम्मा और कामरान के सारे घरवाले थे. मेरे घरवाले बहुत पावरफुल थे. कामरान की फैमिली डर की वजह से कुछ नहीं बोल रही थी.
घर पहुंचने के आधे घंटे के भीतर मेरे चाचा लोग भीतर से ज़हर की बोतल ले आए. बोतल से पर्ची तक नहीं हटी थी. चाचा ने जबरदस्ती हम दोनों के मुंह में ज़हर की बोतल घुसा दी.
बाबा कुछ नहीं बोले
मुझे हल्का-हल्का याद है. कामरान ज़हर पिलाए जाने के कुछ देर बाद गिर पड़ा था. मेरी आंखें भी बंद हो रही थीं. अल्लाह का शुक्र है कि पता नहीं कैसे, तभी पुलिस का छापा पड़ गया. हम दोनों को उठाया गया.
चार दिन बाद मुझे अस्पताल में होश आया तो कामरान नहीं दिखा. मेरी निगाहें कामरान को खोजने लगीं. सबने कहा- वो ठीक है.
इस बीच कामरान मुझसे मिलने नहीं आ सका. मन चिढ़चिढ़ा रहता था. पता नहीं कौन वहां मेरे लिए केलसी ले आता था? मुझे लगता कि कामरान रख गया होगा.
कामरान मर चुका था
आज तक कामरान की क़ब्र पर नहीं जा पाई हूं. अब कामरान के यहां रहती हूं. मैंने सोचा कि अब कुछ बनकर दिखाना है ताकि जैसा मेरे साथ हुआ, वैसा किसी के साथ न हो.
लेकिन कहां कुछ बदला. अब भी अख़बारों में मेरी कहानी जैसी ख़बरें भरी रहती हैं.
कई बार लगता है कि मेरी ही ग़लती थी. कामरान की बात नहीं माननी चाहिए थी. मैं उस रोज़ घर से नहीं निकलती तो सब ठीक रहता. कामरान ज़िंदा रहता. मेरे बाबा को जेल न हुई होती. मेरे बाबा, जिन्होंने कामरान को ज़हर पिलाया भी नहीं था. वो तो बस चुपचाप रहकर देखते रहे.
बाबा की याद आती है. मम्मा और भाइयों से बात होती है. फर्स्ट ईयर का फ़ॉर्म भरा है. 28 अप्रैल को पेपर होगा. आगे जो होगा, वो क़िस्मत और अल्लाह की मर्जी.
कामरान की बहुत याद आती है. पता नहीं कामरान की क़ब्र पर मैं कब जा सकूंगी?-_94