जानिए कैसे काम करते हैं जाधव को सजा-ए-मौत देने वाले पाकिस्तान के मिलिट्री कोर्ट
वर्ष 2014 में पाकिस्तान में शुरू हुए थे मिलिट्री कोर्ट जिनका मकसद आतंकवाद से जुड़े केसेज की जांच करना था लेकिन आज तक इनमें होने वाले ट्रायल के बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं है।
इस्लामाबाद। दिसंबर 2014 में जब पाकिस्तान के पेशावर में आतंकी हमला हुआ तो यहां पर मिलिट्री कोर्ट की शुरुआत हुई। आतंकवाद से जुड़े मामलों की जांच के लिए बनाए गए ये कोर्ट आज सिर्फ एक मजाक से ज्यादा कुछ नहीं हैं। आतंकवाद के मामलों में दोषी लोगों के ट्रायल के लिए इन कोर्ट को और ताकत देने के लिए एक इनमें एक संवैधानिक बदलाव भी किया था।
कोर्ट की ओर से ट्रायल तक की जानकारी नहीं
वर्ष 2016 में अंतराष्ट्रीय जजों के एक कमीशन ने कहा था कि पाकिस्तान की सरकार और मिलिट्री कोर्ट में होने वाले ट्रायल के बारे में जानकारी देने में पूरी तरह से फेल साबित हुई है। यह बात खासतौर पर मिलिट्री कोर्ट के सिलसिले में कही गई थी। यह बात आज इसलिए और भी अहम इसलिए हो जाती है क्योंकि कुलभूषण जाधव को सजा इसी मिलिट्री कोर्ट की ओर से सुनाई गई है। कमीशन की ओर से यह भी कहा गया था कि ट्रायल की जगह, आरोपों और सुबूतों के बारे में कोई भी जानकारी नहीं दी जाती है। साथ ही जो फैसला आया है उसे भी सार्वजनिक नहीं किया जाता है। कोर्ट इस बात की जानकारी भी नहीं देते हैं कि किस दोष के तहत आरोपी को सजा सुनाई गई है। पाक के मिलिट्री कोर्ट का ट्रैक रिकॉर्ड काफी कुख्यात रहा है। पाकिस्तान आर्मी इन कोर्ट पर ही भरोसा करती है जबकि ये कोर्ट किसी भी सिविल कोर्ट के सामने कोई भी सुबूत नहीं दे पाते हैं।
सरकार पर कोर्ट को लेकर दबाव
पिछले
दो
वर्षों
में
पाक
की
मिलिट्री
कोर्ट
की
ओर
से
274
दोषियों
को
सजा
सुनाई
गई
है
जिनमें
161
को
मौत
की
सजा
दी
गई
है।
इन
कोर्ट
में
144
कुबूलनामे
रिकॉर्ड
किए
गए।
इनमें
से
किसी
भी
केस
को
सार्वजनिक
ही
नहीं
किया
गया
था
ताकि
सुबूतों
का
विश्लेषण
किया
जा
सके।
हास्यास्पद
बात
यह
है
कि
इन
कोर्ट
की
ओर
से
जो
सजा
दी
जाती
है
उनमें
अपील
करने
का
अधिकार
भी
नहीं
होता
है।
वर्ष
2014
में
आतंकवाद
से
जुड़े
मसलों
के
लिए
जब
इन
मिलिट्री
कोर्ट
की
शुरुआत
हुई
तो
एक
सन-सेट
क्लॉस
लाया
गया।
इसका
मतलब
था
कि
जब
सरकार
असैन्य
अदालतों
को
शक्ति
देने
से
जुड़े
नियमों
में
बदलाव
कर
देगी
तो
मिलिट्री
कोर्ट
को
बंद
कर
दिया
जाएगा।
लेकिन
अब
पाकिस्तान
आर्मी,
सरकार
पर
ही
दबाव
डालने
लगी
है
कि
इन
मिलिट्री
कोर्ट
की
अवधि
को
दो
वर्षों
के
लिए
बढ़ा
दिया
जाए।